मित्रो !
कुस्ती एक खेल है जो प्रतिद्वंदी को पटखनी देने के साथ ही समाप्त हो जाता है। जहाँ पर विजयी पराजित प्रतिद्वंदी को पटखनी देने के बाद इस इरादे से कि पराजित भविष्य में खड़ा न हो सके उसे अपाहिज बना देने का कृत्य करता है तब ऐसा खेल कुस्ती न होकर कुस्ती की आड़ में बलवान द्वारा कमजोर पर किया गया घातक हमला होता है।
सभ्य संस्कृति की पैरवी करने वाले किसी भी व्यक्ति को न तो ऐसा खेल खेलना चाहिए और न ही किसी सभ्य व्यक्ति को ऐसे खेल का समर्थन करना चाहिए। ऐसी संस्कृति सभ्य लोगों की संस्कृति नहीं हो सकती। इसे बर्बरता ही कहा जा सकता है। ऐसे खेल का समर्थन करने वाले भी बर्बरता के समर्थक ही कहे जा सकते हैं।
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