Friday, October 2, 2015

झूठे के लिए जब कोई झूठ, झूठ नहीं रहता


मित्रो !
        किसी व्यक्ति को किसी मामले में कुछ गिने-चुने व्यक्तियों के समक्ष झूठ बोलने तक ही एहसास रहता है कि वह झूठ बोल रहा है। जब वह उसी मामले में अनेक व्यक्तियों के समक्ष झूठ बोल चुका होता है तब उसके मन में यह विचार नहीं आता कि वह झूठ बोल रहा है। उसके बाद झूठ को बोलने वाला व्यक्ति आत्म-विस्वास से भरा हुआ उस झूठ को ऐसे बोलता है जैसे वह सच बोल रहा हो। झूठ, झूठ बोलने वाले की भी मति भ्रमित कर देता है। झूठ का हर परिस्थिति में परित्याग करना ही उचित होता है।


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