Wednesday, June 3, 2015

बढ़ते अपराधों पर अंकुश

मित्रो !
मेरा मानना है कि -
हमारी पुलिस के पास अपने क्षेत्र में होने वाले अपराधों और अपराधी प्रकृति के लोगों के सम्बन्ध में अभिसूचना एकत्रण के लिए अपना ख़ुफ़िया तंत्र होता है और अगर नहीं होता है तो ऐसा तंत्र होना चाहिए। यदि पुलिस को अपराध होने की जानकारी मिलती है और पुलिस पाती है कि मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट किसी पक्ष द्वारा दर्ज नहीं कराई गयी है तब उसे स्वतः मामले में तत्परता से 24 घंटे के अंदर प्राथमिक जाँच की कार्यवाही प्रारम्भ कर, प्राथमिक जाँच में प्रकाश में आये तथ्यों के आधार पर मजिस्ट्रेट से एफ. आई. आर. दर्ज करने के आदेश प्राप्त कर जाँच शुरू कर देनी चाहिए। इससे पुलिस के विरुद्ध एफ. आई. आर. दर्ज न करने का आरोप भी नहीं लगेगा और अपराधों पर नियंत्रण पाने में सफलता भी मिलेगी।


यदि अपराध में घायल व्यक्ति के इलाज को प्रारम्भ करने से पूर्व पीड़ित पक्ष द्वारा पुलिस में केस रिपोर्ट किये जाने की व्यवस्था में परिवर्तन कर केवल चिकित्सक द्वारा पुलिस को सूचित कर तुरंत इलाज प्रारम्भ करने की वाध्यता को बनाया जा सकता है तब पुलिस द्वारा अपराध की जांच के सम्बन्ध में ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं बनाई जा सकती? इसके लिए यदि आवश्यक हो तब सम्बंधित कानूनों में भी परिवर्तन किया जाना चाहिए। आवश्यकतानुसार पुलिस जनशक्ति बढ़ाई जानी चाहिये और गुप्त सेवा व्यय की धनराशि (secret service fund) बढ़ाई जानी चाहिये। 
इन्हीं विचारों से प्रेरित होकर मैंने यह विचार व्यक्त किया है।

कुछ अपराधों के मामले में पुलिस प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) की अपेक्षा में कार्यवाही शुरू नहीं करती। मेरे विचार से अपराधों को रोकने के लिए पुलिस को यह अधिकार दिया जाना चाहिए कि वह एफ. आई. आर. की प्रतीक्षा किये बिना उसको मिली सूचना के आधार पर प्राथमिक रिपोर्ट तैयार कर मजिस्ट्रेट से आज्ञा लेकर एफ. आई. आर. दर्ज कर जांच प्रारम्भ करे।


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