Friday, March 27, 2015

मित्र और शत्रु बनाने में वाणी की भूमिका



मित्रो !
शायद वाणी सबसे बड़ा माध्यम है जिसके द्वारा हम बाह्य जगत से जुड़ते हैं। मधुर वाणी में लिपटे अच्छे और सृजनात्मक विचार मधुर वाणी बोलने वाले और सुनने वाले, दोनों के लिए हितकारी होते है, वहीं कटु वाणी में लिपटे दूषित और विध्वंशक विचार ऐसी वाणी बोलने वाले और सुनने बाले, दोनों के लिए अहितकारी होते है। अच्छे और सृजनात्मक विचारों वाले संवाद भी यदि कटु वाणी में बोले जांय तब सुनने वाले पर ऐसे संवादों का प्रभाव कम पड़ता है। मित्र और शत्रु बनाने में वाणी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है

स्वर (Tone) वाणी का आभूषण होता है। कर्कश स्वरों वाली वाणी की अपेक्षा मधुर स्वरों वाली वाणी अधिक गहरा प्रभाव छोड़ती है। कर्कश आवाज को मधुर आवाज में तो नहीं बदला जा सकता किन्तु कर्कश आवाज की तीव्रता को उचित शब्दों के चयन से कम किया जा सकता है। इस उद्देश्य से संवाद के साथ आदर, स्नेह या मैत्री सूचक शब्द, जो भी उपयुक्त हों, जोड़कर कर्कश आवाज के प्रभाव को कम किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त कर्कश स्वर वाले व्यक्ति को संवाद लम्बा न खींच कर संक्षिप्त रखना चाहिए और सीधी तथा सरल भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
हलाहल = Poison


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