Wednesday, June 3, 2015

क्षमा याचना : बदलता स्वरुप कितना उचित


मित्रो !

कभी न कभी गलतियां हम सभी से होतीं हैं। कुछ गलतियाँ ऐसी होतीं हैं जिनका परिणाम गलती करने वाले के लिए ही हानिकारक होता है तथा कुछ गलतियों के फलस्वरूप अन्य व्यक्ति को हानि होती है अथवा चोट या दुःख पहुँचता है। दूसरे प्रकार की गलती के लिए यदि हम दूसरे व्यक्ति के सामने शर्मिंदा होकर अपनी गलती को स्वीकार न करें तब हम अपने दिल पर एक बोझ सा महसूस करते हैं और ऐसे व्यक्ति से कटे-कटे से रहते हैं। लेकिन जब हम उस व्यक्ति जिसको हानि हुयी है अथवा चोट या दुःख पहुंचा है के समक्ष अपनी गलती पर शर्मिंदगी महसूस करते हुए उस व्यक्ति से अपनी गलती को माफ़ किये जाने का अनुरोध कर लेते हैं तब हल्कापन महसूस करते हैं। ऐसा करने पर हमारे अन्दर अपराध बोध की भावना समाप्त हो जाती है।
वर्तमान में अनेक लोग इसका दुरुपयोग भी कर रहे हैं। ऐसे लोग जान-बूझकर ऐसे वक्तव्य देते हैं जिनसे दूसरे व्यक्तियों का अपमान होता है और उनको दुःख पहुँचता है। जान-बूझकर ऐसा वक्तव्य देने वाले कोई शर्मिंदगी महसूस नहीं करते। जब उनके साथी उन्हें उनकी गलती का अहसास दिलाते हैं तब वे बड़ी ही आसानी से कह देते हैं "मेरे शब्दों से यदि किसी की भावनाएं आहत हुईं हों तब वे माफी माँगते हैं " . मेरे विचार से इसे क्षमा याचना विल्कुल नहीं कहा जा सकता है। वास्तव में जहाँ कोई किसी को जान-बूझकर आहत करता है वहाँ आहत करने वाले के अंदर गलती करने का अहसास ही नहीं होता। ऐसी स्थिति में गलती पर शर्मिंदा होने का प्रश्न ही नहीं उठता। यह आचरण न तो माफी मांगने के काबिल होता है और न ही माफी दिए जाने के काबिल। 
मेरे इन्हीं विचारों ने मुझे आपके सामने निम्नलिखित विचार प्रस्तुत किये जाने के लिए प्रेरित किया है :
अपनी गलतियों पर क्षमा माँगना और और दूसरे की गलतियों के लिए उसे क्षमा कर देना मनुष्य के चरित्र के दैवीय गुण है। क्षमा याचना करने वाला व्यक्ति अपने गलत कृत्य पर शर्मिंदगी अनुभव करता है। क्षमा याचना दिल से की जाती है, क्षमा याचना महज एक औपचारिकता नहीं है। क्षमा याचना मनुष्य को अपराध बोध से मुक्ति दिलाती है। दबाव में अथवा अनमने मन या ढंग से माँगी गयी क्षमा, क्षमा याचना नहीं कही जा सकती।


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