Monday, October 17, 2016

उत्साह के बिना उत्सव कैसा : No festival without festivity

मित्रो !
         उमंग, उछाह, विनोद, आमोद-प्रमोद, आदि, हमारे त्यौहारों में जान डाल देते हैं। इनके बिना कोई उत्सव या त्यौहार, त्यौहार होने का अहसास ही नहीं होता। त्यौहार के दिन यदि हमारे परिवार का कोई सदस्य अस्वस्थ हो या घर में कोई अन्य परेशानी हो तब त्यौहार फीका पड़ जाता है। उत्सव ही हमारे त्यौहारों को यादगार बनाते हैं।
        संयुक्त राष्ट्र द्वारा समय-समय पर अनेक अन्तर्राष्ट्रीय विश्व दिवस यथा मातृ दिवस, पितृ दिवस, मित्रता दिवस, भ्रातृ दिवस, नशा मुक्ति दिवस, योग दिवस, सामाजिक न्याय दिवस, आदि घोषित कर रखे हैं। इतनी अधिक संख्या में दिवस घोषित किये जा चुके हैं कि इनका याद रख पाना भी आसान नहीं रह गया है। यदि प्रत्येक दिवस को मनाया जाए तब अगर पूरे वर्ष नहीं तब वर्ष का एक बड़ा भाग इसी में निकल जायेगा। और यदि न मनाया जाय तब अन्तर्राष्ट्रीय दिवस घोषित करने का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा। ऐसे में विषय विशेष के प्रति जन सामान्य के बीच कोई जागरूकता (awareness) लाना संभव नहीं होगा।

       मेरा विचार है कि अब तक जो विश्व दिवस घोषित किये गए हैं उन्हें विभिन्न श्रेणियों में रखकर दिनों की संख्या को सीमित किया जाना चाहिए। उदहारण स्वरुप स्वास्थ्य या बिमारियों से सम्बंधित दिवस हैं उनको एक श्रेणी में स्वास्थ्य दिवस में रखा जाना चाहिए। ऐसा होने से दिवसों की संख्या सीमित हो जाएगी और उन्हें उत्साह के साथ मनाया जा सकेगा। इस दिन विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से अथवा उनकी पहल पर सरकारों द्वारा उत्सवों, प्रदर्शनियों, शिविरों आदि का आयोजन किया जाना चाहिए। मात्र विश्व दिवस कलेंडर में तिथि के आगे दिवस का नाम अंकित कर देने में सार्थकता नहीं है। सनातन धर्म के अनुयायियों द्वारा अनेक मामलों में दिवसों को त्यौहारों के रूप में मनाया जाता है और इस कारण उनका महत्व समाज में सहस्त्रों वर्ष गुजरने के बाद भी बना हुआ है।


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