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Tuesday, December 12, 2017

गुमराह होता आदमी : The Misguided Man

मित्रो !
            मनुष्य अपने को ईश्वर के रंग में रंगने के बजाय ईश्वर को ही अपने अनेक रंगों में रंगने में व्यस्त है। ऐसा करके वह अपनी सीमित सोच से असीमित की रचना का असफल प्रयास कर रहा है।
            रचना से रचयिता सभी मायनो में बड़ा होता है। ईश्वर इस जगत में समस्त जड़ और चेतन, जिनमें मनुष्य भी शामिल है, का रचयिता है। इसलिए जगत में समस्त जड़ और चेतन से ईश्वर बड़ा है। अतः किसी भी जड़ या चेतन में ईश्वर की रचना कर पाने की योग्यता और क्षमता नहीं है।
            Man is busy in painting the picture of God in his many colors instead of dyeing himself in the color of God. By doing so, he is making an unsuccessful attempt to create the Infinite with his limited capacities.

            A creator, in all respects, is always  greater than his creation. God is the creator of this Universe and all inanimates and animates including a man. Therefore, God, in all respects is greater than all animates and inanimates. Therefore, no animate or inanimate has ability and the capability to create God.

Thursday, October 13, 2016

सर्वोच्च एकल ईश्वर : Supreme One God

मित्रो !
      ईश्वर का विस्तार ऐसा है जिसका न कोई प्रारम्भ है और न ही जिसका कोई अंत है अतः उसका वर्णन कर पाना मनुष्य की पहुँच से परे है। मेरा मानना है कि ईश्वर को मानने वाले लोग मोटे तौर पर ईश्वर के बारे में मानते हैं कि ईश्वर
1. इस सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (cosmos) का रचयिता और नियंता है;
2. सर्वशक्तिमान, सर्वविद्यमान और सर्वज्ञानी है;
3. सर्वोच्च (Supreme) है, उसके समान या उससे बड़ा कोई दूसरा नहीं है।
     यदि ऊपर उल्लिखित गुणों वाले ईश्वर की कल्पना करें तब ईश्वर के ऊपर किसी अन्य ईश्वर या ईश्वर के समान्तर किसी दूसरे ईश्वर अथवा ईश्वर के नीचे उसके समतुल्य किसी ईश्वर के होने की कल्पना नहीं की जा सकती क्योंकि ऐसा होने पर ईश्वर सर्वोच्च नहीं रह जायेगा। ऐसी स्थिति में महत्वपूर्ण प्रश्न यह उठता है कि भिन्न-धर्मों में भिन्न-भिन्न ईश्वर अथवा एक ही धर्म में अलग-अलग लोंगों के अलग-अलग ईश्वर क्यों हैं।
      एक ऐसी विशालकाय पहाड़ी की कल्पना करते हैं जो किसी भी मनुष्य द्वारा अगम्य है और जिस पर प्रत्येक स्थान पर भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल खिले हुए हैं। इसके तलहटी में इसके चारों ओर मनुष्य खड़े हैं जी पहाड़ी को देख रहे हैं। स्पष्ट है पहाड़ी की ओर देखने वाला कोई भी व्यक्ति पहाड़ी का सीमित क्षेत्र ही देख पायेगा, भिन्न-भिन्न व्यक्ति पहाड़ी पर अलग-अलग फूल होने की बात कहेंगे। अगर प्रत्येक व्यक्ति से कहा जाय कि वह पहाड़ी का चित्र बनाये तब प्रत्येक व्यक्ति उसने जो कुछ देखा है वैसा ही चित्र बनाएगा। किन्तु किसी भी व्यक्ति द्वारा बनाया गया चित्र पहाड़ी की प्रतिकृति (Replica) नहीं होगी क्योंकि पहाड़ी के बारे में उसका ज्ञान सीमित और अपूर्ण है। यही स्थिति ईश्वर की प्रतिकृति (Replica) बनाने वालों की है, उनके द्वारा ईश्वर के बनाये गए चित्र या मूर्तियां ईश्वर की प्रतिकृतियां नहीं है क्योंकि वे संपूर्ण ईश्वर का वर्णन नहीं करतीं। उनमें ईश्वर को देखने वाला उतना ही ईश्वर देखता है जितना वह ईश्वर के बारे में ज्ञान रखता है। 

     ईश्वर सर्वत्र व्याप्त होने के बाद भी अदृश्य है, उसका दर्शन केवल आस्थावान मनुष्यों द्वारा ज्ञान चक्षुओं (eyes) द्वारा ही किया जा सकता है। सर्वत्र व्याप्त होने के कारण उसे प्रतिकृति रखने या उसकी प्रतिकृति होने का कोई औचित्य या आवश्यकता नहीं है, प्रतिकृतोयों की रचना या कल्पना मनुष्य की अपनी की हुयी है। इन प्रतिकृतियों की रचना मनुष्य द्वारा ईश्वर में उसकी अपनी आस्था और ईश्वर के बारे में उसके अपने ज्ञान के आधार पर हुयी है। विभिन्न मनुष्यों और समाजों में ईश्वर में उनकी आस्था और ज्ञान में भिन्नता के कारण प्रतिकृतियों में असमानता और भिन्नता आ गयी है। 

Friday, October 7, 2016

ईश्वर के प्रति अज्ञानता : IGNORANCE ABOUT GOD

मित्रो !
          जब सम्पूर्ण जगत की रचना करने वाला ईश्वर एक है तब ईश्वर क्या है, वह क्या चाहता है और क्या करता है, को लेकर अलग-अलग लोंगों के अलग-अलग विचार होने का कारण मनुष्य का ईश्वर के प्रति अज्ञानी या अल्प ज्ञानी होना ही है।

 
        When the creator of whole universe is one God then concept of separate God, by the different people, in the context of what God is, what He wants and what He does is due to our ignorance or incomplete knowledge about God.