GST : A SUPPLY LEVIABLE
TO TAX
कर से उद्गृहणीय प्रदाय
मित्रो !
किसी भी अधिनियम को एक single piece of legislation मानकर पढ़ा जाता है। किसी टैक्स से सम्बंधित अधिनियम में टैक्स की लेवी के लिए तीन विन्दुओं पर घोषणा किया जाना अनिवार्य होता है।
1. टैक्स किस इवेंट, यथा आय, माल की बिक्री, माल की खरीद, माल की सप्लाई, सेवाओं की सप्लाई, माल का अंतरण, आदि, पर कर लेवी किया जायेगा।
2. कर लेवी का आधार क्या होगा यथा मूल्य का प्रतिशत, प्रति किलो ग्राम, प्रति लीटर, प्रति मीटर आदि।
3. व्यक्ति जो टैक्स की धनराशि का भुगतान करेगा और स्वतः टैक्स का भुगतान न करने पर ऐसे व्यक्ति से टैक्स की वसूली की जाएगी।
यदि इनमें से किसी एक विन्दु पर घोषणा नहीं की गयी है तब टैक्स लेवी किया गया है ऐसा नहीं माना जा सकता है। टैक्स से तात्पर्य जनता के प्रयोजनों के लिए सरकार द्वारा कानून द्वारा प्रवर्तनीय प्रक्रिया के अंतर्गत जनता से धन की अनिवार्य रूप से उगाही से होता है।
जहां
किसी टैक्स लॉ में इस प्रकार प्राविधान बनाये गए हों जिनके अनुपालन में अंततः उगाही
योग्य धनराशि अनिश्चय हो या फिर शून्य हो वहां टैक्स लेवी किया जाना नहीं माना जा सकता
है। ऐसा निम्नलिखित परिस्थितियों में हो सकता है।
1. कर की दर शून्य (zero) या निल (nil) निर्धारित
की गयी हो; अथवा
2. कर अधिनियम में एक प्राविधान टैक्स लगाने का
हो किन्तु दूसरा प्राविधान करमुक्ति (exemption) दिए जाने का हो; अथवा
3. कर अधिनियम में एक प्राविधान कर लगाने का हो
किन्तु दूसरा प्राविधान कर राशि कर दाता को बापस किये जाने (Refund) का हो; अथवा
4. कर अधिनियम में एक प्राविधान कर लगाने का हो
किन्तु दूसरा प्राविधान कर राशि का रिबेट (Rebate) दिए जाने का हो।
ऐसे
प्राविधान जिन संव्यवहारों पर लागू होते हैं उनके सम्बन्ध में सभी कार्यवाही करने पर
न तो करदाता पर कोई कर का बोझ पड़ता है और न ही सरकार को कोई राजस्व मिलता है। स्पष्ट
है इन संव्यवहारों को टैक्स लेवी क्लॉज में शामिल किये जाने के बाबजूद इन पर कोई कर
नहीं लगाया गया होता है। ऐसे संव्यवहारों के
टर्नओवर को टैक्स tax payer पेयर के सकल टर्नओवर में तो शामिल किया जा सकता है किन्तु
ऐसे टर्नओवर को कर योग्य टर्नओवर में शामिल नहीं किया जा सकता है।
ऐसा
सोचना कि जिन संव्यवहारों के लिए कर की दर शून्य या निल (nil) निर्धारित है, उन पर
कर उदग्राह्य (leviable) है क्योंकि कर की दर में संशोधन करके
कर लगाया जा सकता है, उचित नहीं है। क्योंकि कानून में संशोधन किसी भी प्राविधान में
किया जा सकता है, संशोधन की अपेक्षा में, संशोधन हो गया मानकर निर्णय नहीं लिया जा
सकता है। Dictionary meanings और Glossary of legal terms के अनुसार zero और nil शब्द
एक-दूसरे के पर्याय हैं। दोनों दरों पर कर निर्धारित करने से कोई राजस्व प्राप्त नहीं
हो सकता है।
कर योग्य
और करमुक्त को लेकर माननीय सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वश्री ए. वी. फर्नांडीज़
वनाम दि स्टेट ऑफ़ केरल, निर्णय दिनांक अप्रैल 02, 1957 में निम्नप्रकार महत्वपूर्ण
व्यवस्था दी है :-
"There
is a broad distinction between the provisions contained in the statute in
regard to the exemptions of tax or refund or rebate of tax on the one hand and
in regard to the non-liability to tax or non-imposition of tax on the other. In
the former case, but for the provisions as regards the exemptions or refund or
rebate of tax, the sales or purchases would have to be included in the gross
turnover of the dealer because they are prima facie liable to tax and the only
thing which the dealer is entitled to in respect thereof is the deduction from
the gross turnover in order to arrive at the net turnover on which the tax can
be imposed. In the latter case, the sales or purchases are exempted from
taxation altogether. The Legislature cannot enact a law imposing or authorising
the imposition of a tax thereupon and they are not liable to any such
imposition of tax. If they are thus not liable to tax, no tax can be levied or
imposed on them and they do not come within the purview of the Act at all. The
very fact of their non- liability to tax is sufficient to exclude them from the
calculation of the gross turnover as well as the net turnover on which sales
tax can be levied or imposed."
यहां पर माननीय उच्चतम न्यायलय ने दो तरह के करमुक्ति से सम्बंधित संव्यवहारों में अंतर किया है। एक प्रकार के ऐसे संव्यवहार हैं जिन पर कर लगाए जा सकने का अधिकार अधिनियम में प्राप्त नहीं है अर्थात ऐसे संव्यवहारों को अधिनियम से बाहर रखा गया है। उदहारण के लिए जीएसटी में Alcoholic
liquor for human consumption की सप्लाई को बाहर रखा गया है, अस्थाई तौर पर Petroleum
Crude, Diesel Oil, Petrol, Natural Gas और Aviation Turbine Fuel (ATF) को भी जीएसटी से बाहर रखा गया है। ऐसे संव्यवहारों के टर्नओवर को अधिनियम के अधीन कुल टर्नओवर में भी शामिल नहीं किया जा सकता है।
माननीय उच्चतम न्यायलय के अनुसार दूसरे प्रकार की करमुक्ति वह होती है जिसके सम्बन्ध में अधिनियम में exemption, refund या rebate का प्राविधान उपलब्ध होता है। जिन संव्यवहारों के सम्बन्ध में exemption,
refund या rebate के प्राविधान होते हैं उन संव्यवहारों के टर्नओवर को सकल टर्नओवर (Gross turnover) में शामिल किया जा सकता है किन्तु करयोग्य टर्नओवर (net
turnover) में शामिल नहीं किया जा सकता है। करयोग्य टर्नओवर ऐसे संव्यवहारों के मूल्यों का योग होता है जिन पर कर उदग्राह्य ( aggregate of values of transactions leviable to tax) होता है।
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