मित्रो !
मान लीजिये कि आपका वयस्क पुत्र आपके द्वारा
किये गए मार्गदर्शन को बार-बार नजरअंदाज कर गलत निर्णय लेता है। ऐसी स्थिति में आप
उसका मार्गदर्शन किया जाना व्यर्थ मानकर उसके द्वारा लिए जाने वाले निर्णयों के प्रति
उदासीन (unconcerned) हो जाते हैं और उसका मार्गदर्शन करना बंद कर देते हैं। आपके सामने
गलत निर्णय लेने पर भी आप उसको नहीं रोकते। यही सब कुछ आत्मा और बुद्धि के साथ होता
है।
आत्मा बुद्धि से श्रेष्ठ होती है। जब आत्मा द्वारा
बुद्धि का उचित मार्गदर्शन किये जाने के बाद भी, बुद्धि मार्गदर्शन को नजरअंदाज कर
आत्मा के परामर्श के विपरीत निर्णय लेकर गलत कार्य करने की प्रवृत्ति अपना लेती है
तब आत्मा उदासीन (unconcerned) रहकर बुद्धि को परामर्श देना बंद कर देती है। ऐसी स्थिति
में आत्मा मूक दर्शक बन जाती है। यह स्थिति आत्मा की सोई हुयी स्थिति के समान होती
है।
Suppose when you see your adult son taking
any wrong decision in any matter, you guide him but your son, does not pay heed
to your advice and takes wrong decision. This happens times and again. After
few instances, you stop advising him thinking that your advice is of no use and
thereafter, you become unconcerned towards decisions that are made by him. Then
you become a silent spectator and your son continues to take right or wrong
decisions independently. Same thing happens with the intellect and the soul. When
the intellect, under influence of desires, ignores the guidance provided by the
soul, the soul becomes unconcerned silent spectator and the intellect (the brain)
continues to take, independently, right or wrong decisions.
मानव शरीर
में ईश्वर अंश
के रूप में
विद्यमान आत्मा मनुष्य का
मार्गदर्शन करती है।
उसकी राय और
मार्गदर्शन कभी गलत
नहीं होते। वह
कुछ गलत करने
के लिए प्रेरित
भी नहीं
करती अपितु वह गलत निर्णय लेने से मनुष्य को रोकती है।
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