Tuesday, November 29, 2016

देव भी हम, दानव भी हम We are divine, We are demon

  • देव भी हम, दानव भी हम 
    मित्रो !
    महाभारत युद्ध भूमि में प्रारंभ में जो अर्जुन हिम्मत हार कर युद्ध न करने की बात करता है वही अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से ज्ञान पाकर महाभारत का श्रेष्ठ योद्धा बनकर युद्ध करता है। श्रीमद भगवद गीता के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के अंदर सतो, रजो और तमो, तीन गुणों वाली उसकी अपनी प्रकृति होती है। इन गुणों के लक्षण सात्विकी, राजसी और तामसी होते हैं। सात्विकी लक्षण साधु प्रवृत्ति, राजसी लक्षण क्षत्रियोचित और तामसी लक्षण राक्षसी प्रवृत्ति के जनक होते हैं। प्रकृति के इन तीन गुणों में साम्यावस्था नहीं होती। व्यक्ति की प्रकृति में जिस समय जिस गुण की प्रधानता होती है, मनुष्य उस गुण के प्रभाव में उसी गुण से सम्बद्ध आचरण करता है। इसी कारण किसी समय क्रूरता पूर्ण आचरण करने वाला व्यक्ति किसी अन्य समय पर दयालुता का आचरण करता दिखाई देता है। 
    जब तक मनुष्य की प्रकृति के गुणों की शक्ति (strength) में परिवर्तन नहीं होता वह तीनो गुणों में प्रधान गुण के प्रभाव में उसी गुण के अनुरूप एक समान आचरण उस समय तक करता रहता है जब तक उसकी प्रकृति में गुणों की शक्तियों (strengths) में परिवर्तन होने से किसी अन्य गुण की प्रधानता नहीं हो जाती। मनुष्य अपने आचरण, ज्ञान, रहन-सहन और खान-पान में परिवर्तन से अपनी प्रकृति के तीन गुणों के शक्तियों में परिवर्तन कर सकता है। मनुष्य की प्रकृति के तामसी और राजसी गुणों पर विजय ही दैवत्व प्राप्ति की यात्रा (Journey to Divinity) है।
    प्रत्येक व्यक्ति सतो, रजो और तमो तीन गुणों वाली उसकी अपनी प्रकृति से प्रभावित हुआ सात्विकी, राजसी और तामसी प्रकृति का आचरण करता है। प्रकृति के इन तीन गुणों में परिवर्तन किये बिना वह अपना स्वाभाव और आचरण नहीं बदल सकता।

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