मित्रो !
स्व चरित्र या किसी व्यवस्था में सुधार करने के इच्छुक व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने द्वारा किये गए कृत्यों में आसक्ति त्याग कर कृत्यों के अच्छे या बुरे होने का निष्पक्ष निर्णय स्वयं करे और यदि वह ऐसा करने में सक्षम न हो तब उसे चाहिये कि वह किसी तटस्थ आलोचक का मत जाने।
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