मित्रो !
. आदमी को चाहिए कि वह गुनाह करने से बचे और यदि कोई गुनाह हो भी जाता है तब उसका बोझ हल्का करने के लिए कोई एक नेक कर्म करे। न जाने अंत में गुनाह याद करने का वक़्त मिले या न मिले और अगर मिले भी तो उन्हें हल्का करने के लिए वक़्त कम पड़ जाय।
यों तो कर्म-फल सिद्धांत के अनुसार प्रत्येक कर्म का एक फल होता है, बुरे कर्म का फल बुरा और अच्छे कर्म का फल अच्छा होता है। अतः गुनाहों का फल बुरा होना निश्चित है किन्तु एक नेक कर्म कर लेने से गुनाह करने से होने वाला अपराध बोध कम हो जाता है, आदमी यह सोचता है कि उसने नेक करके गुनाह का प्रायश्चित कर लिया है। ऐसे में उसके मन में अपने प्रति घृणा का भाव कम हो जाता है। दूसरे गुनाह और नेक कर्मों में संतुलन भी बना रहता है।
A man should avoid committing a sin. However, if he falls a victim of committing a sin, he should do some noble deed to reduce its gravity. Nobody knows that in the last, he will get or not the time for recollecting those sins and even if he gets time, it will not fall short for reducing gravity of the sins.
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