जीएसटी में करदेयता के लिए टर्नओवर की सीमा, जिससे टर्नओवर कम होने की स्थिति में सप्लायर जीएसटी के दायरे में नहीं आएंगे, की संस्तुति किये जाने का दायित्व जीएसटी काउन्सिल को संविधान के अनुच्छेद 279A में निम्नप्रकार सौंपा गया है :
(4) The Goods and Services Tax Council shall make recommendations to the Union and the States on—
(a) ...
(b) ...
(c) ...
(d) the threshold limit of turnover below which goods and services may be exempted from goods and services tax;
"आवर्त की वह अवसीमा जिसके नीचे माल और सेवाओं को माल और सेवा कर से छूट प्रदान की जा सकेगी;"
टर्नओवर की ऐसी देहरी (doorway) या सीमा-रेखा (threshold) जिसके नीचे माल और सेवायें, माल और सेवा कर से मुक्त रखी जा सकतीं हैं। "threshold" शब्द के हिंदी में अर्थ चौखट, दहलीज़, देहली, द्वार, देहरी, सीमा रेखा, डेवढ़ी, आदि होते हैं। जिस तरह मकान या कमरे की देहरी (दहलीज) के बाहर के लोग मकान या कमरे के बाहर होते हैं उसी तरह जहाँ टर्नओवर पर कर लगाया जाता है वहां पर टर्नओवर की थ्रेशोल्ड लिमिट से नीचे टर्नओवर रखने वाले लोग, बिना किसी किन्तु या परन्तु (without any if and but) के कर दायरे के बाहर होते हैं।
प्रस्तावित जीएसटी लॉ में प्रत्येक ऐसे व्यक्ति जो पंजीकृत है अथवा जिसका पंजीयन प्राप्त करने का दायित्व है के द्वारा माल और सेवाओं की सप्लाई पर कर का भुगतान किये जाने का दायित्व डाला गया है। जीएसटी काउन्सिल द्वारा प्रस्तावित किये गए सीजीएसटी लॉ ड्राफ्ट में पंजीयन का दायित्व निर्धारित करने के लिए अधिनियम की धारा 22 की उपधारा (1) में स्पेशल केटेगरी स्टेट्स के लिए वार्षिक एग्रीगेट टर्नओवर 10 लाख रूपया से अधिक होना और अन्य राज्यों के लिए ऐसा टर्नओवर 20 लाख रूपया से अधिक होना निम्नप्रकार प्रस्तावित किया गया है।
22. (1) Every supplier shall be liable to be registered under this Act in the State or Union territory, other than special category States, from where he makes a taxable supply of goods or services or both, if his aggregate turnover in a financial year exceeds twenty lakh rupees:
Provided that where such person makes taxable supplies of goods or services or both from any of the special category States, he shall be liable to be registered if his aggregate turnover in a financial year exceeds ten lakh rupees.
किन्तु धारा 24 में निम्नलिखित श्रेणियों के व्यक्तियों के मामले में यह प्राविधान लागू नहीं किया गया है।
(i) persons making any inter-State taxable supply;
(ii) casual taxable persons making taxable supply;
(iii) persons who are required to pay tax under reverse charge;
(iv) person who are required to pay tax under sub-section (5) of section 9;
(v) non-resident taxable persons making taxable supply;
(vi) persons who are required to deduct tax under section 51, whether or not separately registered under this Act;
(vii) persons who make taxable supply of goods or services or both on behalf of other taxable persons whether as an agent or otherwise;
(viii) Input Service Distributor, whether or not separately registered under this Act;
(ix) persons who supply goods or services or both, other than supplies specified under sub-section (5) of section 9, through such electronic commerce operator who is required to collect tax at source under section 52;
(x) every electronic commerce operator;
(xi) every person supplying online information and data base access or retrieval services from a place outside India to a person in India, other than a registered person; and
(xii) such other person or class of persons as may be notified by the Government on the recommendations of the Council.
जीएसटी काउन्सिल को टर्नओवर की ऐसी धनराशि बतानी थी जिससे टर्नओवर की धनराशि कम होने पर सप्लायर को जीएसटी के दायरे से बाहर रहना था तथा जिस सप्लायर का टर्नओवर जीएसटी कौन्सिल द्वारा बताई गयी लिमिट के बराबर या उससे अधिक होता वह सप्लायर जीएसटी के दायरे में होता और उसे कर देना होता। अगर 10 लाख या 20 लाख के टर्नओवर को संविधान द्वारा बांछित टर्नओवर की अवसीमा मान लें तब जिन सप्लायर का टर्नओवर 10 लाख या 20 लाख होगा वे जीएसटी के दायरे में होंगे किन्तु जीएसटी काउन्सिल द्वारा प्रस्तावित अधिनियम की धारा 24 की उपधारा (1) के अनुसार ऐसे सप्लायर्स को पंजीयन लेना है जिनका टर्नओवर 10 लाख या 20 लाख न होकर इससे अधिक हो अर्थात अगर किसी सप्लायर का वार्षिक टर्नओवर ठीक 10 लाख या 20 लाख है तब उसे पंजीयन लेने की बाध्यता नहीं है और उसकी कर देयता नहीं है। इस प्रकार हम देखते हैं कि प्रस्तावित माल और सेवा कर अधिनियम की धारा 22 की उपधारा (1) में दी गयी 10 लाख या 20 लाख रूपया टर्नओवर की धनराशियां संविधान के अनुच्छेद 279A के क्लॉज (4) के सब-क्लॉज (डी) में उल्लिखित टर्नओवर की थ्रेसहोल्ड लिमिट नहीं हैं। अधिनियम के किसी अन्य प्राविधान में भी संविधान में उल्लिखित Threshold लिमिट का उल्लेख नहीं है। संविधान के ऊपर संदर्भित प्राविधान में वाक्यांश "The Goods and Services Tax Council shall make recommendations to the Union and the States on-" में "shall" शब्द का प्रयोग किया गया है। स्पष्ट है संविधान संशोधन के समय पार्लियामेंट और स्टेट असेम्बलीज इस बात से अवगत थीं कि जीएसटी कम्प्लायंस की जटिलताओं को देखते हुए एक विशिष्ट सीमा तक टर्नओवर रखने वाले समस्त छोटे सप्लायर्स को जीएसटी के बाहर रखना आवश्यक होगा। जीएसटी काउन्सिल ने प्रस्तावित अधिनियम की धारा 24 लाकर अनेक श्रेणियों के छोटे - छोटे (कम टर्नओवर वाले) सप्लायर्स को भी जीएसटी के दायरे में ला दिया है। मेरे विचार से टर्नओवर की अवसीमा का निर्धारित न किया जाना और प्रस्तावित अधिनियम में धारा 24 का बनाया जाना संविधान के संगत प्राविधानों के अनुरूप नहीं है।
मेरा विचार है कि छोटे व्यक्तियों को जीएसटी से बाहर रखने के लिए टर्नओवर का निर्धारण करते समय revenue centered approach रही है जबकि टर्नओवर की ऐसी धनराशि सामाजिक-आर्थिक जटिलताओं, जीएसटी के अनुपालन में आने वाली कठिनाइयों और करदाताओं पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को ध्यान में रख कर तय की जानी थी। वैसे भी ध्यान देने योग्य है कि जीएसटी के दायरे से बाहर रहने वाले लोगों को इनपुट टैक्स क्रेडिट की सुविधा नहीं होगी। ऐसी स्थिति में माल या सेवाओं के प्राप्तकर्त्ता (Recipient) की क्षमता में उनके द्वारा माल या सेवाओं के सप्लायर्स को भुगतान की गयी कर की धनराशि तो सरकार को मिलनी ही है।
इसके अतिरिक्त जीएसटी में स्वैच्छिक पंजीयन प्राप्त करने का भी प्राविधान रखा गया है। ऐसी स्थिति में 10 लाख या 20 लाख रूपया से कम वार्षिक टर्नओवर रखने वाला कोई व्यक्ति यदि यह समझता है कि वह जीएसटी प्राविधानों का अनुपालन कर सकता है तब स्वैच्छिक पंजीयन प्राप्त करके वह कर योग्य व्यक्तियों की श्रेणी में आ सकता है।
प्रस्तावित अधिनियम के अनुसार अंतर्राज्यीय सप्लाई करने के मामलों में टर्नओवर की सीमा लागू नहीं की गयी है। अंतर्राज्यीय सप्लाई पर लगने वाले कर में से कर का बंटवारा केंद्र सरकार और उस राज्य के बीच होगा जहां माल या सेवा का सप्लाई का स्थान होगा। अगर छोटे कारोबारियों के मामले में छूट दे दी जाय तब उनके द्वारा की जाने वाली सप्लाई पर कर नहीं मिलेगा किन्तु उन्हें ऐसे माल या सप्लाई में प्रयोग होने वाले इनपुट्स पर दिए गए कर का लाभ नहीं मिलेगा। यह इनपुट टैक्स केंद्र सरकार और उस राज्य के बीच बंटेगा जिसमें कारोबारी स्थित है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इंटरनेट के युग में अंतर्राज्यीय स्तर पर (यहां तक कि इंटरनेशनल स्तर पर भी) छोटे स्तर पर माल बेचना आसान हो गया है। अनेक पढ़े - लिखे बेरोजगार युवा इसका लाभ उठाकर अपना गुजारा कर रहे हैं। हमारे हस्तशिल्पकार भी अपनी वस्तुएं देश के विभिन्न राज्यों या अन्य देशो में भेज रहे हैं। इनमें से अनेक ऐसे लोग हैं जिनका वार्षिक टर्नओवर 10 या 20 लाख से बहुत कम दो-चार लाख रूपया भी नहीं होगा। आप मार्केट प्लेस की सुविधा उपलब्ध कराने वाली वेबसाइट्स eBay.in या amazon.in किसी अन्य वेबसाइट पर जाइये वहां पर आपको छोटे-छोटे आइटम बेचने वाले अनेक लोग मिल जाएंगे। अगर ऐसे लोगों को जीएसटी के अंतर्गत पंजीयन लेना पड़ा और कर देना पड़ा (जैसा कि प्रस्तावित है) तब उनके सामने अपना तुच्छ व्यापार बंद कर देने का विकल्प ही रह जायेगा। बेरोजगार होने पर पता नहीं वे क्या करेंगे। निर्यात के मामलों में थ्रेशोल्ड लागू करने पर सरकार को कोई नुकसान नहीं होगा अपितु इनपुट टैक्स के रूप में दी गयी धनराशि केंद्र और राज्य सरकार को प्राप्त होगी जो पंजीयन लेने पर (थ्रेशोल्ड लागू करने पर) प्राप्त नहीं होगी।
अंत्योदय की बात सभी सरकारें करती है। लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि गरीब व्यक्ति को अमीर व्यक्ति के साथ खड़ा कर देने या गरीब व्यक्ति की गिनती अमीर व्यक्तियों में कर लेने मात्र से गरीब अमीर नहीं हो जाता।
मेरा विचार है कि कि छोटे उद्योग-धंधों को बचाने के लिए और छोटे कारोबारियों को बेरोजगार होने से बचाने के लिये -
(1) जीएसटी काउन्सिल को टर्नओवर की Threshold लिमिट, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 279A के क्लॉज (4) के उपवाक्य (d) में प्राविधान है, तय करनी चाहिए; और
(2) सरकारों को टर्नओवर की थ्रेशोल्ड लिमिट बिना किसी किन्तु और परन्तु के (without any if and but) राज्यों के अंदर सप्लाई, अंतर्राज्यीय सप्लाई और निर्यात में सप्लाई के सभी मामलों में लागू करना चाहिए।