मित्रो !
सकाम कर्म ऐसे कर्म होते हैं जो फल की इच्छा से किये जाते हैं। ऐसे कर्मों का कर्मों के अनुसार फल अवश्य मिलता है। कर्मों का फल मिलने का भी समय होता है, कुछ कर्मों का फल तुरंत मिलता जाता है, कुछ कर्मों का फल कर्म करने के कुछ समय बाद और कुछ कर्मों का फल काफी समय बाद, यहां तक कि मृत्यु के बाद मिलता है। जिन कर्मों का फल उसी जन्म में नहीं मिल पाता है उसका फल भोगने के लिए आत्मा नया शरीर धारण करता है। जो कर्म फल के लिए नहीं किये जाते हैं निष्काम कर्म कहलाते हैं। ऐसे कर्मों का फल जीवात्मा को नहीं भोगना पड़ता है। अतः ऐसे कर्म पुनर्जन्म का कारण नहीं बनते।
श्रीमद भगवद गीता में भगवन श्री कृष्ण द्वारा मानव शरीर को क्षेत्र (खेत) और इसके ज्ञाता को क्षेत्रज्ञ बताया गया है। कर्म करने और कर्म के फल का भोग / उपभोग करने के लिए शरीर और जीवात्मा का साथ होना आवश्यक है। पच-तत्व "क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा" से बना शरीर तब तक मिटटी है जब तक उसमें जीवात्मा का प्रवेश नहीं होता और जब जीवात्मा इस शरीर को छोड़ देता है तब जो कुछ बचता है वह यही पांच तत्व होते हैं। अतः फलों का भोग भी तभी किया जा सकता है जब जीवात्मा शरीर धारण किये हुए हो।
शरीर के बिना जीवात्मा कर्म और कर्म के फल का भोग नहीं कर सकता। किसी जन्म में किये गए ऐसे कर्मों, जिनके फलों का भोग उसी जन्म में संभव नहीं हो पाता, के फलों का भोग करने के लिए जीवात्मा नया शरीर धारण करता है।
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