Tuesday, September 27, 2016

कोई ईश्वर को क्यों माने : Why One Should Accept God

मित्रो ! 
     मैं अपना ईश्वर तुम्हारे ऊपर थोपना नहीं चाहता। इसलिए इस बात का मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता कि तुम मेरे ईश्वर को अपना ईश्वर मानते हो या नहीं। मैं तो केवल इतना चाहता हूँ कि तुम्हारा भी कोई ईश्वर हो ताकि ईश्वरवादी को मिलने वाले लाभों से तुम वंचित न रह जाओ। 
   घोर निराशा में ईश्वर आशा का किरण पुंज है। जब हमारे अपने भी हमारा साथ छोड़ जाते हैं तब भी वह हमारे साथ रहता है, उसके रहते हम कभी अनाथ नहीं होते। उसकी स्वीकृति से हमें सदमार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है, हम अनाचार से बचते है। उसकी शरण में हमें तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है। उसके डर से हम पाप कर्म करने से बचते हैं। हम अहंकार से बचते हैं। उसकी स्वीकृति हमें विनम्र बनाती है। उसकी सोच हमें निडर बनाती है। ईश्वर जितना हमारे निकट होता है उतना कोई दूसरा हमारे निकट नहीं होता। वह हमारा अंतरंग मित्र होता है, हम उसके साथ वह सब कुछ साझा कर सकते हैं जो किसी अन्य के साथ साझा नहीं कर सकते। उसके सामने अपराधों की स्वीकृति से अपराध बोध से मन हल्का हो जाता है और हमारी अपराध मनोवृत्ति पर अंकुश लगता है।
       It does not matter to me if you don't accept my God as your God. Also I do not want to impose my God upon you but I certainly want that you should also have God so that you may not be deprived of benefits available to a theist.




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