Wednesday, June 3, 2015

प्रतिशोध

मित्रो !
प्रतिशोध की भावना का उदय बदले की भावना और क्रोध से होता हैं। प्रतिशोध की भावना मस्तिष्क में इतना असन्तुलन पैदा कर देती है कि व्यक्ति अपना हित भी संरक्षित नहीं रख पाता। प्रतिशोध की भावना से ग्रसित व्यक्ति प्रतिद्वन्द्वी को पराजित करने के बाद भी क्रोध की अग्नि में जलता रहता है।


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