मित्रो !
सत्य कथन दो श्रेणियाँ में रखे जा सकते है। एक श्रेणी के अन्तर्गत वे सत्य कथन रखे जा सकते हैं जिन पर समय और परिस्थितयों का कोई प्रभाव नहीं होता, दूसरी श्रेणी के अन्तर्गत वे सत्य कथन रखे जा सकते हैं जिनका सत्य होना समय और परिस्थितयों पर निर्भर होता है।
दो और दो मिलकर चार होते हैं। यह ऐसा सत्य कथन है जो अब से पहले भी सत्य था, वर्तमान में भी सत्य है और आने वाले समय में भी सत्य रहेगा। ऐसे सत्य को हम सारभौमिक सत्य मान सकते हैं। दूसरा उदाहरण हम सर्दी से बचने के लिए कम्बल ओढ़ने का लेते हैं। कथन "आजकल कम्बल ओढ़ना हितकर है।", सामान्य परिस्थितयों में सर्दी ऋतु के लिए सत्य कथन है किन्तु यही कथन गर्मी ऋतु के लिए असत्य कथन है। एक और उदहारण पानी की एक खाली टंकी जो पानी से लगातार भर रही है, का लेते हैं। जिस क्षण पर टंकी आधी ऊँचाई तक भरी थी, पूछने पर एक व्यक्ति बताता है कि टंकी आधी भरी है, उस क्षण पर यह कथन कि "टंकी आधी भरी है" सत्य कथन है किन्तु इस क्षण से न तो पूर्व के किसी क्षण पर और न ही इस क्षण के बाद के किसी क्षण के लिए यह कथन कि "टंकी आधी भरी है" सत्य कथन होगा। इन दोनों उदाहरणों में कथन का सत्य होना परिस्थिति और समय पर निर्भर करता है।
मेरा विचार है कि सारभौमिक सत्य कथनों के अतिरिक्त ऐसे अन्य कथनों जिनका सत्य होना समय और या परिस्थितयों पर निर्भर करता है उनको प्रयोग में लाने से पूर्व उनके सत्य होने पर विचार किया जाना चाहिए।
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