मित्रो !
One who is creator of this Universe, one who is savior as well as destroyer of the nature, one who is ocean of compassion, one who gives us fruits of our actions, One who punishes the guilty, one who is fair judge, One who creates all, one who knows everything about everyone, one who has neither beginning nor end, whose dimensions are infinite, he who dwells in every particle, he who, although fragmented, is undivided, one who loves his creation, one who loves to see love among all beings, one who is hungry of love, He who is paramount, supreme, omniscient, he is the God. I bow to the God.
वह जो सृष्टि का कारण है, वह जो जो जगत का पालनहार भी है और संहारक भी है, वह जो दया का सागर है, वह जो कर्मों के फलों का दाता है, वह जो दोषियों को दण्डित करने वाला है, वह जो निष्पक्ष न्यायाधीश है, वह जो सबकी रचना करता है, वह जो सबके बारे में सब कुछ जानता है, वह जिसका न तो आदि है और न ही जिसका अंत है, जिसका विस्तार अनंत है, वह जो कण-कण में समाया हुआ है, वह जो खंड-खंड होकर भी अखंड है, वह जिसे अपनी सृष्टि से प्यार है, वह जो अपनी संतानों के बीच प्रेम देखना चाहता है, वह जो प्रेम का भूखा है, वह जो सर्वोपरि, सर्वश्रेष्ठ, सर्वज्ञानी है, वही ईश्वर है। मैं उस ईश्वर को प्रणाम करता हूँ।
हम ऊपर उल्लिखित गुणों वाले किसी ईश्वर की कल्पना ही कर सकते हैं, कोई मूर्ति नहीं बना सकते क्योंकि एक ही क्षण पर ऐसी किसी वस्तु जो अनंत विस्तार लिए हो और किसी छोटे कण में भी समायी हुयी हो की मूर्ति या चित्र कैसे बनाया जा सकता है। हम ऐसे गुणों को निरूपित करने वाले किसी प्रतीक की कल्पना ही कर सकते हैं। प्रतीक कुछ भी हो सकता है, प्रतीक अच्छा दिखता है या नहीं इसका ईश्वर से कोई सम्बन्ध नहीं होता। ईश्वर के स्मरण के लिए आवश्यक होता है उसमें विश्वास व्यक्त करना और उसकी सत्ता को स्वीकार करना। जो लोग प्रतिक के बिना ईश्वर का स्मरण कर सकते हैं उनके लिए ईश्वर के प्रतीक की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए।
मेरे विचार से किसी भी धर्म के अनुयायियों को ऐसा ईश्वर मानने में कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। प्रतीकों पर भी कोई विवाद नहीं करना चाहिए। भिन्न भिन्न प्रतीकों को भी लेकर किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
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