मित्रो
!
जीएसटी भारत में
अस्तित्व में आ
गया है यह
एक वास्तविकता है
किन्तु यह भी
एक वास्तविकता है
कि जीएसटी के कुछ
क्षेत्रों में छोटे-बड़े दोनों
प्रकार के कारोबारियों
को कठिनाईयां हो
रहीं हैं। ऐसी
स्थिति में
जीएसटी के पूर्व
मिल रहे राजस्व
में बढ़ोत्तरी भले
ही हो जाय
किन्तु दायरा बढ़ने से
जितना राजस्व प्राप्त
होना चाहिए उतना राजस्व प्राप्त होना संदिग्ध
है।
मेरा मानना
है जीएसटी के
नक़्शे भरने के
लिए अतिरिक्त जनशक्ति
की आवश्यकता होने
से कुछ लोगों
को रोजगार अवश्य
मिल सकता है
किन्तु यह भी
सत्य है कि
जिस स्वरुप में
जीएसटी लाया गया
है उससे छोटे
कारोबारों में लगे
अनेक लोग बेरोजगार
हो जाएंगे। छोटे
कारोबारियों पर जीएसटी
की कम्प्लायंस में
लगने वाले समय
और खर्च में
बढ़ोत्तरी होगी, उनके व्यापार
का दायरा सिकुड़
जायेगा। छोटे स्तर
पर ही सही
पर निर्यात घटेगा
और विदेशी मुद्रा
के अर्जन में
भी कमी आएगी।
छोटे कारोबारियों में
इंटीग्रेटेड टैक्स
के कर अपवंचन की
प्रवृत्ति बढ़ सकती
है।
मेरा यह
भी मानना है कि
यदि जीएसटी एक
बड़ा उद्देश्य है,
तब
इसको सफलता पूर्वक
लागू करने के
लिए बड़ी सोच
और सतर्कता की
आवश्यकता है। मेरे
विचार से संविधान
के प्राविधानों और
समय-समय पर
उच्चतम न्यायलय द्वारा दिए
गए निर्णयों को
ध्यान में रखकर
जीएसटी के अनेक
प्राविधानों को सरल, उपयोगी
और मैत्रीपूर्ण बनाया
जा सकता था।
सामजिक-आर्थिक दशाओं और
जटिलताओं (Socio-economic
conditions and complexities) को
ध्यान में रखकर
नीति विषयक निर्णय
लिए जाने की
आवश्यकता है।
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