Friday, May 12, 2017

यह हम कहाँ आ गए हैं? Where we have reached.


 मित्रो !
         आजकल सभी क्षेत्रों में सामान्य रूप में ऐसा बहुत कुछ असामान्य घटित हो रहा है जो हमें याद दिलाता है कि यह कलियुग है। यहाँ प्यार, सत्य, करुणा, दान और धर्म जैसे तत्व कमजोर हो रहे हैं, उनकी परिभाषाएँ बदल रहीं हैं।

          यहां सत्य से उसके सत्य होने का प्रमाण माँगा जा रहा है, वासना को प्यार का नाम दे दिया गया है, बूढ़े माँ-बाप सहानुभूति के पात्र बन गए हैं, मानवीय रिस्तों का व्यापारीकरण हो गया है। भोलेपन और विश्वास को छला जा रहा है, इनको ब्लैकमेल के लिए प्रयोग किया जा रहा है। कामुक भूखे भेड़िये हर जगह घूम रहे हैं। नदियाँ प्यासीं हैं, हवा, पानी पर पहरे लगे हैं, संख्या बल बढ़ाने को धर्म का सशक्तिकरण माना जा रहा है। संतों का अकाल दिख रहा है, ईश्वर की तिजारत करने वाले बाबाओं की संख्या बढ़ रही है, स्वयं भू ईश्वर अनेक हैं। हमारी धरती जो कभी स्वर्ग तुल्य थी पर बोझ और उसका दोहन इतने बढ़ गए हैं कि वह काँप और कराह रही है। ------- हम भूल गए हैं कि हम लगातार गर्त में गिर रहे हैं।


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