Saturday, December 5, 2015

न करें दाता का अपमान


मित्रो !
     जो ख़ुशी मिली नहीं उसकी चाहत में जो खुशियाँ मिलीं हैं उनका व्यर्थ में गँवा देना स्वयं की मूर्खता और खुशियाँ देने वाले का अपमान है। 
    जो मिला नहीं उसका गम नहीं, जो मिला है वह कम नहीं। गोस्वामी तुलसी दास जी ने उचित ही कहा है "जाही विधि राखे राम ताही विधि रहिये।"


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