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सनातन धर्म के सुविख्यात ग्रन्थ श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 व श्लोक 8 में भगवान श्री कृष्ण द्वारा युग -युग में अवतरित होने के कारणों का वर्णन निम्न प्रकार किया गया है:
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम॥
हे भारत ! जब-जब धर्मकी हानि और अधर्मकी वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने रूपको रचता हूँ (अर्थात् साकाररूपसे प्रकट होता हूँ)।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम। धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥
साधु पुरुषों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |
साधु पुरुषों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |
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