मित्रो !
मैंने अपनी कुछ
पोस्टों में यह
कहा था कि
आदमी, ईश्वर जिसने
उसे सब कुछ
दिया है का
शुक्रिया अदा नहीं
करता जबकि अल्प
लाभ के लिए
दूसरों का शुक्रिया
अदा करता है।
यह मेरी गलती
थी, उस समय
मैं यह भूल
गया था कि
कोई भी पुत्र
अपने पिता के
उपकारों का शुक्रिया
अदा करने की
स्थिति में नहीं
होता क्योंकि - - -
शुक्रिया औपचारिकतावश अदा किया
जाता है और
पिता-पुत्र के
बीच औपचारिकता का
कोई स्थान नहीं
होता। पिता द्वारा पुत्र पर
किये गए उपकार
पुत्र पर ऋण
होते हैं। इस
ऋण को चुकाना
पुत्र का दायित्व
होता है। ऐसा
ऋण पिता की
अपेक्षाओं को पूरा
करके और पिता
के आदर्शों पर
चल कर ही
चुकाया जा सकता
है। पुत्र
से अपेक्षित होता
है कि वह
पिता की अपेक्षाओं
और उनके आदर्शों
को जाने और
उनको अपना दायित्व
मानकर यथासंभव पूरा
करे। ईश्वर हमारा
परम पिता है,
उसके द्वारा हमारे
ऊपर किये गए
उपकारों की कोई
सीमा नहीं है।
अतः हम उसके
ऋण से कभी
मुक्त नहीं हो
सकते।
No comments:
Post a Comment