मित्रो !
मेरा अपना
मानना है कि
जीएसटी में अन्य
देशों को माल
निर्यात किये जाने
की स्थिति में
ऐसी सप्लाई को
अंतर्राज्यीय वाणिज्य या व्यापार
के क्रम में
सप्लाई मानकर कर राशि
का भुगतान प्राप्त
कर या बैंक गॉरन्टी
और बांड प्राप्त
कर माल निर्यात
किये जाने की
शर्त और निर्यात
के प्रमाण देने
पर ऐसी धनराशि
बापस किये जाने
की व्यवस्था अनुचित
और अवैध है।
मेरे द्वारा ऐसा
मानने के निम्नलिखित
कारण हैं।
जीएसटी लगने से
पूर्व कुछ वस्तुओं
के भारत के
बाहर निर्यात करने
पर एक्सपोर्ट ड्यूटी
का भुगतान करना
होता था। जीएसटी
लगने के बाद
भी इसमें कोई
परिवर्तन नहीं हुआ
है। जीएसटी लगने
के पूर्व भारत
में निर्मित माल
पर, माल को
निर्माण स्थल से
हटाए जाने (On removal of goods) पर सेन्ट्रल
एक्साइज ड्यूटी लगती थी
किन्तु निर्यात के मामलों
में एक्साइज ड्यूटी
के सम्बन्ध यह
व्यवस्था लागू थी
कि निर्यात के
लिए कारोबारी माल
तभी निर्माण स्थल
से हटा सकेगा
जब या तो
वह निहित एक्साइज
ड्यूटी की धनराशि
का बांड या लेटर आफ अंडरटेकिंग दे दे या
फिर निहित एक्साइज
ड्यूटी का भुगतान
कर दे और
निर्माण स्थल से
माल हटाए जाने
की तिथि से
छह माह के
अंदर माल निर्यात
किये जाने का
साक्ष्य दे, अन्यथा
बांड दिए जाने
की अवस्था में
उससे एक्साइज ड्यूटी
की धनराशि वसूल
कर ली जाती थी।
माल निर्यात किये
जाने के सम्बन्ध
में न तो
वैट के अंदर
और न ही
केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम
में कोई प्रतिबन्ध
था। माल निर्यात
के साक्ष्य कारोबारी
या तो रिटर्न के साथ
दे देता था
अथवा कर निर्धारण
के समय दे
देता था। माल
का निर्यात प्रमाणित
होने पर निर्यात
बिक्री पर करमुक्ति
मिल जाती थी
और कारोबारी निर्यात
हुए माल में
निहित इनपुट टैक्स
क्रेडिट की धनराशि
को बापस पाने
का अधिकारी हो
जाता था। जीएसटी
लगने के साथ
ही अब केवल
छह वस्तुओं पर
सेन्ट्रल एक्साइज लागू रह
गया है। इन छह
वस्तुओं में से
केवल एक वस्तु
तम्बाकू और तम्बाकू
उत्पाद ही जीएसटी
के अंतर्गत आते
हैं। जीएसटी के
अन्तर्गत आने वाले
माल में से
केवल तम्बाकू उत्पादों
को छोड़कर शेष
सभी वस्तुओं पर
एक्साइज के अंतर्गत
बनाये गए प्राविधान
लागू नहीं रह
गए हैं।
जीएसटी लगने पर
कारोबारी पर जीएसटी
के अंतर्गत आने
वाले माल का
निर्यात करने पर
निर्यात से पूर्व
कोई कर देय
(Due) नहीं होता और
निर्यात के लिए
माल चिन्हित होने
के साथ ही
निर्यात प्रक्रिया में आ
जाता है, Customs Clearance होने
के साथ ही
उसे निर्यात के
साक्ष्य प्राप्त हो जाते
हैं। इन साक्ष्यों
के आधार पर
वह निर्यात पर
छूट पाने का हकदार हो जाता है।
न तो जीएसटी लगने से पूर्व ही एक्साइज ड्यूटी का भुगतान करने या एक्साइज ड्यूटी की
धनराशि का बांड या लेटर आफ अंडरटेकिंग देने के आधार पर निर्यात पर करमुक्ति मिलती थी
और न ही जीएसटी के अंतर्गत इस आधार पर माल का निर्यात हुआ मान लिया जायेगा। निर्यात
के साक्ष्य जो जीएसटी लगने से पूर्व मान्य थे वही जीएसटी लगने के बाद भी मान्य होंगे। जीएसटी में निर्यात प्रारम्भ होने से पूर्व कोई
ऐसा कर नहीं है जिससे निर्यातक को छूट लेनी हो । ऐसी स्थिति में उस event जो कर से
मुक्त है और इवेंट के प्रारम्भ होते ही इवेंट के करमुक्त होने के साक्ष्य हों तब इवेंट
पर कोई कर की धनराशि देय कैसे हो सकती है। मेरी समझ से परे है कि जीएसटी से पूर्व जब
निर्यात सप्लाई को जीरो रेटेड सप्लाई बिना
कोई अंडरटेकिंग या बांड लिए या बिना कोई कर की धनराशि जमा कराये किया जाता रहा है तब
जीएसटी में निर्यात सप्लाई को जीरो रेटेड किये जाने के लिए अंडरटेकिंग या बांड लिए
जाने अथवा कर की धनराशि जमा कराने की क्या आवश्यकता पड़ गयी है। क्या ऐसा कदम निर्यातकों
के लिए निराशा और हताशा का कारण नहीं बनेगा? क्या निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं
पड़ेगा? क्या जीएसटी की कम्प्लाइंस कोस्ट (Compliance cost) नहीं बढ़ेगी?
निर्यात के पूर्व कर जमा करने के लिए
Integrated Goods and Services Tax Act, 2017 की धारा 7 की उपधारा (5) में निर्यात
को निम्नप्रकार "supply in the course of inter-State trade or
commerce" में काल्पनिक परिभाषा देकर शामिल किया गया है :-
(5) Supply of goods or services or both,—
(a) when the supplier is located in India and the place of supply is
outside India;
(b) to or by a Special Economic Zone developer or a Special Economic
Zone unit; or
(c) in the taxable territory, not being an intra-State supply and not
covered elsewhere in this section,
shall be treated to be a supply of goods or
services or both in the course of inter-State trade or commerce.
यहां पर
उल्लेखनीय है कि
अधिनियम में यह Deeming clause क्लॉज
किस उद्देश्य से
बनाया गया है का उल्लेख
नहीं किया गया है। इसी धारा
में वास्तविक inter-State supply of goods or services or
both" को भी "supply of goods or
services or both in the course of inter-State trade or commerce" माने जाने
का प्राविधान किया
गया है। अतः
यह माना जा
सकता है निर्यात
पर भी कर
लगाया गया है।
Section 16 में zero rated
supply परिभाषित किया गया
है। Zero rated supply में export of goods or services or
both; को भी शामिल
किया गया है
और इनके सम्बन्ध
में निर्यात को
करमुक्त मानते हुए निहित
इनपुट टैक्स क्रेडिट
की धनराशि और
जमा किन गयी
धनराशि (जमा की
गयी धनराशि को
कर कहा गया
है जो कि
अनुचित है) की
बापसी का प्राविधान
किया गया है।
यह धारा निम्नप्रकार
है।
Zero rated supply.
16. (1) “Zero rated
supply” means any of the following supplies of goods or services or both,
namely:—
(a) export of goods or services or both; or
(b) supply of goods or services or both to a Special Economic Zone
developer or a Special Economic Zone unit.
(2) Subject to the provisions of sub-section (5)
of section 17 of the Central Goods and Services Tax Act, credit of input tax
may be availed for making zero-rated supplies, notwithstanding that such supply
may be an exempt supply.
(3) A registered person making zero rated supply
shall be eligible to claim refund under either of the following options,
namely:—
(a) he may supply goods or services or both under
bond or Letter of Undertaking, subject to such conditions, safeguards and
procedure as may be prescribed, without payment of integrated tax and claim
refund of unutilised input tax credit; or
(b) he may supply goods or services or both,
subject to such conditions, safeguards and procedure as may be prescribed, on
payment of integrated tax and claim refund of such tax paid on goods or services
or both supplied, in accordance with the provisions of section 54 of the
Central Goods and Services Tax Act or the rules made thereunder.
धारा 5 की
उपधारा (1) जिसके
द्वारा inter-State supply पर कर
लगाया गया है.
धारा 7 की
उपधारा (5) जिसमे
export supply को भी supply in the course of
inter-State trade or commerce माने
जाने का प्राविधान
किया गया है
तथा धारा 16
जिसमें export supply के
Zero rated supply होने का
उल्लेख किया गया
है के एक
साथ पढ़ने पर
निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते हैं
:-
(1) export supply एक zero rated supply है।
धारा 5(1)
सपठित धारा 7(5) जो
कर लगाया गया
है वह एक्सपोर्टर
को बापसी योग्य
है।
(२) एक्सपोर्ट
सप्लाई करमुक्त है और
एक्सपोर्ट किये गए
माल में निहित
इनपुट टैक्स क्रेडिट
की धनराशि कारोबारी
को बापसी योग्य
है।
(३) एक्सपोर्ट
के पूर्व जमा
किया जाने वाले
कर का भुगतान
ऐच्छिक (Optional) है।
कारोबारी चाहे तब
कर राशि के
स्थान पर लेटर
आफ अंडरटेकिंग या
बांड भी दे
सकता है।
यहां पर मैं
माननीय उच्चतम न्यायलय (Supreme Court) द्वारा
दिए गए कुछ
निर्णयों का उल्लेख
करना चाहूंगा :-
(1) M/s Bhawani Cotton
Mills Ltd. v. State of Punjab & Anr, Date of Judgment April 10, 1967:
(Supreme Court)
"If a person is
not liable for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from
him with a possible contingency of refund at a later stage will not make the
original levy valid."
(2) Steel Authority of
India Limited vs. State of Orissa, Date of Judgment February 25, 2000 (Supreme
Court)
"In
Bhawani Cotton Mills Ltd. vs. State of Punjab & Anr., (1967) 3 SCR 577,
this Court said, - If a person is not liable for payment of tax at all, at any
time, the collection of a tax from him, with possible contingency of refund at
a later stage, will not make the original levy valid; because, if particular
sales or purchase are exempt from taxation altogether, they can never be taken into
account, at any stage, for the purpose of calculating or arriving at the
taxable turnover and for levying tax."
(3) THE COMMISSIONER, HINDU
RELIGIOUS ENDOWMENTS, MADRAS Vs. SRI LAKSHMINDRA THIRTHA SWAMIAR OF SRI SHIRUR
MUTT. Date of judgment April 16, 1954 (Constitution Bench)
"A neat definition
of what "tax" means has been given by Latham C. J. of the High Court
of Australia,in Matthews v. Chicory Marketing Board(1). A tax", according
to the learned Chief Justice, "is a compulsory exaction of money by public
authority for public purposes enforceable by law and is not payment for
services rendered". This definition brings out, in our opinion, the essential
characteristics of a tax as distinguished from other forms of imposition which,
in a general sense, are included within it.
It is said that the essence of taxation is compulsion,
that is to say, it is imposed under statutory power without the taxpayer's
consent and the payment is enforced by law. The second characteristic of tax is
that it is an imposition made for public purpose without reference to any
special benefit to be conferred on the payer of the tax. This is expressed by
saying that the levy of tax is for the purposes of general revenue, which when
collected revenues of the object of a tax is not to confer any special benefit
upon any particular individual, there is, as it is said, no element of quid pro
quo between the taxpayer and the public authority(1). Another feature of
taxation it; that as it is a part of the common burden, the quantum of
imposition upon the taxpayer depends generally upon his capacity to pay."
(4) A. V. Fernandez vs. The State Of Kerala Judgment dated April 02, 1957
(Supreme Court)
"There is a broad distinction between the provisions contained
in the statute in regard to the exemptions of tax or refund or rebate of tax on
the one hand and in regard to the non-liability to tax or non-imposition of tax
on the other. In the former case, but for the provisions as regards the
exemptions or refund or rebate of tax, the sales or purchases would have to be
included in the gross turnover of the dealer because they are prima facie
liable to tax and the only thing which the dealer is entitled to in respect
thereof is the deduction from the gross turnover in order to arrive at the net
turnover on which the tax can be imposed. In the latter case, the sales or
purchases are exempted from taxation altogether. The Legislature cannot enact a
law imposing or authorising the imposition of a tax thereupon and they are not
liable to any such imposition of tax. If they are thus not liable to tax, no
tax can be levied or imposed on them and they do not come within the purview of
the Act at all. The very fact of their non- liability to tax is sufficient to
exclude them from the calculation of the gross turnover as well as the net
turnover on which sales tax can be levied or imposed. If this distinction is
borne in mind, it is clear that s. 26 of the Act
enacts a provision with regard to nonliability of these transactions to tax and
these transactions were therefore taken out of the purview of the Act. We are
therefore of opinion that the non-obstante provision contained in s. 26 of the Act has the effect of taking these
transactions out of the purview of the Act with the result that the dealer is
not required nor is he entitled to include them in the calculations of his
turnover liable to tax thereunder."
यह विचारणीय है कि कर विधि (tax law) में तीन मुख्य स्टेप्स होते हैं।
1. Declaration of Levy;
2. Quantification or assessment of tax; and
3. Recovery of tax.
कर की वसूल की गयी धनराशि राज्य के राजस्व का हिस्सा बनता है और इसका प्रयोग किसी को व्यक्तिगत लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं किया जा सकता है। कर के भुगतान का विकल्प करदाता को उपलब्ध नहीं होता है। यहां पर निर्यात के मामले में (1) कर जमा करने या जमा न करने का विकल्प दिया गया है और जहां कर जमा किया जाता है (2) वसूल की गयी धनराशि उसी व्यक्ति को बापस करने के लिए होता है होती है जिससे
वसूल की जाती है, यह धनराशि राजस्व का भाग नहीं बनता है। उपर्युक्त निर्णयों के प्रकाश में यह प्रकाश में आता है कि निर्यात के सम्बन्ध में कर नहीं लगाया गया है।
यह भी विचारणीय है कि Integrated
Goods and Services Tax Act, 2017 की long title "An Act to make a
provision for levy and collection of tax on inter-State supply of goods or
services or both by the Central Government and for matters connected therewith
or incidental thereto." से भी यह प्रकाश में नहीं आता है कि IGST Act, 2017 निर्यात सप्लाई पर कर लगाने से सम्बंधित है अथवा inter-state
supply के साथ-साथ निर्यात सप्लाई पर भी कर लगाने से सम्बंधित है। संविधान का अनुच्छेद 265 निम्नप्रकार है :-
265. No tax shall be levied or collected except by authority of
law.
अतः जो कर leviable नहीं है तब कर के नाम पर किसी धनराशि की वसूली अवैध है। अतः निर्यात सप्लाई के सम्बन्ध में निर्यातक से किसी धनराशि के जमा किये जाने की व्यस्था का न तो कोई औचित्य है और न ही ऐसी व्यवस्था कानूनी
तौर पर वैध है।
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