मित्रो !
प्रत्येक जीवित व्यक्ति के पंच-तत्वों से बने शरीर में पांच कर्मेन्द्रियों और पांच ज्ञानेन्द्रियों के अतिरिक्त मन, बुद्धि और अहंकार भी होते हैं। अहंकार के प्रभाव में ही जीवात्मा शरीर को अपना मानता है तथा शरीर द्वारा किये कर्मों का अपने को कर्त्ता और कृत कर्मों के फलों का अपने को भोक्ता मानता है। शरीर में इसी अहंकार से ग्रसित जीवात्मा ही व्यक्ति का "मैं" (I) होता है।
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