Saturday, May 13, 2017

जीएसटी कानून में महत्वपूर्ण चूक

जीएसटी कानून में महत्वपूर्ण चूक

संविधान के अनुच्छेद 279A के क्लाज (4) में निम्नप्रकार प्राविधानित है -
(a) जीएसटी काउन्सिल जीएसटी लॉ का मॉडल ड्राफ्ट तैयार कर संघ और राज्यों को भेजेगा।
(b) जीएसटी काउन्सिल टर्नओवर की ऐसी अवसीमा (Threshold limit of turnover) जिसके नीचे माल और सेवाएं माल और सेवा कर से मुक्त रहेंगी  पर अपनी संस्तुति संघ और राज्यों को देगी।
            संविधान में इन संस्तुतियों के भेजने के सम्बन्ध में "shall" शब्द का प्रयोग निर्देश रूप में किया गया है।  अतः काउन्सिल के लिए ऐसी संस्तुति करना अनिवार्य था। जीएसटी काउन्सिल ने जो भी ड्राफ्ट या पुनरीक्षित ड्राफ्ट तैयार कर भारत सरकार और राज्य सरकारों को उपलब्ध कराये हैं उनमें किसी में भी ऐसी " the threshold limit of turnover below which goods and services may be exempted from goods and services tax;का उल्लेख नहीं रहा है। अंततः सीजीएसटी एक्ट में भी ऐसी किसी टर्नओवर की लिमिट का उल्लेख नहीं है। इसकी अनदेखी करने का परिणाम यह हुआ है कि सीजीएसटी एक्ट, आईजीएसटी एक्ट में कर लगाने के लिए कारोबारियों के चयन के लिए भिन्न-भिन्न प्राविधान लाकर छोटे कारोबारियों की कठिनाइयां बढ़ा दीं गयी हैं।
            जीएसटी लागू करने के लिए निम्नलिखित श्रेणियों के कारोबारी चयनित किये गए हैं:
1. वित्तीय वर्ष का टर्नओवर 10 लाख रूपया (स्पेशल केटेगरी स्टेट्स) 20 लाख रूपया (अन्य राज्य) से अधिक होने पर कर देना होगा।
2. पुराने कानूनों (VAT, Central Excise, Service Tax, Entry Tax, etc) के अंतर्गत रजिस्टर्ड रहे सभी कारोबारियों को कानून लागू होने की तिथि से कर देना होगा। ऐसे कारोबारियों में बड़ी संख्या में वे कारोबारी भी शामिल हैं जिनका वार्षिक टर्नओवर 20 लाख रूपया से काफी कम रहा है।
3. कुछ विशिष्ट प्रकार के संव्यवहारों के मामले में 20 लाख रूपया की टर्नओवर की लिमिट लागू होने का उल्लेख करते हुए एक भी छोटा सा भी संव्यवहार करने की स्थिति में भी रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य कर दिया गया है। 
4. कैजुअल पर्सन्स के मामलों में भी एक छोटा सा भी संव्यवहार करने की स्थिति में उन पर जीएसटी लागू होने का प्राविधान कर दिया गया है।
5. कैजुअल परसंस की तरह ही नॉन-रेजिडेंट पर्सन्स पर भी जीएसटी लागू किया गया है।
            जो कारोबारी पूर्व से कारोबार करते चले रहे हैं और जिनका वार्षिक टर्नओवर भी 20 लाख रूपया से अधिक रहा है किन्तु जिन्होंने रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस  लिया ही नहीं था अथवा जिन्होंने रजिस्ट्रेशन या लाइसेंस के लिए प्रार्थना-पत्र तो दिया था किन्तु किसी कारणवश उन्हें जीएसटी लागू होने से पूर्व रजिस्ट्रेशन सेर्टिफिकेट या लाइसेंस स्वीकृत नहीं हुआ था उनको जीएसटी लागू होने की तिथि से रजिस्ट्रेशन का दायी होने (liable for registration) का प्राविधान नहीं किया गया है।
            मेरा यह स्पष्ट मत है कि संविधान के अनुच्छेद 279A के क्लॉज (4) के उपखण्ड (d) के पीछे यह मंसा रही थी कि अपेक्षाकृत कम वार्षिक टर्नओवर रखने वाले कारोबारियों पर जीएसटी के अनुपालन (GST Compliance) का बोझ डाला जाय, उन्हें जीएसटी के बाहर रखा जाय। संविधान में की गयी अपेक्षा जीएसटी से से ऐसे व्यक्तियों को छूट देने (To provide exemption from GST)  के सम्बन्ध में है जिन पर जीएसटी लागू नहीं होगा। संविधान के उल्लिखित विषय पर प्राविधान इसी धारा के अंतर्गत बनाया जाना था। अपेक्षित प्राविधान निम्नप्रकार हो सकता था:
No person shall be liable for registration under this Act for any financial year if his aggregate turnovers, as defined in clause (6) of section 2, of goods or services or both, for such financial year and the financial year immediately preceding such financial year remain below twenty lakh rupees:
            Provided that aforesaid provision will not apply in case of a person to whom registration is granted under section 25 on his application submitted under sub-section (3) of that section.
Explanation: For the purpose of examining liability of a person for registration, for the financial year in which the appointed day falls, it shall be assumed that this Act has been applicable since the beginning of the financial year immediately preceding the financial year in which the appointed day falls.  
मेरे विचार से यदि लॉ ड्राफ्टर या जीएसटी काउन्सिल द्वारा संविधान के अनुच्छेद 279A के क्लाज (4) के सब-क्लाज (d) में व्यक्त भावना को समझा गया होता तब 20 लाख रूपया से नीचे वार्षिक टर्नओवर रखने वाले सभी कारोबारियों को बिना किसी भेद-भाव के जीएसटी से छूट दी गयी होती।  यह सही भी था। 
            मेरा मानना है कि कोई भी कर लगाने में tax territory में विद्यमान सामाजिक -आर्थिक जटिलताओं (socio-economic complexities) की अनदेखी नहीं की जा सकती। जीएसटी लगाने के लिए कारोबारियों का चयन करने में संविधान में जीएसटी से सम्बंधित संशोधन करते समय सामाजिक -आर्थिक जटिलताओं को ध्यान में रखकर ही अनुच्छेद 279 के क्लॉज (4) में सब-क्लाज (d) बनाया गया है किन्तु इसका सही रूप में अनुपालन हो पाने से सामाजिक -आर्थिक जटिलताओं की अनदेखी हुयी है।




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