मित्रो !
आज देश में धार्मिक मूल्यों को बचाने के बजाय तेरे -मेरे धर्म की बहस और नाम, नारों तथा प्रतीकों की चर्चा ज्यादा हो रही है। भूखे-प्यासे लोगों के सामने भोजन परोसने और प्यासों को पानी पिलाने के बजाय हम उनके सामने मनोरंजन का विकल्प प्रस्तुत कर रहे हैं। क्या यह हास्यास्पद नहीं है?
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