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Monday, October 2, 2017

निराशा और तनाव से मुक्ति : Freedom from Frustration and Tension

 मित्रो !
         निराश या तनाव ग्रस्त होने पर जब कोई रास्ता न सूझ रहा हो तब सब कुछ ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से चित्त शीघ्र शान्त हो जाता है। 
         व्यवहारिक जीवन में इसे उपयोग में लाया जा सकता है। यह विचार अत्यंत उपयोगी है। ईश्वर में विश्वास रखने का यह एक बड़ा लाभ है।


Sunday, November 20, 2016

निराशा, चिंता या तनाव से मुक्ति : Freedom from Despair, Worry or Tension

मित्रो !
निराशा, चिंता या तनाव से ग्रसित होने पर हमारा मष्तिष्क सामान्य स्थिति में कार्य नहीं करता और इस कारण हम कोई कार्य सुचारू रूप से नहीं कर पाते। इनसे स्वास्थ्य हानि भी होती है। इनसे जितनी जल्दी छुटकारा पा लिया जाय उतना ही स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है।
जो लोग ईश्वर में आस्था रखते हैं उनको निराशा, तनाव और चिन्ताएं नहीं सतातीं। आस्थावान व्यक्ति निराशा, चिंता या तनाव से ग्रस्त होने पर ईश्वर को याद कर यह सोच कर कि ईश्वर सब ठीक करेगा निश्चिन्त हो जाता है। ऐसा होने पर वह निराशा, चिंता और तनाव से मुक्त हो जाता है।



Sunday, October 2, 2016

निराशा और तनाव से मुक्ति : Freedom from Frustration and Tension


  • मित्रो !
    निराश या तनाव ग्रस्त होने पर जब कोई रास्ता न सूझ रहा हो तब सब कुछ ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए। ऐसा करने से चित्त शीघ्र शान्त हो जाता है। 
    व्यवहारिक जीवन में इसे उपयोग में लाया जा सकता है। यह विचार अत्यंत उपयोगी है। ईश्वर में विश्वास रखने का यह एक बड़ा लाभ है।

Wednesday, April 29, 2015

खाने के समय तनाव रहित रहें : Keep Tension Away Before You Eat

मित्रो !
अधिकांश मामलों में यह देखा गया है कि परिवारों में खाने की मेज (Dining Table) पर पति अपनी पत्नी के प्रति और पत्नी अपने पति के प्रति गीले-शिकवे लेकर बैठ जाते हैं या किसी चीज को लेकर अप्रिय टिप्पणी करने लगते हैं। स्कूल जाने वाले बच्चों की अनपेक्षित प्रगति रिपोर्ट और उनके त्रुटिपूर्ण आचरण या क्रिया - कलापों की चर्चा उनके माँ-बाप करने लगते हैं। इससे चर्चा प्रारम्भ करने वाले और उस व्यक्ति जिसको लेकर चर्चा की जा रही होती है के मस्तिष्क तनावग्रस्त हो जाते हैं। मानसिक तनाव की स्थिति में हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाले रसों और अन्य द्रव्यों का प्रवाह सामान्य नहीं रह जाता। इसका प्रभाव हमारी भूख और पाचन क्रिया के लिए आवश्यक जठराग्नि पर भी पड़ता है। ऐसा होने पर जठराग्नि मन्द पड़ जाती है। 
मेरा विचार है कि -
भोजन करने के पूर्व और भोजन करने के समय कोई तनाव नहीं होना चाहिए और न ऐसी कोई चर्चा की जानी चाहिए जिससे तनाव का वातावरण बने। ऐसा होने पर एक तो भूख (Hunger) मर जाती है, दूसरे भोजन को पचाने वाली जठराग्नि (Digestive Fire) मन्द पड़ जाती है और खाया गया भोजन ठीक से नहीं पचता। परिणामतः खाया गया भोजन व्यर्थ चला जाता है और अनेक बीमारियों का कारण बन जाता है। 

मेरा यह भी मानना है कि भोजन सुखमय वातावरण में किया जाना चाहिए। ऐसे भी अवसर आते हैं जब आपको अनेक बाहरी लोगों के बीच अपना भोजन लेना होता है और बाहरी लोग उस समय भोजन नहीं ले रहे होते हैं। ऐसी स्थिति में भोजन प्रारम्भ करने से पूर्व अपने पास के लोगों को भी अपना भोजन साझा करने लिए उनसे अनुरोध कर लेना चाहिए। प्रायः लोग धन्यवाद कहकर आपको भोजन करने की अनुमति दे देते हैं (Thanks, go ahead)। अगर कोई साझा करता भी है तब वह भोजन की मात्रा देखकर ही भोजन साझा करता है। दोनों ही परिस्थितियों में आपके लिए भोजन करने के समय खुशनुमा माहौल बन जाता है।