Thursday, December 29, 2016

अहंकार तो आप में भी है


मित्रो !

प्रत्येक जीवित व्यक्ति के पंच-तत्वों से बने शरीर में पांच कर्मेन्द्रियों और पांच ज्ञानेन्द्रियों के अतिरिक्त मन, बुद्धि और अहंकार भी होते हैं। अहंकार के प्रभाव में ही जीवात्मा शरीर को अपना मानता है तथा शरीर द्वारा किये कर्मों का अपने को कर्त्ता और कृत कर्मों के फलों का अपने को भोक्ता मानता है। शरीर में इसी अहंकार से ग्रसित जीवात्मा ही व्यक्ति का "मैं" (I) होता है।
अहंकार की अनुपस्थिति में व्यक्ति के अंदर अपना "मैं" नहीं रह जाएगा। ऐसी परिस्थिति में व्यक्ति को कर्मों के फलस्वरूप मिलने वाले पारितोषक या दंड के लिए भागी नहीं ठहराया जा सकेगा, वह कर्म और कर्म के फल को अंगीकार नहीं करेगा। व्यक्ति के शरीर को कोई "मैं" संबोधित करने वाला भी नहीं रहेगा।

No comments: