मित्रो !
अनुपयुक्त भोजन, दूषित
जल और दूषित
वायु लेने से
हमारा शरीर कमजोर
और रोगग्रस्त तो
होता ही है
साथ ही हमारे
अंदर कार्य करने
के प्रति अनिच्छा
उत्पन्न हो जाती
है, हमारी दक्षता
गिर जाती है,
हमारे अंदर कुत्सित
विचार जन्म लेने
लगते हैं, किसी
विचार या कार्य
पर ध्यान केंद्रित
करना कठिन हो
जाता है। ऐसा होने पर ख़ुशी के पल भी हमारे लिए बोझिल बन जाते हैं। क्या
ग्राह्य और क्या
ग्राह्य नहीं है,
इस पर विचार
करके ही हमें
कुछ ग्रहण करना
चाहिए।
आख़िरकार हमारा पेट और शरीर कोई कचरे का डिब्बा
तो नहीं है जो जी में चाहा डाल दिया।
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