मित्रो !
किसी जीवित व्यक्ति के शरीर में जो अंग पाये जाते हैं वही अंग उसकी मृत्यु होने पर मृत शरीर में रहते हैं तब यह विचारणीय हो जाता है कि वह क्या चीज है जिसके शरीर में न रहने से मृत्यु हो जाती है। सामान्य बोल-चाल की भाषा में हम कह देते हैं कि अमुक व्यक्ति ने प्राण त्याग दिए हैं। शरीर में वह क्या चीज है जिसके न रहने से हमारा दिमाग और दिल काम करना बंद कर देता है? यह गूढ़ प्रश्न हैं। ऐसे में हम कल्पना कर सकते हैं कि हमारे शरीर में शरीर के अंगों के अतिरिक्त कोई ऐसी चीज है जो हमारे जन्म के समय हमारे शरीर में प्रवेश करती है और हमारे शरीर को जीवन्त बनाती है। यही चीज मृत्यु के समय हमारे शरीर को छोड़ देती है।
"मैं" एक ऐसा शब्द है जिसे बोलने वाला केवल अपने को संदर्भित करने के लिए ही प्रयोग कर सकता है। इसे व्यक्ति जीवित रहते ही बोल सकता है अतः कोई व्यक्ति इसका प्रयोग जन्म के उपरान्त और मृत्यु से पूर्व ही कर सकता है। शब्द "मेरा" व्यक्ति के संबंधों और अधिकारों को दर्शाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यदि हम किसी व्यक्ति से उसके शरीर के किसी अंग के बारे में पूछें कि यह क्या है तब वह उत्तर देगा कि यह मेरा हाथ है, यह मेरा पाँव है, यह मेरी उँगली है, आदि-आदि। किसी व्यक्ति के शरीर में जो भी अंग हैं उन सभी पर "मैं" का अधिकार होगा। शरीर में पदार्थ के रूप में (in material form) जो कुछ भी होता है उस पर स्वामित्व "मै" का होता है। जीवित शरीर इस "मै" जो पदार्थ रूप में नहीं होता और शरीर के अंग जो पदार्थ रूप होते हैं से बना होता है। मृत शरीर में केवल शरीर के अंग ही होते हैं जो पदार्थ रूप में होते हैं। इस प्रकार मृत शरीर "मै" विहीन शरीर होता है। तब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि शरीर के अंदर वह कौन और कहाँ है जो पूरे शरीर पर अपना अधिकार जताता है? निश्चित रूप से वह पदार्थ रूप में नहीं है अन्यथा उसके सम्बन्ध में भी कहा जा सकता "यह मैं हूँ". यह अदृश्य है और शरीर में जीवन का कारण है।
उपर्युक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि -
जीवित शरीर और मृत शरीर में यह अन्तर होता है कि जीवित शरीर के अन्दर एक ऐसा "मै" निवास करता है जो जन्म के समय शरीर को क्रियाशील कर देता है और जीवन पर्यन्त शरीर को क्रिया विहीन नहीं होने देता। "मैं" के शरीर छोड़ देने पर शरीर क्रिया विहीन हो जाता है और ऐसा शरीर मृत शरीर कहलाता है। प्राणी के शरीर और बाह्य जगत से सम्बन्धों का कारण भी "मैं" ही है।
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