मित्रो !
जब जब हम मन, बुद्धि और शरीर से किसी क्रिया को बार-बार करते हैं तब कुछ समय बाद हम उस क्रिया को करने के अभ्यस्त हो जाते हैं और उसके बाद उस क्रिया को करने के लिए हमें सोचना - विचारना नहीं पड़ता। विचारणीय यह है कि हम अपने व्यक्तित्व विकास के लिए ऐसा क्यों नहीं कर सकते ?
व्यक्तित्व के ऐसे कुछ क्षेत्र निम्नप्रकार हो सकते हैं
क्रोध पर नियंत्रण, सहनशीलता, मृदु भाषण, जरूरतमंदों की सहायता, अहिंसा, दया भाव, आपसी सहयोग, क्षमा, सदभावना, आभार, सत्य भाषण, समयनिष्ठा, ईमानदारी, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, आदि।
(जिस क्रम में क्षेत्र / गुण अंकित किये गए हैं, वे महत्ता प्रदर्शित नहीं करते।)
When
we do any act repeatedly applying our mind, intellect and body, we become
accustomed of doing it and thereafter, we can perform such act without much
thinking. The question is that why we do not apply this aspect for development
of our personality?
Few such aspects / fields of our personality may be as follows:
Few such aspects / fields of our personality may be as follows:
Control
over anger, Tolerance, Soft speech, Help to needy, Non-violence, Compassion,
Mutual co-operation, Forgiveness, Harmony, Gratitude, Truth, Punctuality,
Honesty, Cleanliness, Environment protection, etc. (Aspects mentioned here are
not in any specific order).
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