उन दिनों मैं आई. आई. टी. कानपुर में बी. टेक. प्रथम वर्ष का छात्र था। एक दिन भौतिक विज्ञान की प्रयोगशाला में मेरी कक्षा के छात्रों को वर्नियर कैलिपर से एक क्यूबिकल शेप के मेटल ब्लॉक का आयतन (volume) निकालने का प्रयोग दिया गया। प्रयोगशाला में प्रक्रिया यह रहती थी कि प्रयोग करने के दौरान ली जाने वाली रीडिंग्स प्रयोगशाला में उपस्थित इंस्ट्रक्टर (जो उस विषय के कोई प्रोफेसर होते थे) को दिखाकर रीडिंग्स का वेरीफिकेशन कराना होता था। रीडिंग्स सही पाये जाने पर इंस्ट्रक्टर रीडिंग ली जाने वाली शीट पर वेरीफाइड शब्द लिखकर हस्ताक्षर कर देते थे। बाद में इन्हीं रीडिंग्स के आधार पर अपेक्षित गणनाएं की जाता थीं। जहाँ प्रोफेसर यह पाते थे कि रीडिंग्स सही नहीं हैं तब वह रीडिंग ली जाने वाली शीट पर रिपीट (Repeat) शब्द लिख देते थे। इसका अभिप्राय होता था कि वह छात्र अगले सप्ताह उस प्रयोग को पुनः करेगा। उस दिन डाक्टर रजत रे इंस्ट्रक्टर के रूप में कार्य देख रहे थे।
सामान्यतः वर्नियर कैलिपर से प्रयोग छात्रों को आठवीं या नौंवीं कक्षा में कराये जाते हैं। बी. टेक कर रहे छात्र कम से कम इंटरमीडिएट पास मेधावी छात्र रहे थे। अतः मुझे वर्नियर कैलिपर से आठवीं कक्षा के छात्रों द्वारा किया जाने वाला एक्सपेरिमेंट का कराया जाना तुरन्त समझ में नहीं आया।
मैंने अपने दिमाग पर जोर डाला। मैंने सोचा कि एक्सपेरिमेंट के लिए तीन चीजें थीं। वर्नियर कैलिपर, क्यूबिकल मेटल ब्लॉक और वर्नियर कैलिपर से मेजरमेंट लेने का मेरा ज्ञान। पहली और तीसरी चीज अपनी जगह पर सहीं थीं। अतः मैंने क्यूबिकल मेटल ब्लॉक पर ध्यान केंद्रित किया और कैलिपर से मोटे तौर पर उसके सभी किनारों (क्यूबिकल ब्लॉक में 12 किनारे होते हैं) की लम्बाइयां नापीं। मैंने पाया कि ब्लॉक पूरी तरह क्यूबिकल नहीं था। उसकी लम्बाई के समानांतर किनारों और ऊंचाई के समानांतर किनारों की लम्बाइयों (lengths) में बहुत ही थोड़ा (मिलीमीटर के दशमलव में पहले स्थान पर एक या दो अंकों में) फ़र्क़ था। इसके अतिरिक्त उसके दो सतहों पर बहुत ही छोटे दो गढढे थे। यह गढढे ऊपर वेलनाकार (cylindrical) और नीचे कोनिकल (conical) थे। यह गढढे इतने छोटे थे कि इनको अक्सर लोग महत्व नहीं देते और नज़रंदाज़ (ignore) कर देते हैं।
यहां पर मुझे समझने में देर नहीं लगी कि मुझसे क्या अपेक्षा की गयी थी। मैंने ब्लॉक की सभी १२ किनारों पर लम्बाई नापने, दोनों गढढों के रेडियस नापने, वेलनाकार गहराई नापने और कोनिकल भाग की गहराई नापने का निर्णय लिया। प्रत्येक नाप के लिए मुझे एक-एक तालिका बनानी थी और प्रत्येक रीडिंग 4 बार लेनी थी ताकि नाप में होने वाली त्रुटि को न्यूनतम (minimize) किया जा सके। इस प्रकार मुझे कुल 18 तालिकाएं बनाकर कुल 72 रीडिंग्स लेनी थीं। दूसरी ओर मेरे बैचमेट्स ने कुल तीन तालिकाएं (एक लम्बाई, एक चौड़ाई और एक ऊंचाई के लिए ) बनाने तथा कुल 12 रीडिंग्स लेने का निर्णय लिया। मेरे बैचमेट्स ने लगभग आधे घंटे में रीडिंग लेने का काम पूरा कर लिया। उसके बाद वे एक-एक करके डाक्टर रजत रे को रीडिंग्स चेक कराने के लिए ले जाने लगे। डाक्टर रजत रे ब्लॉक देखते और शीट पर टेबल देखते और प्रत्येक शीट पर रिपीट (repeat) शब्द लिखकर हस्ताक्षर करके बिना कोई टिप्पणी किये शीट लौटा देते। जब १०-१२ स्टूडेंट्स के साथ ऐसा हो चुका तब अन्य स्टूडेन्ट्स चिंता में पड़ गए तथा शीट डाक्टर रजत रे के पास ले जाने से रूक गए। एक्सपेरिमेंट प्रारम्भ करने के लगभग ढाई घंटे बाद मेरा प्रयोग पूरा हुआ और मैं अपना ब्लॉक और रीडिंग शीट लेकर डाक्टर रजत रे के पास गया। उन्होंने ब्लॉक देखा और शीट पर टेबल कॉउंट कीं। दो टेबल की रीडिंग्स चेक कीं और इसके बाद शीट पर वेरीफाइड शब्द लिख कर शीट अपने पास रोक कर सभी स्टूडेंट्स को अपने पास बुला कर उनसे कहा :
"Look here. Lacs of students perform experiments every day in this country. This involves lot of money and years of time every day. What counts is what they learn. Even if they perform experiments correctly, it does not add anything new to the glory of the nation. But If they do not learn then it is shere wastage of time and money and a great loss to the nation. What they should know first is that they should know what is expected from them. You were expected to behave like a student of B. Tech. and not like a student of seventh or eighth class. What you have done, you have repeated what you had done 6-7 years back. Had you been student of seventh or eighrth class, I would have accepted gladly. But for being a student of B. Tech. it is sign of immaturity."
देखिये ! देश में प्रतिदिन लाखों छात्र प्रयोग करते हैं। जिसमें ढेर सारा धन और प्रत्येक दिन वर्षों का समय व्यय होता है। मायने यह रखता है कि उन्होंने क्या सीखा। उनके ठीक प्रकार से प्रयोग करने पर भी देश के सम्मान में कोई बृद्धि नहीं होती। किन्तु यदि वे सीखते नहीं हैं तब यह मात्र समय और धन की बर्बादी और देश को होने वाली क्षति है। पहले उन्हें यह जानना चाहिए कि उनसे क्या अपेक्षित है। उनसे बी. टेक. के विद्यार्थी की तरह व्यवहार की अपेक्षा की गयी थी जब कि उन्होंने कक्षा 6-7 के विद्यार्थियों की तरह व्यवहार किया है। उन्होंने वह किया है जो वह 6-7 वर्ष पूर्व ही कर चुके थे। अगर आप कक्षा छह या सात के विद्यार्थी रहे होते तब मैंने इसे प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार कर लिया होता। किन्तु बी. टेक. का स्टूडेंट होने के लिए यह अपरिपक्वता की निशानी है।
इसके बाद डाक्टर रजत रे ने मेरी शीट दिखाकर पूछा कि क्या उनमें से किसी ने ऐसा किया है? किसी ने उत्तर नहीं दिया। इस पर उन्होंने मुझे छोड़ कर सभी को अगले सप्ताह प्रयोग ठीक से करने का निर्देश दिया।
डाक्टर रजत रे ने अपने विद्यार्थियों से जो कुछ कहा उसमें मुझे दो वाक्य अच्छे लगे। प्रथम तो यह कि बी. टेक. प्रथम वर्ष के छात्रों ने जो कुछ किया अगर वही कक्षा 6 या 7 के विद्यार्थियों ने किया होता तब इसे उचित मान लेते, दूसरे यह कि बी. टेक. प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों ने जो कुछ किया वह उनकी अपरिपवता की निशानी थी। डाक्टर रजत रे के इन शब्दों में एक बहुत बड़ा सन्देश छिपा हुआ है। यह सन्देश हम सब के व्यवहारिक जीवन के लिए बहुत महत्व का है।
अगर आप किसी विभाग में ५-६ वर्ष का कार्य करने का अनुभव रखने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी हैं और आपके अधीनस्थ कनिष्ठ अधिकारी और कर्मचारी कार्य करते हैं। आप समय- समय पर इन अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्य का निरीक्षण करते हैं। तब ऐसे अधिकारियों और कर्मचारियों के कार्य का मूल्यांकन विभाग में उनके कार्य करने के अनुभव के परिपेक्ष्य में किया जाना चाहिए। क्योंकि कनिष्ठ अधिकारियों और कर्मचारियों से उनके अनुभव के आधार पर ही कार्य की अपेक्षा की जा सकती है। आप अपने अनुभव के आधार पर उनसे कार्य की अपेक्षा नहीं कर सकते। यही आपके बच्चो के कार्य मूल्यांकन के लिए भी लागू होता है। आप पोस्ट ग्रेजुएट हैं और आप जो कुछ सूर्य के बारे में जानते हैं उसके जाने जाने की अपेक्षा आप अपने कक्षा 5 में पढ़ रहे बच्चे से नहीं कर सकते।
बचपन बहुत अच्छा होता है, युवा होने पर भी बचपन की यादें सुख देतीं हैं किन्तु जहां तक युवावस्था में आपकी कार्य पद्यति, आपकी आदतों, आपके ज्ञान एवं आचरण के सम्बन्ध में है इनमें यदि बचपन की झलक दिखती है तब यह गंभीर दोष है। समाज आप से परिस्थितियों में श्रेष्ठ और विवेक से परिपूर्ण कार्य और निर्णय की अपेक्षा करता है। आपके उच्चाधिकारी भी आपके कार्य का मूल्यांकन करते समय आपसे अपेक्षित के अनुसार ही मानदंड बनाकर कार्य का मूल्यांकन करेंगे। जो कुछ आप से अपेक्षित है वही आपका दायित्व भी है। मेरा विचार है कि प्रत्येक व्यक्ति को वह करना चाहिए जो उससे अपेक्षित है और प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति से उसकी अपेक्षा करनी चाहिए जो ऐसे दूसरे व्यक्ति से अपेक्षित है।
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