Wednesday, January 31, 2018

जीवित और मृत शरीर में अन्तर


मित्रो !
          किसी जीवित व्यक्ति के शरीर में जो अंग पाये जाते हैं वही अंग उसकी मृत्यु होने पर मृत शरीर में रहते हैं तब यह विचारणीय हो जाता है कि वह क्या चीज है जिसके शरीर में न रहने से मृत्यु हो जाती है। सामान्य बोल-चाल की भाषा में हम कह देते हैं कि अमुक व्यक्ति ने प्राण त्याग दिए हैं। शरीर में वह क्या चीज है जिसके न रहने से हमारा दिमाग और दिल काम करना बंद कर देता है? यह गूढ़ प्रश्न हैं। ऐसे में हम कल्पना कर सकते हैं कि हमारे शरीर में शरीर के अंगों के अतिरिक्त कोई ऐसी चीज है जो हमारे जन्म के समय हमारे शरीर में प्रवेश करती है और हमारे शरीर को जीवन्त बनाती है। यही चीज मृत्यु के समय हमारे शरीर को छोड़ देती है।
         "मैं" एक ऐसा शब्द है जिसे बोलने वाला केवल अपने को संदर्भित करने के लिए ही प्रयोग कर सकता है। इसे व्यक्ति जीवित रहते ही बोल सकता है अतः कोई व्यक्ति इसका प्रयोग जन्म के उपरान्त और मृत्यु से पूर्व ही कर सकता है। शब्द "मेरा" व्यक्ति के संबंधों और अधिकारों को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यदि हम किसी व्यक्ति से उसके शरीर के किसी अंग के बारे में पूछें कि यह क्या है तब वह उत्तर देगा कि यह मेरा हाथ है, यह मेरा पाँव है, यह मेरी उँगली है, आदि-आदि। किसी व्यक्ति के शरीर में जो भी अंग हैं उन सभी पर "मैं" का अधिकार होगा। शरीर में पदार्थ के रूप में (in material form) जो कुछ भी होता है उस पर स्वामित्व "मै" का होता है। जीवित शरीर इस "मै" जो पदार्थ रूप में नहीं होता और शरीर के अंग जो पदार्थ रूप होते हैं से बना होता है। मृत शरीर में केवल शरीर के अंग ही होते हैं जो पदार्थ रूप में होते हैं। इस प्रकार मृत शरीर "मै" विहीन शरीर होता है। तब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि शरीर के अंदर वह कौन और कहाँ है जो पूरे शरीर पर अपना अधिकार जताता है? निश्चित रूप से वह पदार्थ रूप में नहीं है अन्यथा उसके सम्बन्ध में भी कहा जा सकता "यह मैं हूँ". यह अदृश्य है और शरीर में जीवन का कारण है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि -
        जीवित शरीर और मृत शरीर में यह अन्तर होता है कि जीवित शरीर के अन्दर एक ऐसा "मै" निवास करता है जो जन्म के समय शरीर को क्रियाशील कर देता है और जीवन पर्यन्त शरीर को क्रिया विहीन नहीं होने देता। "मैं" के शरीर छोड़ देने पर शरीर क्रिया विहीन हो जाता है और ऐसा शरीर मृत शरीर कहलाता है। प्राणी के शरीर और बाह्य जगत से सम्बन्धों का कारण भी "मैं" ही है।


Monday, January 29, 2018

THE CONSCIENCE

अंतरात्मा की आवाज़ : The Conscience
मानव शरीर में अंतरात्मा से पवित्र और कोई चीज नहीं होती। जो व्यक्ति पवित्र वस्तु को कुचलता है उसका भला कैसे हो सकता है। अंतरात्मा मनुष्य की परम हितैषी होती है। परम हितैषी की की हत्या से बड़ी न तो कोई हिंसा हो सकती है और न ही कोई बड़ा अपराध हो सकता है। 
अंतरात्मा की आवाज़ जब उठती है तब वह आदमी के भले के लिए ही उठती है। जो अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को नहीं सुनता या सुनकर भी अनसुनी कर देता है वह अपना दुश्मन स्वयं बन जाता है। 
Don't kill your conscience.


Monday, January 22, 2018

O MOTHER EARTH!

धरती माँ (भूमि) की स्तुति -
यत् ते भूमे बिखनामि क्षिप्रं तदपि रोहतु। 
मा ते मर्म विमृग्वरि मा ते हृदयमर्पिपम्।
हे धरती माँ ! जब हम (औषधियां, कंद आदि निकालने अथवा बीज बोन के लिए) आपको खोदें, तब वे शीघ्र उगें। हमारे द्वारा आपके मर्म स्थलों को अथवा आपके ह्रदय को हानि न पहँचे।
Whatever I dig from thee, Earth, may that have quick growth again;
O purifier ! may we not injure thy vitals or thy heart. (Atharva Veda 12.1.36).