Saturday, December 5, 2015

धर्म परिवर्तन


मित्रो !
    मैंने पूर्व में एक पोस्ट "धर्म-क्षेत्र में परिवर्तनों की गुंजाइश : Scope for Changes in the Field of Religion" शीर्षक से प्रकाशित की थी। इस पोस्ट में मैंने निम्नप्रकार विचार व्यक्त किये थे :
मेरे विचार से सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए धर्म के दो भाग होते हैं। एक भाग में जीवन के अपरिवर्तनशील शाश्वत मूल्य होते हैं, दूसरे भाग में रीति-रिवाज (customs & traditions) और जीवन शैली होते हैं। मेरा मानना है कि शाश्वत मूल्यों पर प्रभाव डाले बिना मानव जीवन की बेहतरी के लिए दूसरे भाग में किये गए परिवर्तनों से धर्म की हानि नहीं होती। 
    यदि हम लोगों को यह समझा पाने में कामयाब हो जाते हैं तब हम अनेक कुरीतियों से समाज को बचा सकते हैं। इसी सन्दर्भ में मैं कहना चाहूँगा कि - 
   हिन्दू दलितों और आदिवासियों द्वारा हिन्दू धर्म को छोड़कर कोई अन्य धर्म अपनाना उनका शौक नहीं, उनकी मजबूरी है। मेरा मानना है कि धार्मिक एकता की वकालत करने वालों द्वारा उनकी मजबूरियों को समझने और दूर करने की दिशा में सकारात्मक पहल किये जाने की जरूरत है।


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