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केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017
(Central GST Law) के अंतर्गत पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर (जिन्हें "स्पेशल केटेगरी स्टेटस" कहा गया है) में स्थित कारोबारियों का वार्षिक टर्नओवर 10 लाख रूपया से अधिक नहीं होता उनका जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेने का दायित्व नहीं होगा अर्थात उन्हें कर नहीं देना होगा। शेष राज्यों के कारोबारियों के मामले में जब तक उनका वार्षिक टर्नओवर 20 लाख रूपया से अधिक नहीं होता उनका जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेने का दायित्व नहीं होगा अर्थात उन्हें कर नहीं देना होगा। ऐसा निर्णय जीएसटी का अनुपालन करने में छोटे व्यापारियों को होने वाली कठिनाइयों को ध्यान में रख कर लिया गया है। इस आशय की व्यवस्था केंद्रीय माल और सेवा कर अधिनियम, 2017 की धारा 22 की उपधारा (1) में निम्न प्रकार की गयी है :-
22. (1) Every supplier shall be liable to be registered under this Act
in the State or Union territory, other than special category States, from where
he makes a taxable supply of goods or services or both, if his aggregate
turnover in a financial year exceeds twenty lakh rupees:
Provided that
where such person makes taxable supplies of goods or services or both from any
of the special category States, he shall be liable to be registered if his
aggregate turnover in a financial year exceeds ten lakh rupees.
माल और सेवाओं पर नया नहीं है। माल और सेवाओं पर विभिन्न कानूनों (VAT,
Sservice Tax, Excise Duty, Entry Tax, आदि ) के अंतर्गत कर अब भी लगता है, जीएसटी लगने के बाद यह सब कानून जीएसटी में समाहित हो जायेंगे। माल और सेवाओं के जो संव्यवहार अब तक टैक्स के बाहर थे वे भी जीएसटी के दायरे में आ जायेंगे। विभिन्न कानून के अंतर्गत रजिस्टर्ड रहे व्यापारियों को जीएसटी में पंजीयन लेना होगा। इनके मामले में रजिस्ट्रेशन लेने का दायित्व अधिनियम की धारा 22 की उपधारा (2) में निम्नप्रकार किया गया है :-
(2) Every
person who, on the day immediately preceding the *appointed day, is registered
or holds a licence under an existing law, shall be liable to be registered
under this Act with effect from the appointed day.
*appointed day से तात्पर्य उस दिन से है जिस दिन से जीएसटी लागू किया जायेगा। उपर्युक्त प्राविधान का अर्थ यह है कि जो कारोबारी माल और सेवाओं से सम्बंधित किसी पुराने कानून (VAT,
Service Tax, Entry Tax, Central Excise आदि) के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस रखता है, ऐसे प्रत्येक कारोबारी का जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेने का दायित्व जीएसटी लागू होने की तारीख (appointed day) से ही होगा। इस प्राविधान के बनाने में दो बड़ी गलतियां हुईं हैं:
1. पूर्व में रजिस्टर्ड रहे कारोबारियों में से अनेक कारोबारियों का वार्षिक टर्नओवर 10 लाख रूपया (स्पेशल केटेगरी स्टेट्स) या 20 लाख रूपया से कम रहा था क्योंकि पुराने कानूनों में वैट में 5 लाख से अधिक वार्षिक टर्नओवर होने पर रजिस्ट्रेशन लेना होता था, सर्विस टैक्स में 10 लाख रूपया से अधिक टर्नओवर होने पर रजस्ट्रेशन लेना होता था। अब जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेने की वार्षिक टर्नओवर की लिमिट बढ़ाकर 10 या 20 लाख रूपया की जा रही है किन्तु इस प्राविधान में 10 या 20 लाख तक वार्षिक टर्नओवर के कारोबारियों को जीएसटी से बाहर नहीं किया जा रहा है। उन्हें छोटे कारोबारी होने का लाभ नहीं दिया जा रहा है, जबकि अन्य कारोबारियों को इसका लाभ दिया जा रहा है।
2. जीएसटी लागू होने से पहले से कारोबार करने वाले व्यक्तियों में से ऐसे भी कारोबारी हो सकते हैं जिनकी पुराने किसी कानून में रजिस्ट्रेशन लेने का दायित्व रहा हो किन्तु उन्होंने रजिस्ट्रेशन न लिया हो। ऐसे कारोबारियों को वार्षिक टर्नओवर 10 या 20 लाख रूपया तक होने पर जीएसटी लागू होने की तिथि
से रजिस्ट्रेशन लेने का प्राविधान नहीं किया जा रहा है। रजिस्ट्रेशन से छूट का लाभ दिया जा रहा है। ऐसे कारोबारियों के मामले में धारा 22 की उपधारा (1) लागू नहीं की
जा रही है। ऐसे कारोबारियों धारा २२ की उपधारा (1) में अन्य कारोबारियों के साथ 10 या 20 लाख
टर्नओवर होने पर रजिस्ट्रेशन लेने का प्राविधान लागू किया जा रहा है।
उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निम्नलिखित आशय का प्राविधान किया जा सकता था :-
"यह मानते हुए कि जीएसटी लागू किये जाने के वित्तीय वर्ष के
ठीक पूर्व के वित्तीय वर्ष के प्रारम्भ से जीएसटी लागू रहा है, ऐसे कारोबारी, जो माल या सेवाओं या दोनों का कारोबार जीएसटी लागू किये जाने की तिथि के पूर्व से कर रहे हैं और जिनका जीएसटी लागू किये जाने के वित्तीय वर्ष के ठीक पूर्व के वित्तीय वर्ष (Financial year immediately preceding the financial
year in which appointed day falls) में अथवा जीएसटी लागू किये जाने के वित्तीय वर्ष में जीएसटी लागू होने की वास्तविक तिथि के पूर्व एग्रीगेट टर्नओवर, जैसा की
धारा 2 के क्लाज (6) में परिभाषित है, स्पेशल केटेगरी स्टेटस में 10 लाख रूपया और अन्य
राज्यों में 20 लाख रूपया से अधिक रहा है, जीएसटी लागू होने की तिथि को रजिस्ट्रेशन लेने के दायी (liable for
registration) होंगे।"
Assuming
that this Act has been applicable since the beginning of the financial year
preceding the financial year in which the actual date of commencement of this
Act falls, a person, who has commenced business of supply of goods or services
or both on any day before the appointed day and whose aggregate turnover, as defined
in clause (6) of section 2, for such preceding financial year or for any
period, before the appointed day, of the financial year in which appointed day
falls, has exceeded 10 lakh ruppess for special category State and 20 lakh
rupees for other State, shall be liable for registration with effect from the
appointed day.
अन्यथा यह प्राविधान मेरे विचार से छोटे कारोबारियों की कठिनाइयां बढ़ाने वाला और कानूनी रूप से भेद-भाव पूर्ण है।
संविधान के अनुच्छेद 279A के क्लाज (4) के खंड (d) को लेकर खामियां सेन्ट्रल जीएसटी एक्ट, 2017 की धारा 22 की उपधारा (1) में भी हैं। संविधान में टर्नओवर की ऐसी सीमा निर्धारित करने का प्राविधान किया गया है जिसके नीचे टर्नओवर रहने पर (turnover below which) माल और सेवाएं, माल और सेवाओं पर लगने वाले कर से मुक्त रहेंगी। सीजीएसटी में इस नीति (policy) से सम्बंधित प्राविधान नहीं बनाया गया है। कर लगाने के लिए (for imposing tax
liability and not for providing exemption from tax) वार्षिक टर्नओवर की ऐसी धनराशि निर्धारित की गयी है जिससे टर्नओवर अधिक होने पर माल और सेवाओं की सप्लाई पर कर देना होगा। अनेक प्रकार के संव्यवहार और कारोबारियों के सम्बन्ध में टर्नओवर की यह लिमिट भी लागू नहीं की गयी है। धारा 22 की उपधारा (1) के अंतर्गत कोई कारोबारी किस तिथि को किस समय पर रजिस्ट्रेशन लेने का दायी (liable) हो जायेगा का भी उल्लेख नहीं है।
कारोबारी की करदेयता (liability of
payment of tax) उसके रजिस्ट्रेशन के लिए दायी होने के समय (the time at which a person shall become liable for
registration) से जुडी है। अतः रजिस्ट्रेशन के लिए दायी होने सम्बन्धी प्राविधान में खामी रह जाने का सीधा अर्थ है कि कारोबारी की करदेयता निर्धारित करने में खामी रह जाना। इसका सीधा परिणाम होगा राजस्व क्षति। ऐसे प्राविधान सक्षम न्यायलय द्वारा निरस्त भी किये जा सकते हैं।
अगले आर्टिकल में मैं संविधान के प्राविधानों के अनुरूप रजिस्ट्रेशन के दायित्व (Liability for registration) से सम्बंधित प्राविधानों का प्रस्ताव आपके समक्ष रखने का प्रयास करूंगा।
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