मित्रो !
हमें याद रखना चाहिए कि जनता के बीच या जनता के साथ किये गए किसी अपराध के मामले में कोई अदालत सबूतों के अभाव में किसी अपराधी को भले ही ससम्मान बरी कर दे किन्तु जनता न तो अपराधी को सम्मान लौटाती है और न ही कभी माफ़ करती है। जनता अपने अपराध करने वाले को अपराधी ही मानती है।
जन अदालत सबूतों की मोहताज नहीं होती, वह अपना निर्णय आत्मा की आवाज पर करती है। उसकी नज़रों में अपराधी सदैव अपराधी रहता है और निर्दोष सदैव निर्दोष रहता है, भले ही न्यायलय द्वारा इसके विपरीत निर्णय दिए गए हों।
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