Wednesday, October 8, 2008

मेरी प्रार्थना

मैं अपनी प्रार्थना का विश्लेषण करने पर इसे तीन भागों में विभक्त कर पाता हूँ ।
भगवान में आस्था एवं विश्वास (स्तुति)
प्रार्थना के इस भाग के अंतर्गत हम सर्वशक्तिमान, सर्वविद्यमान और सर्वज्ञाता का अस्तित्व स्वीकारते हैं और उस के अनेकानेक गुणों का बखान करते हैं । उसको हम अपना अत्यन्त निकट हितैषी मानते हैं । उसे सभी लौकिक और अलौकिक बस्तुओं और सुखों का दाता मानते हैं । उसमें अपनी आस्था और विश्वास व्यक्त करते हैं ।
दोष-स्वीकृति और क्षमा याचना
प्रार्थना के इस भाग के अंतर्गत हम सर्वज्ञाता से हम से जाने और अनजाने में हुयी त्रुटियों और अपराधों के लिए क्षमा माँगते हैं । इससे हमारे विचार निर्मल होते हैं और भविष्य में गलतियाँ न करने की प्रेरणा मिलती है । हमें अनेकानेक मामलों में ग्लानि और पश्चात्ताप की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। 
कल्याण की भावना
प्रार्थना के इस भाग के अंतर्गत हम सर्वशक्तिमान से अपने और जगत के समस्त प्राणियों के लिए सुख एवं समृद्धि प्रदान करने की कामना करते हैं । सभी को सद्मार्ग पर ले चलने की कामना करते हैं । 
मैं समझता हूँ की मेरी प्रार्थना अपने में पूर्ण है और इसमें कुछ जोड़ने अथवा इससे कुछ कम करने की आवश्यकता नहीं है । 
मैं नहीं जानता कि  आप किस धर्म और सम्प्रदाय के अनुयायी हैं मेरी जिज्ञासा है कि क्या आपकी प्रार्थना में भी यही तीन भाग हैं। यदि नहीं तब मैं अपनी प्रार्थना में क्या जोडूं या कम करूँ ताकि  प्रार्थना पूर्ण हो जाय। यदि आपकी प्रार्थना में भी यही तीन भाग हैं तब मेरी जिज्ञासा यह है कि  दो  विभिन्न  धर्मों के लोग एक समय में एक ही स्थान पर बैठकर प्रार्थना क्यों नहीं कर सकते। प्रश्न यह भी उठता है कि यदि एक पूर्ण प्रार्थना में उपरलिखित तीन भाग ही होते है, तब विभिन्न धर्मों के होते हुए भी सभी के लिए एक सर्वमान्य सारभौमिक प्रार्थना क्यों नहीं हो सकती ।
MY PRAYER
On analyzing my prayer, I can divide it into three parts:
(i) Expression of faith in the Almighty
In this first part of my prayer, I express my faith in the Supreme power. I remember Him in so many ways, sometimes in few words and sometimes in so many words. I feel that He is the infinite source of energy and is owner of benevolent powers. He gives his blessings to all and forgives me and all for all our sins. In Hindi, this part of my prayer may be called as “Stuti”.
(ii) Confession before the Almighty
In this second part of my prayer, I confess my sins those would have been committed knowingly or unknowingly. I feel that He knows all about my deeds। I surrender before Him and apologize for my wrong doings. I pray for His forgiveness। In Hindi, I may call it “Samarpan aur chhamayachna”.
(iii) Wish
In this last third part of my prayer, I wish that He should bestow all of us with happiness and prosperity. He should lead us kindly light. In Hindi we may call it “apani aur sabhi ke kalian ki bhawana”.
In my opinion, my prayer is complete and nothing is required to be added or deleted. I don’t know which concept of religion you follow, to which sect you belong, my quest is;Whether your prayer differs from my prayer? If it is so, then how I can make my prayer a complete PRAYER. If, your prayer is the same as the prayer of mine, then why we cannot exchange our prayers. If, you also believe in omnipresence of God, then why we cannot offer our prayers by sitting together at the same place. And my last quest is:Why there cannot be a universally acceptable prayer for all?

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