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Thursday, July 26, 2018

तेरा ईश्वर मेरा ईश्वर YOUR GOD AND MY GOD


मित्रो!
     ईश्वर आस्था का विषय है। हर व्यक्ति का अपना ईश्वर होता है। समस्या उस समय उत्पन्न होती है जब कोई व्यक्ति अपने ईश्वर को दूसरों पर थोपने का प्रयास करता है। इसका कारण ईश्वर के प्रति हमारी अज्ञानता है।
YOUR GOD AND MY GOD
          God is the matter of faith. Every person has his own God. Problem arises when a person tries to impose his own God on others. The reason for this is our ignorance towards God.



Saturday, June 16, 2018

आस्था या पर्यटन FAITH OR TOURISM


मित्रो !
      मेरे विचार से दुर्गम स्थानों पर देवालय बनाने का उद्देश्य मनुष्य के मन में ईश्वर के प्रति आस्था को और अधिक सुदृढ़ करने का रहा था।  वर्तमान में अनेक देवालयों के दुर्गम रास्तों को सुगम रास्तों में बदले जाने से ऐसे स्थान आस्था के केंद्रों के बजाय पर्यटन स्थल अधिक बनते जा रहे हैं जिससे लगातार ईश्वर के प्रति आस्था कमजोर हो रही है।
      ऐसा होने से पर्यावरण और प्रकृति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। तीर्थ स्थलों की पवित्रता भी प्रभावित हो रही है।
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Saturday, April 22, 2017

ईश्वर के चित्र या सुविचार का मोल

मित्रो !
     ईश्वर का कोई चित्र या मूर्ति जब तक हमारे अंदर ईश्वर के प्रति श्रद्धा और विस्वास जागृत नहीं करती तब तक हमारे लिए उसकी कोई उपयोगिता नहीं होती। इसी प्रकार जब तक कोई उपदेश या सुविचार हमारे अंदर के जमीर को नहीं झकझोरता तब तक उनका हमारे लिए कोई मोल नहीं होता।

       Unless a picture or idol of God does not awaken our reverence and faith in God, the picture or idol is usefulness for us. Similarly, unless a sermon or good thought shakes the conscience within us, they have no value for us. 


Friday, September 30, 2016

सबका ईश्वर एक : One God for All

मित्रो !
      वह जो सृष्टि का कारण है, वह जो जगत का पालनहार भी है और संहारक भी है, वह जो दया का सागर है, वह जो कर्मों के फलों का दाता है, वह जो दोषियों को दण्डित करने वाला है, वह जो निष्पक्ष न्यायाधीश है, वह जो सबकी रचना करता है, वह जो सबके बारे में सब कुछ जानता है, वह जिसका न तो आदि है और न ही जिसका अंत है, जिसका विस्तार अनंत है, वह जो कण-कण में समाया हुआ है, वह जो खंड-खंड होकर भी अखंड है, वह जिसे अपनी सृष्टि से प्यार है, वह जो अपनी संतानों के बीच प्रेम देखना चाहता है, वह जो प्रेम का भूखा है, वह जो सर्वोपरि, सर्वश्रेष्ठ, सर्वज्ञानी है, वही ईश्वर है। मैं उस ईश्वर को प्रणाम करता हूँ।
          हम ऊपर उल्लिखित गुणों वाले किसी ईश्वर की कल्पना ही कर सकते हैं, कोई मूर्ति नहीं बना सकते क्योंकि एक ही क्षण पर ऐसी किसी वस्तु जो अनंत विस्तार लिए हो और किसी छोटे कण में भी समायी हुयी हो की मूर्ति या चित्र कैसे बनाया जा सकता है। हम ऐसे गुणों को निरूपित करने वाले किसी प्रतीक की कल्पना ही कर सकते हैं। प्रतीक कुछ भी हो सकता है, प्रतीक अच्छा दिखता है या नहीं इसका ईश्वर से कोई सम्बन्ध नहीं होता। ईश्वर के स्मरण के लिए आवश्यक होता है उसमें विश्वास व्यक्त करना और उसकी सत्ता को स्वीकार करना। जो लोग प्रतिक के बिना ईश्वर का स्मरण कर सकते हैं उनके लिए ईश्वर के प्रतीक की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
     मेरे विचार से किसी भी धर्म के अनुयायियों को ऐसा ईश्वर मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। प्रतीकों पर भी कोई विवाद नहीं करना चाहिए। भिन्न भिन्न प्रतीकों को भी लेकर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

       One who is creator of this universe, one who is savior as well as destroyer of the nature, one who is ocean of compassion, one who gives us fruits of our actions, One who punishes the guilty, one who is fair judge, One who creates all, one who knows everything about everyone, one who has neither beginning nor end, whose dimensions are infinite, he who dwells in every particle, he who, although fragmented, is undivided, one who loves his creation, one who loves to see love among all beings, one who is hungry of love, He who is paramount, supreme, omniscient, he is the God. I bow to the God.


Sunday, May 15, 2016

कर्मों का समर्पण

मित्रो !
     यदि तुम्हें ईश्वर में विश्वास है तब अपना प्रत्येक कर्म ईश्वर को समर्पित करते हुए करो। ऐसा करके तुम कर्म-फल के बंधन से मुक्त हो जाओगे और प्रतिकूल कर्म-फल मिलने पर भी तुम विचलित नहीं होगे।

     If you have faith in God then while performing any act, dedicate it to God. By doing so you'll be free from the bondage of karma-fruit and then even if the outcome of karma is unfavourable, you will not be deterred by it.








Saturday, March 19, 2016

कितने अज्ञानी हैं हम HOW IGNORANT WE ARE

मित्रो !


     ईश्वर के प्रति श्रद्धा और भक्ति में डूबा हुआ मनुष्य ईश्वर के साथ प्रेम में बंध जाता है। नश्वर प्रेम में पुरुष स्त्री को और स्त्री पुरुष को अप्रिय लगने वाला कोई कार्य नहीं करते। किन्तु बिडम्बना यह है कि मनुष्य का ईश्वर के साथ अमर प्रेम होने पर भी वह ईश्वर को अप्रिय अनेक कार्य करता रहता है।


Wednesday, March 16, 2016

पत्थर में भी ईश्वर


मित्रो !
        ईश्वर एक सोच है, एक विश्वास है। विश्वास का कोई रूप, रंग और आकार नहीं होता। विश्वास के अनुसार वह सर्वत्र विद्यमान है। उसके इसी गुण के कारण उसका एहसास किसी भी जड़ या चेतन में किया जा सकता है।



Saturday, February 20, 2016

आस्थावान को ही दिखता है ईश्वर : Only Devotee Sees the God

  • मित्रो !
             जिस व्यक्ति की ईश्वर में आस्था होती है वह व्यक्ति ईश्वर की उपस्थिति को किसी भी समय अनुभव कर सकता है। अनास्थावान ईश्वर की उपस्थिति को कभी भी अनुभव नहीं कर सकता क्योंकि अनास्थावान का ईश्वर होता ही नहीं। 
            ईश्वर के लिए, उसमें आस्था रखने वाले और उसमें आस्था न रखने वाले, सभी उसके बच्चे हैं किन्तु आस्था रखने वालों के लिए उनका ईश्वर है और अनास्था रखने वालों के लिए ईश्वर जैसा कुछ भी नहीं है। ऐसी स्थिति में अनास्थावान का ईश्वर से साक्षात्कार होने पर भी वह ईश्वर को नहीं देख सकेगा।

Wednesday, October 8, 2008

मेरी प्रार्थना

मैं अपनी प्रार्थना का विश्लेषण करने पर इसे तीन भागों में विभक्त कर पाता हूँ ।
भगवान में आस्था एवं विश्वास (स्तुति)
प्रार्थना के इस भाग के अंतर्गत हम सर्वशक्तिमान, सर्वविद्यमान और सर्वज्ञाता का अस्तित्व स्वीकारते हैं और उस के अनेकानेक गुणों का बखान करते हैं । उसको हम अपना अत्यन्त निकट हितैषी मानते हैं । उसे सभी लौकिक और अलौकिक बस्तुओं और सुखों का दाता मानते हैं । उसमें अपनी आस्था और विश्वास व्यक्त करते हैं ।
दोष-स्वीकृति और क्षमा याचना
प्रार्थना के इस भाग के अंतर्गत हम सर्वज्ञाता से हम से जाने और अनजाने में हुयी त्रुटियों और अपराधों के लिए क्षमा माँगते हैं । इससे हमारे विचार निर्मल होते हैं और भविष्य में गलतियाँ न करने की प्रेरणा मिलती है । हमें अनेकानेक मामलों में ग्लानि और पश्चात्ताप की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। 
कल्याण की भावना
प्रार्थना के इस भाग के अंतर्गत हम सर्वशक्तिमान से अपने और जगत के समस्त प्राणियों के लिए सुख एवं समृद्धि प्रदान करने की कामना करते हैं । सभी को सद्मार्ग पर ले चलने की कामना करते हैं । 
मैं समझता हूँ की मेरी प्रार्थना अपने में पूर्ण है और इसमें कुछ जोड़ने अथवा इससे कुछ कम करने की आवश्यकता नहीं है । 
मैं नहीं जानता कि  आप किस धर्म और सम्प्रदाय के अनुयायी हैं मेरी जिज्ञासा है कि क्या आपकी प्रार्थना में भी यही तीन भाग हैं। यदि नहीं तब मैं अपनी प्रार्थना में क्या जोडूं या कम करूँ ताकि  प्रार्थना पूर्ण हो जाय। यदि आपकी प्रार्थना में भी यही तीन भाग हैं तब मेरी जिज्ञासा यह है कि  दो  विभिन्न  धर्मों के लोग एक समय में एक ही स्थान पर बैठकर प्रार्थना क्यों नहीं कर सकते। प्रश्न यह भी उठता है कि यदि एक पूर्ण प्रार्थना में उपरलिखित तीन भाग ही होते है, तब विभिन्न धर्मों के होते हुए भी सभी के लिए एक सर्वमान्य सारभौमिक प्रार्थना क्यों नहीं हो सकती ।
MY PRAYER
On analyzing my prayer, I can divide it into three parts:
(i) Expression of faith in the Almighty
In this first part of my prayer, I express my faith in the Supreme power. I remember Him in so many ways, sometimes in few words and sometimes in so many words. I feel that He is the infinite source of energy and is owner of benevolent powers. He gives his blessings to all and forgives me and all for all our sins. In Hindi, this part of my prayer may be called as “Stuti”.
(ii) Confession before the Almighty
In this second part of my prayer, I confess my sins those would have been committed knowingly or unknowingly. I feel that He knows all about my deeds। I surrender before Him and apologize for my wrong doings. I pray for His forgiveness। In Hindi, I may call it “Samarpan aur chhamayachna”.
(iii) Wish
In this last third part of my prayer, I wish that He should bestow all of us with happiness and prosperity. He should lead us kindly light. In Hindi we may call it “apani aur sabhi ke kalian ki bhawana”.
In my opinion, my prayer is complete and nothing is required to be added or deleted. I don’t know which concept of religion you follow, to which sect you belong, my quest is;Whether your prayer differs from my prayer? If it is so, then how I can make my prayer a complete PRAYER. If, your prayer is the same as the prayer of mine, then why we cannot exchange our prayers. If, you also believe in omnipresence of God, then why we cannot offer our prayers by sitting together at the same place. And my last quest is:Why there cannot be a universally acceptable prayer for all?