Sunday, August 10, 2014

THE WILLPOWER


         इच्छाओं की उत्पत्ति हमारे मष्तिष्क के अन्दर होती है। कुछ इच्छायें कम तीब्रता की हो सकती हैं वहीं पर कुछ इच्छाएं अधिक तीब्रता की भी हो सकतीं हैं। अपेक्षाकृत अधिक तीब्रता वाली इच्छाएं कम तीब्रता वाली इच्छाओं पर प्रबल होती हैं। अधिक तीब्रता वाली इच्छाओं की उपस्थिति में अल्प तीब्रता वाली इच्छाएं दब कर रह जातीं हैं या समाप्त हो जाती हैं।




       मान लीजिये आप धूम्रपान करते हैं। आपके पिता जी की जानकारी में यह तथ्य आता है। वे आपको समझाते हैं कि धूम्रपान से कैंसर हो सकता है, आपको धूम्रपान छोड़ देना चाहिए। आपके अंदर धूम्रपान छोड़ देने की इच्छा उत्पन्न होती है। आप कुछ समय तक धूम्रपान नहीं करते हैं किन्तु कुछ समय बाद आपके अंदर धूम्रपान करने की इच्छा उत्पन्न होती है। आप धूम्रपान करने की इच्छा को रोक नहीं पाते और पुनः धूम्रपान करना प्रारम्भ कर देते हैं। यहां पर स्पष्ट रूप में आपकी धूम्रपान छोड़ देने की इच्छा पर धूम्रपान करने की इच्छा प्रबल प्रमाणित हुयी और उसके सामने कमजोर इच्छा का दमन हो गया। अब मान लीजिये कि आप एक धूम्रपान से होने वाली क्षति से सम्बंधित एक लेख पढ़ते हैं। आपके अन्दर एक इच्छा जन्म लेती है कि आप किसी भी दशा में धूम्रपान नहीं करेंगे। आप दृढ़ता के साथ अपने से वादा करते हैं कि आप किसी भी दशा में धूम्रपान नहीं करेंगे। कुछ समय तक तो ठीक चलता है किन्तु थोड़े समय बाद आपके अन्दर धूम्रपान करने की इच्छा जाग्रत होती है। आप अपने संकल्प को याद करते हैं और निर्णय लेते हैं कि आप धूम्रपान नहीं करेंगे। आप धूम्रपान करने की नयी उत्पन्न हुयी इच्छा को दबाने में सफल हो जाते हैं। यहां पर यदि हम ध्यान दें तब हम देखते हैं कि -
(१) पहले मामले में धूम्रपान की करने की इच्छा धूम्रपान न करने की इच्छा पर प्रबल प्रमाणित हुयी और प्रबल इच्छा की जीत हुयी।
(२) दूसरे मामले में धूम्रपान न करने की इच्छा धूम्रपान करने की इच्छा पर प्रबल प्रमाणित हुयी और प्रबल इच्छा की जीत हुयी। 
(३) पहले मामले में धूम्रपान न करने की इच्छा का आपके अंदर जन्म आपके पिता जी के सुझाव पर हुआ था। दूसरे मामले में धूम्रपान न करने का आपका अपना लिया हुआ संकल्प था।

      आपने अनुभव किया होगा कि हमारे बीच कुछ लोग ऐसे भी होते है जो किसी कार्य विशेष को करने की इच्छा रखते हैं और कार्य का ठीक से शुभारम्भ करते हैं किन्तु कार्य करने के दौरान दिक्कतें आने पर उनके अन्दर कार्य छोड़ देने की इच्छा उत्पन्न हो जाती है और वे यह सोच कर कार्य करना छोड़ देते हैं कि यह काम उनसे नहीं होगा। कुछ लोग ऐसे भी हो सकते हैं जिनके अन्दर उसी कार्य को करने के दौरान वही दिक्कतें आने पर उनके मन में यह इच्छा एक विकल्प के रूप में आये कि कार्य छोड़ दिया जाए किन्तु उनके कार्य पूरा करने की इच्छा नयी इच्छा पर हावी हो जाय और नयी इच्छा विलुप्त हो जाय। इन दो श्रेणियों के अतिरिक्त कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके सामने वही दिक्कतें आने पर उनके मन में काम छोड़ देने की इच्छा उत्पन्न ही नहीं होती। वे अविचलित रह कर ऐसी दिक्कतों का धैर्य के साथ सामना करते हैं और उन पर विजय पाकर आगे बढ़ते जाते हैं। अगर आप समान परिस्थितयों में समान बुद्धि और कौशल वाले व्यक्तियों को भी लेकर यह प्रयोग करें तब भी आपको उपरोक्त तीनों श्रेणियों के व्यक्ति मिल जाएंगे। यदि हम कारणों का विश्लेषण करें तब हम देखते हैं कि -
(A) पहली श्रेणी के व्यक्तियों के सामने दिक्कतें आने पर कार्य पूरा करने की इच्छा कार्य छोड़ देने की नयी इच्छा के सामने समाप्त हो गयी।
(B) दूसरी श्रेणी के व्यक्तियों के सामने दिक्कतें आने पर कार्य छोड़ देने की नयी इच्छा उत्पन्न तो हुयी किन्तु कार्य करने की इच्छा के सामने कमजोर साबित हुयी और विलुप्त हो गयी। 
(C) तीसरी श्रेणी के व्यक्तियों के सामने दिक्कतें आने पर उनके मन में कार्य छोड़ देने की इच्छा ने जन्म ही नहीं लिया, उनके मन में केवल कार्य पूरा करने की इच्छा ही रही।

      उपरोक्त उदाहरणों से स्पष्ट है कि इच्छाओं में तीब्रता होती है और प्रबल इच्छा कमजोर इच्छाओं पर विजय पाती है। अगर हम कोई लक्ष्य प्राप्त करने की इच्छा करें और हमारी यह इच्छा इतनी प्रबल हो कि लक्ष्य की दिशा में आगे बढ़ने के रास्ते में यदि कोई अन्य इच्छाएं उत्पन्न होतीं हैं तब उन सब पर विजय पा ले, तब लक्ष्य प्राप्त करने की हमारी इच्छा दृढ़ इच्छा कहलायेगी। यह हमारी दृढ़ इच्छा की शक्ति ही हमारी इच्छाशक्ति समझी जा सकती है। इच्छाशक्ति से अभिप्राय अपने मन (अंतरात्मा) की एक ऐसी शक्ति या ताक़त से होता है जो अपने द्वारा की गयी किसी ख़ास इच्छा को पूरा करने के लिए किसी की न सुने और वह तब तक प्रबलतम इच्छा के रूप विद्द्यमान रहकर कार्य करती रहे जब तक कि वह इच्छा या कार्य पूर्ण न हो जाए।

       इच्छाशक्ति को संकल्प, आत्म-नियंत्रण, आत्म-संयम आदि नामों से भी जाना जाता है। मनोवैज्ञानिक इसे इच्छाशक्ति और आत्म नियंत्रण जैसे विशिष्ट नामों से सम्बोधित करते हैं। इच्छाशक्ति हमें किसी दीर्घकालिक कार्य को पूरा करने के लिए अल्पकालिक लालच, विरोध या संतुष्टि की इच्छाओं को समाप्त करने या आस्थगित करने, अवांछित विचार, भावना या आवेग पर विजय पाने, शरीर में धैर्य संज्ञानात्मक प्रणाली को काम करने, स्वं के चेतन (Conscious) द्वारा स्वं पर नियंत्रण करने की क्षमता प्रदान करती है।

       इच्छाशक्ति का अभाव जीवन की विफलताओं और संकटों का मूल कारण है। इसके रहते व्यक्ति छोटी-छोटी आदतों व वृत्तियों का दास बनकर रह जाता है। छोटी-छोटी नैतिक व चारित्रिक दुर्बलताएं जीवन की बड़ी-बड़ी त्रासदियों को जन्म देती हैं। इच्छाशक्ति की दुर्बलता के कारण ही व्यक्ति छोटे-छोटे प्रलोभनों के आगे घुटने टेक देता है, दुष्कृत्य करने का अपराधी हो जाता है।

      आपने मुहाबरा "जहाँ चाह वहां राह" (Where there is will, there is way) सुना होगा। यह इच्छाशक्ति ही है जिसके रहते एक पैर वाली लड़की कुशल नृत्यांगना बनकर भारत नाट्यम नृत्य करती है। कोलम्बस नयी दुनिया की खोज करता है, विल्मा रुडोल्फ (Wilma Rudolph) जो बचपन में पोलियो की शिकार हुयी थी और अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकती थी। जिसके बारे में चिकित्सकों ने यह कह दिया था कि वह अपने पैरों पर कभी नहीं खड़ी हो सकेगी, किन्तु यह उसकी माँ की इच्छाशक्ति ही थी जिसने अपनी बेटी को उसके अपने पैरों पर खड़ा करने के प्रयास जारी रखे और 7 साल के अनवरत प्रयासों के बाद लड़की अपने पैरों पर खड़ी होने के काबिल ही नहीं हुयी वल्कि नंगे पैरों बास्केट बाल खेलने लगी और आगे चलकर उसने तीन बार ओलम्पिक खेलों में दौड़ (Race) में पदक भी जीते। महात्मा गांधी जी का मानना था कि किसी भी कार्य को करने के लिए लगाई गयी ताक़त या शक्ति मनुष्य की शारीरिक क्षमता से ना आकर उसके अदम्य इच्छाशक्ति से आती है।

        यह व्यवहारिक सत्य है कि स्वस्थ होने की इच्छाशक्ति रखने वाला एक रोगी उन रोगियों जिनके अंदर स्वस्थ होने की इच्छाशक्ति का आभाव होता है की तुलना में कम समय में ही स्वस्थ हो जाता है। जब किसी व्यक्ति में जीने की इच्छाशक्ति समाप्त हो जाती है तब उसे कोई चिकित्सक या दबाइयाँ स्वस्थ नहीं कर सकती हैं। चिकित्सक यह सोच कर परेशान हो जाते हैं कि जो दबाइयाँ समान परिस्थितियों में अन्य मरीजों पर कारगर हो रहीं हैं वही दबाइयाँ किसी एक मरीज पर विल्कुल कारगर नहीं हो रहीं हैं।

        भारतीय प्रशासनिक सेवा में पद पाने की इच्छा उन सभी में होती है जिन्होंने इसके बारे में सुन रखा है, आवश्यक शैक्षिक योग्यता रखते हैं और जिन्होंने प्रतियोगिता परीक्षा का फॉर्म भर रखा है। आप जानते हैं इनमें से अनेक युवक परिक्षा में बैठते ही नहीं। कुछ प्रारंभिक परीक्षा का बैरियर ही पास नहीं कर पाते। वास्तव में होता क्या है अधिकाँश लोगों में आई ए एस बनने की इच्छा मात्र होती है, उनके अन्दर इच्छाशक्ति  का अभाव होता है।

इच्छाशक्ति के सम्बन्ध में लाख टके के प्रश्न यह हो सकते है कि -
(१) क्या इच्छाशक्ति व्यक्ति की जन्म जात उपलब्धि है ?
(२) क्या इसको जागृत और प्रेरित किया जा सकता है?
(३) यदि जागृत और प्रेरित किया जा सकता है तब कैसे?

      मनोविज्ञान के अनुसार इच्छाशक्ति या संकल्प (Will या Volition) वह संज्ञानात्मक प्रक्रम है जिसके द्वारा व्यक्ति किसी कार्य को किसी विधि का अनुसरण करते हुए करने का प्रण करता है। संकल्प मानव की एक प्राथमिक मानसिक क्रिया है। इस आधार पर यह मान सकते हैं कि स्वस्थ मष्तिष्क में इच्छाशक्ति का जन्म होता है। स्वस्थ मष्तिष्क तो जन्म जात हो सकता है किन्तु मष्तिष्क में इच्छाशक्ति जन्म-जात नहीं है। जहाँ तक इच्छाशक्ति को अभिप्रेरित और जाग्रत किये जाने के सन्दर्भ में है मेरा मानना है कि प्रारम्भ में इस संकाय को अभिप्रेरित करने की आवश्यकता होती है किन्तु कुछ अभ्यास के उपरान्त यह क्रिया उपयुक्त वातावरण में स्वचलित हो जाती है।

        किसी-किसी व्यक्ति के सम्बन्ध में कुछ लोग यह कहते हैं कि उसकी इच्छाशक्ति बहुत शक्तिशाली है। अगर उस व्यक्ति से कारण पूछा जाय कि उसकी इच्छाशक्ति किस प्रकार इतनी शक्तिशाली हुयी तब वह स्वं इसका कारण नहीं बता पाता। वास्तव में इच्छाशक्ति को अभिप्रेरित करने में आत्म-नियंत्रण का विशेष योगदान होता है। इच्छाशक्ति का दूसरा नाम भी आत्म-नियंत्रण है। कुछ मामलों में हमारे लालन-पालन में हमारे माता -पिता जो संस्कार देते हैं उनमें आत्म -नियंत्रण की प्रक्रियाएं भी शामिल रहतीं है। इस कारण आयु बढ़ने पर कुछ व्यक्तियों में इच्छाशक्ति प्रबल दिखाई देती है। इच्छाशक्ति का जागरण और अभिप्रेरण भी आत्म-नियंत्रण और एकाग्रता से ही किया जा सकता है। आत्म-नियंत्रण हमें तीन दिशाओं में करना होता है :
(१) शारीरिक आत्म-नियंत्रण 
(२) मानसिक आत्म-नियंत्रण 
(३) संसारिक आत्म-नियंत्रण।

       शारीरिक आत्म-नियंत्रण के अंतर्गत हमें अपने को पूर्णतया स्वस्थ रखना होता है। आपने यह कहावत अवश्य ही सुनी होगी "A sound mind in a sound body". शारीरिक आत्म-नियंत्रण में अपेक्षित होता है कि आप संतुलित आहार लें, हल्का और सुपाच्य भोजन करें। अधिक कड़ुआ, तीखा, चटपटा और अपाच्य भोजन न करें। न अधिक सोएं और न अधिक जागें, उचित व्यवधान रहित पर्याप्त नींद अवश्य लें। यदि प्राणायाम नहीं भी करते हैं तब प्रतिदिन कुछ एक्सरसाइज अवश्य करें। मानसिक आत्म-नियंत्रण में काम, क्रोध, लोभ, मद, अहंकार आदि से दूर रहकर सतत विनम्र बने। अहंकार और झूठ से बचें। इन व्यसनों से बचने के लिए जब भी इनसे सम्बंधित इच्छाएं आपके मष्तिष्क में जन्म लें उनसे आप तुरंत मुंह मोड़ लें, उनकी पूरी तरह अनसुनी कर दें। संतोष धारण करें, क्षमा को अपनायें, कम बोलें, मधुर बोलें, वाणी पर नियंत्रण रखें। एकाग्रता (Concentration) का अभ्यास करें। सांसारिक आत्म-नियंत्रण में सांसारिक प्रलोभनों से बचें। दूसरों से वादा सोच-समझकर करें और वादा करने के बाद उसे समय से निभाएं। कभी किसी से छल नहीं करें। सभी से प्रिय बोलें।

        मेरे विचार से इस प्रकार से आत्म-नियंत्रण रखे जाने पर इच्छाशक्ति अवश्य प्रबल होगी और हर क्षेत्र में सफलता हमारे हाथ लगेगी। इसी के साथ मैं अपनी बात इस आशा के साथ समाप्त कर रहा हूँ कि यह आर्टिकल इच्छाशक्ति को अभिप्रेरित करने में सहायक होगा।

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