Monday, July 3, 2017

जीएसटी के प्रति छोटे और मझोले कारोबारियों में असंतोष का कारण

मित्रो !
हमारे देश भारत में भी माल और सेवाओं पर कर लगाने की व्यवस्था जीएसटी (Goods and services tax) लागू हो गयी। माल और सेवा कर लगाए जाने से एक ओर जहां बड़े कारोबारियों में ख़ुशी है वहीं पर छोटे और मझले स्तर के व्यापारी इसके आने से खुश नहीं हैं। हमें यह समझना होगा कि छोटे और मझले स्तर के कारोबारियों के खुश न होने के पीछे क्या कारण हैं, उनकी क्या कठिनाइयां हैं। सरकार द्वारा अप्रत्यक्ष कर कारोबारियों के माध्यम से जनता से बसूला जाता है। अतः कारोबारियों को कोई दिक्कत तब तक नहीं होनी चाहिए जब तक उनके द्वारा जनता से कर बसूलने और इसका सरकार को भुगतान करने में कोई कठिनाई न हो, उनके व्यापारिक हित प्रतिकूल रूप में प्रभावित न हों और कर व्यवस्था का अनुपालन करने से उनका कोई अहित न हो। इसी के परिपेक्ष्य में यहां पर हम चर्चा करेंगे। 

भारतीय संविधान में जीएसटी लगाने से सम्बंधित संशोधन करते समय यह प्राविधान किया गया था कि जीएसटी काउन्सिल द्वारा टर्नओवर की ऐसी सीमा की संस्तुति आवश्यक रूप में की जाएगी जिसके नीचे टर्नओवर होने की स्थिति में माल और सेवाएं जीएसटी से मुक्त रहेंगी। किन्तु जीएसटी से सम्बंधित बनाये गए कानूनों से स्पष्ट है कि टर्नओवर की ऐसी कोई सीमा निर्धारित नहीं की गयी है। संशोधित संविधान के अनुच्छेद 279A के खंड (4) का उपखण्ड (घ) निम्नप्रकार है -
(४) माल और सेवा कर परिषद् निम्नलिखित के सम्बन्ध में संघ और राज्यों को सिफारिश करेगी --
(घ) आवर्त की वह अवसीमा जिसके नीचे माल और सेवाओं को माल और सेवा कर से छूट प्रदान की जा सकेगी;
(4) The Goods and Services Tax Council shall make recommendations to the Union and the States on—
(d) the threshold limit of turnover below which goods and services may be exempted from goods and services tax;
यहां यह ध्यान देने योग्य है कि "threshold limit of turnover" और "limit of turnover" का एक ही अर्थ नहीं है।  "threshold" शब्द विशेष महत्व का है, इसका हिंदी में अर्थ "दहलीज या देहरी" से होता है। अंग्रेजी में अर्थ "doorway, doorsill or entry point" से होता है।
जीएसटी से सम्बंधित बनाये गए कानूनों केन्दीय जीएसटी और राज्य जीएसटी में Special category States और अन्य राज्यों के मामलों में टर्नओवर लिमिट का उल्लेख निम्नप्रकार से किया गया है -
22. रजिस्ट्री करण के लिए दायी व्ययक्तिल 
(1) इस अधिनियम के अधीन प्रत्ये क प्रदायकर्ता, विशेष प्रवर्ग के राज्यों से भिन्नट ऐसे राज्यन या संघ राज्य्क्षेत्र में रजिस्ट्री कृत कराने के लिए दायी होगा, जहां वह माल या सेवाओं या दोनों का कराधेय प्रदाय करता है, यदि किसी वित्तीसय वर्ष में उसका संकलित आवर्त बीस लाख रूपए से अधिक है : 

परंतु जहां कोई व्यरक्तिम, विशेष प्रवर्ग के राज्यों में से किसी राज्यध से माल या सेवाओं या दोनों का कराधेय प्रदाय करता है, वहां वह रजिस्ट्री कृत किए जाने का दायी होगा, यदि किसी वित्तीलय वर्ष में उसका संकलित आवर्त दस लाख रूपए से अधिक है ।
(2) प्रत्येसक व्येक्तिज‍ जो, नि‍यत दि‍न से ठीक पूर्ववर्ती दि‍न, वि‍द्यमान वि‍धि‍ के अधीन अनुज्ञप्तिर‍ धारण करता है, नि‍यत दि‍न से अधि‍नि‍यम के अधीन रजि‍स्ट्रीजकृत होने के लि‍ए दायी होगा ।
22. (1) Every supplier shall be liable to be registered under this Act in the State or Union territory, other than special category States, from where he makes a taxable supply of goods or services or both, if his aggregate turnover in a financial year exceeds twenty lakh rupees:
Provided that where such person makes taxable supplies of goods or services or both from any of the special category States, he shall be liable to be registered if his aggregate turnover in a financial year exceeds ten lakh rupees.
(2) Every person who, on the day immediately preceding the appointed day, is registered or holds a licence under an existing law, shall be liable to be registered under this Act with effect from the appointed day.
24. कति‍पय मामलों में रजि‍स्ट्रीdकरण । धारा 22 की उपधारा (1) में अंतर्वि‍ष्ट कि‍सी बात के होते हुए भी, व्यक्ति‍यों के नि‍म्नलि‍खि‍त प्रवर्गों को इस अधि‍नि‍यम के अधीन रजि‍स्ट्रीपकृत कि‍या जाना अपेक्षि‍त होगा,--
(i) व्येक्तिो‍ जो अंतरराज्यिा‍क कराधेय पूर्ति‍ करते हैं ; 
(ii) कराधेय पूर्ति‍ करने वाले आकस्मि ‍क कराधेय व्य‍क्तिप‍ ;
(iii) व्यgक्तिव‍‍ जि‍ससे आरक्षि‍त प्रभार के अधीन कर अदा करना अपेक्षि‍त है ;
(iv) व्यतक्ति ‍ जि‍ससे धारा 9 की उपधारा (5) के अधीन कर अदा करना अपेक्षि‍त है ;
(v) कराधेय पूर्ति‍ करने वाले अनि‍वासी कराधेय व्यतक्ति ‍ ;
(vi) व्य क्ति्‍ जि‍ससे धारा 51 के अधीन कर की कटौती करना अपेक्षि‍त है चाहे इस अधि‍नि‍यम के अधीन पृथक रूप से रजि‍स्ट्रीाकृत हो या नहीं ; 
(vii) व्य)क्ति ‍ जो, चाहे अभि‍कर्ता के रूप में या अन्यकथा, अन्यक कराधेय व्ययक्‍ति‍यों की ओर से कराधेय मालों या सेवाओं अथवा दोनों की पूर्ति‍ करते हैं ; 
(viii) इनपुट सेवा वि‍तरक, चाहे इस अधि‍नि‍यम के अधीन पृथक रूप से रजि‍स्ट्रीाकृत है या नहीं ;
(ix) व्य)क्ति ‍ जो धारा 9 की उपधारा (5) के अधीन वि‍नि‍र्दि‍ष्‍ट पूर्ति‍ से भि‍न्नओ मालों या सेवाओं अथवा दोनों की ऐसे इलैक्ट्रा नि‍क वाणि‍ज्यत ऑपरेटर जि‍ससे धारा 52 के अधीन स्रोत पर कर एकत्र करना अपेक्षि‍त है, के माध्य म से पूर्ति‍ करता है ; 
(x) प्रत्येुक इलैक्ट्रा नि‍क वाणि‍ज्यउ ऑपरेटर ;
(xi) रजि‍स्ट्रीऑकृत व्यधक्ति2‍ से भि‍न्न , प्रत्येीक व्यमक्तिम‍ जो भारत से बाहर के स्थारन से ऑन लाइन सूचना और डाटा आधारि‍त पहुंच या सुधार सेवाओं भारत में कि‍सी व्यऑक्तिृ‍ की पूर्ति‍ करता है ;
(xii) ऐसे अन्य व्यीक्तिक‍ या व्य क्ति ‍यों का वर्ग जि‍न्हें केंद्रीय सरकार द्वारा परि‍षद् की सि‍फारि‍शों पर अधि‍सूचि‍त कि‍या जाए ।
24. Compulsary Registration in certain cases.- Notwithstanding anything contained in sub-section (1) of section 22, the following categories of persons shall be required to be registered under this Act,––
(i) persons making any inter-State taxable supply;
(ii) casual taxable persons making taxable supply;
(iii) persons who are required to pay tax under reverse charge;
(iv) person who are required to pay tax under sub-section (5) of section 9;
(v) non-resident taxable persons making taxable supply;
(vi) persons who are required to deduct tax under section 51, whether or not separately registered under this Act;

(vii) persons who make taxable supply of goods or services or both on behalf of other taxable persons whether as an agent or otherwise;
(viii) Input Service Distributor, whether or not separately registered under this Act;
(ix) persons who supply goods or services or both, other than supplies specified under sub-section (5) of section 9, through such electronic commerce operator who is required to collect tax at source under section 52;
(x) every electronic commerce operator;
(xi) every person supplying online information and database access or retrieval services from a place outside India to a person in India, other than a registered person; and
(xii) such other person or class of persons as may be notified by the Government on the recommendations of the Council.
टिपण्णी: इंग्लिश वर्जन के हिंदी ट्रांसलेशन में कुछ अंतर हैं किन्तु हिंदी वर्जन मेरे द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत बिल से लिया गया है। पुष्ट और अधिकृत वर्जन अंग्रेजी में है।
उपर्युक्त प्राविधानों का अध्ययन करने पर हम देखते हैं कि --
(a) धारा 22 की उपधारा (1) किन कारोबारियों से कर लिया जाना है को ध्यान में रख कर बनाई गयी है। निर्धारित टर्नओवर की लिमिट संविधान के अनुच्छेद 279A में उल्लिखित "Threshold limit of turnover" नहीं है। 
(b) धारा 22 की उपधारा (2) उस विशिष्ट वर्ग के कारोबारियों के लिए है जिनके पास जीएसटी लगाने के पूर्व के दिन में किसी कानून में लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन रहा था। इनमें से वे कारोबारी जिनका टर्नओवर 20 या दस लाख रूपया से कम रहा था को अलग नहीं किया गया है। प्राविधान को धारा 22 के अधीन भी नहीं किया गया है। उपधारा (1) और उपधारा (2) के स्वतंत्र प्राविधान हैं। अतः उपधारा (1) पर उपधारा (2) prevail करेगी।
(c) धारा 24 में उल्लिखित कारोबारियों को उनका टर्नओवर कितना भी कम क्यों न हो उनके लिए रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य बनाया गया है। 
अधिनियम में धारा 23 उन कारोबारियों के सम्बन्ध में है जिन्हें रजिस्ट्रेशन नहीं लेना है।
23. (1) The following persons shall not be liable to registration, namely:––
(a) any person engaged exclusively in the business of supplying goods or services or both that are not liable to tax or wholly exempt from tax under this Act or under the Integrated Goods and Services Tax Act;
(b) an agriculturist, to the extent of supply of produce out of cultivation of land.
(2) The Government may, on the recommendations of the Council, by notification, specify the category of persons who may be exempted from obtaining registration under this Act. 

इस धारा में टर्नओवर की सीमा के आधार पर कोई छूट नहीं दी गयी है जबकि संविधान की अपेक्षानुसार threshold limit of turnover इसी धारा के अंतर्गत निर्धारित कर सभी कारोबारियों पर लागू की जानी थी।
मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि टर्नओवर की सीमा निर्धारित करने से पूर्व विविधिताओं से भरे इस विशाल देश में कारोबारियों के आर्थिक और सामाजिक स्तर का अध्ययन करवाया गया था या नहीं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अप्रत्यक्ष करों के मामलों में (जिनमें कारोबारियों को कर जनता से बसूल कर सरकार को देना होता है) भी कारोबारियों पर आर्थिक बोझ पड़ता है। उन्हें अपना समय देने के अलाबा बही-खातों का रख-रखाव करने, विवरण तैयार करने के लिए अकाउंटेंट तथा कर का रिटर्न भरने तथा मामले में विधिक सहायता के लिए एक अधिवक्ता की भी जरूरत होती है। इनका वेतन / फीस का खर्चा उसे अपनी आय से वहन करना होता है। 
हमारे देश में वे लोग भी रहते है जो अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए माल और सेवाओं की सप्लाई करते हैं। वे लाभ कमाने के लिए कारोबार नहीं कर रहे हैं अपितु दो जून की रोटी कमाने के लिए माल और सेवाओं की बिक्री करते हैं। दिन-रात इसी उधेड़-बुन में लगे रहते हैं कि कैसे गुजरा होगा। उनमें से ऐसे भी हैं जो समय-समय पर भिन्न-भिन्न स्थानों पर लगने वाले मेलों आदि में अपनी स्टाल लगा लेते हैं, दीवाली आयी तो खील-खिलौनों या कुछ रूपया उधर लेकर बड़े कारोबारियों से 200-250 मिठाई के पैकेट्स लेकर सड़क किनारे तखत पर रख कर बेच लेते हैं, अगर उन्हें इसमें 1000-2000 रुपये भी मिल जांय तब खुश हो लेते हैं। होली आयी तो रंग-पिचकारी बेचने से भी नहीं चूकते। इनको जीएसटी की भाषा में "Casual Taxable Persons" ही कहेंगे। मुझसे पूछो तो मैं इन्हें जिंदगी से झूझते मजबूर लोग ही कहूँगा या फिर दो जून की रोटी के लिए भटकते लोग।
अच्छी नौकरी की चाह में हमारे देश में भारी संख्या में लोग पढ़ाई कर बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल कर लेते हैं, कम्प्यूटर का जमाना है वह भी सीख लेते हैं, आगे बढ़ते देश में इनकी जानकारी मजबूरी भी है। कैशलेस होने के लिए भी कम्प्युटर, मोबाइल की जानकारी आवश्यक है। ऐसे डिग्री धारकों को जब नौकरी नहीं मिलती तब उनमें से अनेक लोग हस्तशिल्प की वस्तुएं, खिलौने, रेडीमेड गारमेंट्स या अन्य छोटी वस्तुओं के फोटो स्कैन कर इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स पोर्टल पर डाल देते हैं। वहां इनकी खरीद प्रदेश, देश और विदेश तक के लोग कर लेते हैं। भुगतान ऑनलाइन पेमेंट गेटवे सर्विस प्रोवाइडर्स के माध्यम से बैंक अकाउंट में प्राप्त हो जाता है। इनमें से अनेक लोग ऐसे भी होंगे जिनकी बिक्री का टर्नओवर दो-चार लाख रूपया या उससे भी कम होगा किन्तु फिर भी कुछ न होने से कुछ तो अच्छा। इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स पोर्टल के माध्यम से कारोबार करने वाले बड़े कारोबारियों के मामले पकड़ने के विकल्प और भी हो सकते हैं। ऐसे लोगों को कर देने वाले कारोबारियों की श्रेणी में रखे जाने का क्या औचित्य हो सकता है। बिडम्बना यह भी है कि नौकरी करने वालों का टर्नओवर कितना भी हो उन पर जीएसटी की कोई बंदिश नहीं है।
अंतर्राज्यीय सप्लाई (inter-State supply) पर कर देयता के सम्बन्ध में न्यूनतम टर्नओवर की लिमिट लागू नहीं की गयी है। इसका परिणाम यह हुआ है कि 20 लाख तक टर्नओवर रखने वाले कारोबारी बिना टैक्स दिए अपने राज्य में माल की सप्लाई कर सकते हैं किन्तु वे अपने राज्य के बाहर बिना कर दिए बिक्री नहीं कर सकते हैं। अदा की जाने वाली धनराशि में अंतर भले ही कम हो किन्तु विचारणीय यह है राज्य के अंदर बिक्री करने पर जिस कारोबारी को जीएसटी की कम्प्लाइंस (अनुपालन) करने के लिए सक्षम नहीं माना गया उसे अन्तर्राज्यीय सप्लाई करने की स्थिति में जीएसटी की कम्प्लाइंस करने के लिए सक्षम मान लिया गया है। अगर अंतर्राज्यीय सप्लाई के मामलों में भी टर्नओवर की न्यूनतम सीमा लागू कर दी जाय तब क्या अंतर पड़ेगा पर विचार करने पर हम पाएंगे कि -- 
(1) जहां दूसरे राज्य के रजिस्टर्ड कारोबारी को सप्लाई होगी, केंद्र सरकार और उपभोक्ता राज्य दोनों को पूरा-पूरा कर मिल जायेगा। 
(2) जहां माल की सप्लाई दूसरे राज्य के उपभोक्ता को की जाएगी, उपभोक्ता राज्य को कर नहीं मिलेगा और इनपुट्स पर मिलने वाला कर उसे राज्य जहां से सप्लाई की जाएगी और केंद्र को उसी तरह और उतना ही, जितना माल की उस राज्य में सप्लाई पर प्राप्त होता, मिलेगा।
संविधान के अनुच्छेद 279A का खंड (7) निम्नप्रकार है --
(६) इस अनुच्छेद द्वारा प्रदत्त कृत्यों का निर्वहन करते समय, माल और सेवा कर परिषद् माल और सेवा कर की सामंजस्यपूर्ण संरचना और माल और सेवाओं के लिए सुव्यवस्थित राष्ट्रीय बाजार के विकास की आवश्यकता से मार्गदर्शित होगी।

(6) While discharging the functions conferred by this article, the Goods and Services Tax Council shall be guided by the need for a harmonised structure of goods and services tax and for the development of a harmonised national market for goods and services.
बाजार का सम्बन्ध माल और सेवाओं की आपूर्ति करने वालों और उसका उपभोग करने वालों से होता है। संविधान की मंशा रही है कि माल और सेवाओं के सम्बन्ध में माल और सेवाओं का एक राष्ट्रीय बाजार विकसित हो। यह तभी संभव है जब अंतर्राज्यीय बैरियर्स समाप्त हो जांय। किन्तु जो व्यवस्था की गयी है उसमें 20 लाख रूपया तक टर्नओवर रखने वालों के लिए यह बैरियर बने हुए हैं। यह भी विचारणीय है कि बनाई गयी व्यवस्था में भी राज्यों की सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले उपभोक्ता दूसरे राज्य में कर का भुगतान करके वस्तुएं अपने राज्य में लाकर उनका उपभोग करते हैं। ऐसी स्थिति में भी उपभोक्ता राज्य को कर प्राप्त नहीं होता है। अन्यथा भी जीएसटी के लगने से उत्पादक राज्यों को होने वाली संभावित राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिए लगाए गए सेस (Cess) का भुगतान भी अंततः उपभोक्ता राज्यों को ही करना है। मेरा विचार है कि राष्ट्रीय बाजार की स्थापना एक बड़ा उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही संविधान में "threshold limit of turnover below which goods and services may be exempted from goods and services tax" निर्धारित किये जाने की व्यवस्था की गयी है। ऐसी स्थिति में देश के अंदर जीएसटी के लिए छोटे कारोबारियों और उनसे खरीद करने वाले उपभोक्ताओं को भी एक राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराया जा सकता है।
डिजिटलाइजेशन की ओर अग्रसर हो रहे देश में इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स आपरेटर के माध्यम से माल की सप्लाई करने वाले छोटे कारोबारियों को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है न कि उनको कर के भुगतान से मिली छूट को समाप्त किये जाने की आवश्यकता है। 
बड़े देशों की तुलना में टर्नओवर की कर देयता के लिए न्यूनतम सीमा 20 लाख रूपया काफी कम रखी गयी है। जहां तक मुझे याद है, हमारे माननीय वित्त मंत्री भारत सरकार ने संसद में बताया था कि उनका विचार यह सीमा बीस लाख से अधिक पच्चीस लाख रूपया रखने का था किन्तु राज्य इसके लिए सहमत नहीं थे। मेरे विचार से इस पर कारण और तथ्यों के साथ जीएसटी काउन्सिल द्वारा पुनः विचार किया जाना चाहिए। 
छोटे और मझले स्तर के कारोबारियों में जीएसटी को लेकर असंतोष के कारण मुख्यतः यही हैं। मेरा विचार है उनकी जेनुइन समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए। मेरा विचार है कि रजिस्ट्रेशन के लिए टर्नओवर निर्धारित करने के लिए यदि कोई अध्ययन कराया गया था तब उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए।


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