मित्रो !
मनुष्य को सर्व साधन संपन्न यह प्रकृति मिली है, पाँच कर्मेन्द्रियाँ, पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ, मन रुपी अन्तः इन्द्रिय और मष्तिष्क मिले हैं। यह मनुष्य के विवेक पर निर्भर है कि वह संसाधनों का प्रयोग या उपभोग दुःख पाने के लिए करता है अथवा सुख पाने के लिए।
मैं नहीं मानता कि यहाँ पर जो बात मैंने कही है उसमें कोई ऐसी बात है जिसे विज्ञान नहीं मानता। वैज्ञानिकों ने जो भी अविष्कार किये हैं या जिन वस्तुओं का निर्माण किया है उनके लिए संसाधन प्रकृति के अतिरिक्त क्या कहीं अन्यत्र से जुटाये गए हैं? इनको बनाने के लिए आवश्यक ज्ञान मानव ने स्वयं उसके अन्दर उपलब्ध मन, मष्तिष्क का प्रयोग कर अर्जित किया है।
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