Monday, July 31, 2017

इच्छाओं से कैसे निपटें : How to deal with desires

मित्रो !
     किसी कार्य को करने के लिए आवश्यक साधन, सामर्थ्य और ज्ञान के होते हुए भी, इच्छा और इच्छाशक्ति के बिना, न तो कार्य प्रारम्भ किया जा सकता है और न ही कोई अधूरा कार्य पूरा किया जा सकता है। 
       इच्छा रहित क्रियाशील जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। प्रत्येक बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वह उपयुक्त और अनुपयुक्त इच्छाओं में विभेद करे और तदुपरान्त उसे चाहिए कि वह उपयुक्त इच्छाओं पर अमल करे और अनुपयुक्त इच्छाओं को दफ़न कर दे। 

How to deal with desires

Friends!
     One cannot think of an active life without desires. A person should differentiate in between appropriate and inappropriate desires and thereafter, he should work on appropriate desires and should bury dead the inappropriate desires.


Tuesday, July 25, 2017

Physical Satisfaction How Far is Justified शारीरिक संतुष्टि कहाँ तक उचित

Friends!
       We are putting more emphasis on physical satisfaction than spiritual satisfaction. This is becoming the cause of the destruction of the world as well as of eternal values and the society.

शारीरिक संतुष्टि कहाँ तक उचित
मित्रो!  
      वर्तमान में हम आत्मिक संतुष्टि के बजाय शारीरिक संतुष्टि पर अधिक जोर दे रहे हैं। यह समाज और  शाश्वत मूल्यों के साथ - साथ जगत के विनाश का कारण बन रहा है।


Monday, July 24, 2017

मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं MAN CREATES HIS OWN FATE

मित्रो !
       कर्म, कर्मफल और पुनर्जन्म के सिद्धान्तों के अनुसार मनुष्य स्वयं अपने भाग्य की रचना करता है। फल प्राप्ति की इच्छा से किये गए सभी अच्छे-बुरे कर्मों के फल मनुष्य को इसी जन्म में या अगले जन्मों में भोगने पड़ते हैं। गीता के अनुसार कर्म के चयन का अधिकार मनुष्य को प्राप्त है।
        मनुष्य के भाग्य में उसके स्वयं के द्वारा फल प्राप्ति की इच्छा से पूर्व जन्मों में किये गए कर्मों में से ऐसे कर्मों के फल होते हैं जिनके फल उसे पूर्व जन्मों में प्राप्त नहीं हुए होते हैं। ऐसे कर्म संचित कर्म जाने जाते हैं। संचित कर्म मनुष्य के अपने द्वारा किये गए कर्मों की पूँजी होती है, ऐसे कर्म ही मनुष्य के भाग्य की रचना करते हैं।


Monday, July 17, 2017

दुःख का कारण : CAUSE OF SORROW

मित्रो !
भौतिक शरीर या उसके किसी अंग में किसी कारणवश विकृति या विकार आ जाने से शारीरिक पीड़ा उत्पन्न होती है जबकि मोह और अज्ञान से सभी मानसिक दुःख उत्पन्न होते हैं। सादगी और उचित आहार-विहार से शारीरिक कष्ट तथा मोह त्याग से मानसिक कष्ट कम किये जा सकते हैं।


कर मुक्ति : TAX EXEMPTION

कर मुक्ति : TAX EXEMPTION
मित्रो !
      माल से सम्बंधित कर विधि में दो प्रकार की करमुक्तियाँ हो सकतीं हैं। प्रथम यह कि माल के संव्यवहारों पर करमुक्ति, रिफंड या रिबेट की व्यवस्था अधिनियम के अंतर्गत की जाय, द्वितीय यह कि कुछ वस्तुओं को कर विधि के बाहर रखा जाय। उदहारण के लिए IGST में माल की Special Economic Zones की units और developer को की जाने वाली माल और सेवाओं की सप्लाई पर देय कर राशि के बापस किये जाने का प्राविधान किया गया है, उनके द्वारा किये जाने वाले authorized operations में प्रयोग हेतु भारत के बाहर से आयात किये गए  माल और सेवाओं को करमुक्त किये जाने सम्बन्धी विज्ञप्तियां जारी की गयीं हैं। दूसरी प्रकार की करमुक्ति कुछ वस्तुओं (पेट्रोलियम क्रूड, डीज़ल आयल, पेट्रोल , एविएशन टरबाइन फ्यूल, नेचुरल गैस और मानव उपभोग के लिए मदिराको IGST Act से बाहर रख कर उन्हें IGST से मुक्त रखा गया है।
      ऐसी दोनों प्रकार की करमुक्तियों का कारोबारी के कुल टर्नओवर (gross turnover) और करयोग्य टर्नओवर (taxable turnover) पर क्या प्रभाव होगा, इस सम्बन्ध में माननीय उच्चतम न्यायलय द्वारा सर्वश्री ए. वी. फर्नेन्डीज़ वनाम स्टेट आफ केरला निर्णय दिनांक April 02, 1957   में व्यवस्था दी गयी है। वस्तुओं को कर विधि के बाहर रखे जाने की स्थिति में, बाहर रखी गयी वस्तुओं के टर्नओवर को कुल टर्नओवर (Gross turnover) में शामिल नहीं किया जा सकता है किन्तु इना वस्तुओं के टर्नओवर पर कारोबारी के रजिस्ट्रेशन प्राप्त करने या रिटर्न प्रस्तुत करने का दायित्व निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है। जहां पर करमुक्ति, रिफंड या रिबेट देकर करमुक्ति दी जाती है वहां पर ऐसे संव्यवहारों के टर्नओवर को कुल टर्नओवर (aggregate turnover) में तो शामिल किया जा सकता है किन्तु करदेयता निर्धारित किये जाने के लिए ऐसा टर्नओवर करयोग्य टर्नओवर में शामिल नहीं किया जा सकता है। निर्णय का संगत अंश निम्नप्रकार है :-

"There is a broad distinction between the provisions contained in the statute in regard to the exemptions of tax or refund or rebate of tax on the one hand and in regard to the non-liability to tax or non-imposition of tax on the other. In the former case, but for the provisions as regards the exemptions or refund or rebate of tax, the sales or purchases would have to be included in the gross turnover of the dealer because they are prima facie liable to tax and the only thing which the dealer is entitled to in respect thereof is the deduction from the gross turnover in order to arrive at the net turnover on which the tax can be imposed. In the latter case, the sales or purchases are exempted from taxation altogether. The Legislature cannot enact a law imposing or authorising the imposition of a tax thereupon and they are not liable to any such imposition of tax. If they are thus not liable to tax, no tax can be levied or imposed on them and they do not come within the purview of the Act at all. The very fact of their non- liability to tax is sufficient to exclude them from the calculation of the gross turnover as well as the net turnover on which sales tax can be levied or imposed."


Saturday, July 15, 2017

क्या जीएसटी में - यह भी Casual taxable Persons हैं?

मित्रो!
      नोएडा से ग्रेटर नोएडा जाते समय सड़क के किनारे थोड़ी-थोड़ी दूरी पर लगभग 14-15 वर्ष आयु के लगभग 30-35 बच्चे छोटी ट्रॉली लगाए मक्के के उबले हुए भुट्टे बेचते दिखे। नोएडा बापस लौटते समय भी यही सब दिखा। कुछ भुट्टे खरीद लेने की इच्छा हुयी। इससे भी अधिक इच्छा उनमें से किसी से बात करने की हुयी।
      सड़क किनारे गाडी रकबा ली। गाडी से उतर कर एक बच्चे से मैंने बात की। उसने बताया कि वारिश का मौसम आने पर कच्चे भुट्टे खरीद कर उन्हें उबाल कर स्कूल में छुट्टी के दिनों में बेच लेते हैं। एक भुट्टा 10 रुपये का बेचते हैं।  किसी दिन 70-80 भुट्टे बिक जाते हैं जिससे 150 से 200 रुपये मिल जाते हैं। किसी-किसी दिन इससे अधिक भी बिक जाते हैं। इससे उनके गरीब परिवार की मदद हो जाती है। दशहरे के आस-पास उबले सिंघाड़े बेच लेते हैं, दीवाली पर खिल-खिलौने, मिटटी की बनी दिवालियां बेच लेते हैं। गर्मियों में ककड़ी, खरबूजे, तरबूज बेच लेते हैं।

      मेरे पूछने पर बताया कि वे पास के गावों में रहते हैं। साल भर में समय-समय पर काम करते हैं।  वर्ष भर में सौ सवा सौ दिन  ऐसा कर लेते हैं। इसके बाद मैंने 6 भुट्टे ख़रीदे और बापस आकर गाडी में बैठ कर सोचने लगा कि क्या ऐसे लोग भी जीएसटी के दायरे में आएंगे? क्या वे भी Casual Taxable Person कहलायेंगे ? क्या ऐसा करने से पहले उन्हें जीएसटी में रजिस्ट्रेशन लेना था? क्या उन्हें भी जीएसटी अदा करना था? सरकार द्वारा जारी किये गए नोटिफिकेशन्स खंगालता रहा, पर किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुँच सका।  सोचता हूँ कि कि मेरा ऐसा सोचना गलत हो!


Friday, July 14, 2017

Special Economic Zones and GST


Friends!
                Under export and import policy of goods and services, Special Economic Zones (hereinafter referred to as SEZ) have been visualized as foreign territories within India. For this purpose, Union has enacted Special Economic Zones Act, 2005 (hereinafter referred to as the SEZ Act).
                The Scheme of the SEZ Act, ensures that no tax be levied in the following cases:
(i)                  When goods or services are procured by SEZ units or SEZ developers from outside India as a result of import into the SEZ. (A transaction in between foreign country and deemed foreign territory in India) ;
(ii)                When goods or services are procured by SEZ units and SEZ developers from Domestic Tariff Area (DTA) into SEZ (A transaction in between Indian Territory and deemed foreign territory in India);
(iii)               When goods or services are procured by SEZ units and SEZ developers from any SEZ unit of the same SEZ (A transaction in between two entities of deemed foreign territory); and
(iv)              When goods or services are procured by SEZ units or SEZ developers of one SEZ from any SEZ unit of some other SEZ. (A transaction in between two deemed foreign territories).
(v)                Taking goods, or providing services, out of India, from a SEZ (A transaction in between deemed foreign territory and a foreign country).
                For achieving aforesaid objects, "export" and "import" have been defined respectively in clauses (m) and (o) of section 2 of the SEZ Act as follows;
(m) “export” means –
(a)                taking goods, or providing  services, out of India, from a Special Economic Zone, by land, sea or air or by any other mode, whether physical or otherwise; or
(b)               supplying goods, or providing services, from the Domestic Tariff Area to a Unit or Developer; or
(c)                supplying goods, or providing services, from one Unit to another Unit or Developer, in the same or different Special Economic Zone;

(o) “import” means-
(i)                  bringing goods or receiving services, in a Special Economic Zone, by a Unit or Developer from a place outside India by land, sea or air or by any other mode, whether physical or otherwise; or
(ii)                receiving goods, or services by, Unit or Developer from another Unit or Developer of the same Special Economic Zone or a different Special Economic Zone;
             Here we see that only one transaction related to SEZ has not been covered under export or import. This transaction is supply of goods or services by SEZ unit to any DTA unit or procurement of goods or services by DTA unit from SEZ unit.
                Section 7 of the Act runs as follows:
7. Exemption from taxes, duties or cess.
 Any goods or services exported out of, or imported into, or procured from the Domestic Tariff Area by, -
(i)                  a Unit in a Special Economic Zone; or
(ii)                a Developer;
                shall, subject to such terms, conditions and limitations, as may be prescribed, be exempt    from the payment of taxes, duties or cess under all enactments specified in the First Schedule.
             A reading of First Schedule of the SEZ Act reveals than it does not have mention of any GST Act (CGST Act, SGST Act or IGST Act). Therefore, for providing exemption, in respect of export and import transactions, referred to in clauses (m) and (o) of section 2 of the SEZ Act, from levy of GST, the GST Act should itself recognize SEZ and should have provisions for granting exemption from levy of GST.
             Here I would like to point out that each SEZ is located within some State or Union Territory and the Constitution permits each State Legislature to make law for its State including a law providing for levy and collection of tax on goods and services. But the Constitution does not permit a State to levy tax on supply of goods and services where such supply takes place -
(i)                  in the course of inter-State trade or commerce. (Clause (2) of article 246A );
(ii)                outside the State (sub-clause (a) of clause (1) of article 286);
(iii)               in the course of import into the territory of India, (sub-clause (b) of clause (1) of article 286); and
(iv)              in the course of export out of the territory of India, (sub-clause (b) of clause (1) of article 286);
                However, the Union Government, while defining "intra-State supply" in section 8 of the IGST Act, has excluded "supply of goods to or by a Special Economic Zone developer or a Special Economic Zone unit" from the scope of intra-State supplies. Such supplies also include supplies in relation to which supplier of goods and services and place of supply of such goods and services are located within a State. In clause (b) of sub-section (5) of section 7 of the IGST Act, a provision has been made that such supplies shall be treated to be supplies in the course of inter-State trade or commerce. My opinion is that inclusion of supplies, which are of intra-State nature, in the IGST Act, is without Constitutional Authority. Supply by SEZ unit to DTA unit has been made liable to tax under the IGST Act. Earlier to GST, States have been dealing with such transactions.
                So far as it is related to providing exemption from tax on supplies to or by SEZ units or developers, following provisions have been made:
(i)                   In respect of import of goods into the territory of India, a Notification No.  64/2017- Customs dated 5th July, 2017 has been issued by the Government of India, as follows:
" G.S.R.---- (E).- In exercise of the powers conferred by sub-section (1) of section 25 of the Customs Act, 1962 (52 of 1962), the Central Government, on being satisfied that it is necessary in the public interest so to do, hereby exempts all goods imported by a unit or a developer in the Special Economic Zone for authorised operations, from the whole of the integrated tax leviable thereon under sub-section (7) of section 3 of the Customs Tariff Act, 1975 (51 of 1975) read with section 5 of the Integrated Goods and Service Tax Act, 2017 (13 of 2017)."
(ii)                 In sub-section (1) of section 16 of the IGST Act, supplies, of goods or services or both, to SEZ unit or SEZ developer have been included in zero rated supplies and in the same section, provision for allowing refund, of amount of input tax credit and amount of tax, if any deposited on such supplies, has been made. such supplies covers following supplies:
(a)  Supply by DTA unit to SEZ unit or SEZ developer;
(b)  Supply made by unit or developer of one SEZ to any unit or developer of same SEZ;
(c)  Supply, made by unit or developer of one SEZ to unit or developer, to SEZ unit or SEZ developer of some other SEZ located either within the State of supplier or in some other State.
(iii)                In sub-section (1) of section 16 of the IGST Act, export of goods or services or both has been included in zero rated supplies and in the same section, provision for allowing refund, of amount of input tax credit and amount of tax, if any deposited on such supplies, has been made.

          In view of the discussion above, SEZ unit is liable for payment of CGST & SGST where it makes supply of goods or services or both to any person located outside the SEZ and within the State in which SEZ is located and SEZ unit or SEZ developer is required to pay IGST on supply of goods or services or both to any person, except SEZ unit or SEZ developer, where place of such supply falls in any other State. 

   

Saturday, July 8, 2017

जीएसटी में निर्यात पर कर वसूली का औचित्य

मित्रो !
      मेरा अपना मानना है कि जीएसटी में अन्य देशों को माल निर्यात किये जाने की स्थिति में ऐसी सप्लाई को अंतर्राज्यीय वाणिज्य या व्यापार के क्रम में सप्लाई मानकर कर राशि का भुगतान प्राप्त कर या  बैंक गॉरन्टी और बांड प्राप्त कर माल निर्यात किये जाने की शर्त और निर्यात के प्रमाण देने पर ऐसी धनराशि बापस किये जाने की व्यवस्था अनुचित और अवैध है। मेरे द्वारा ऐसा मानने के निम्नलिखित कारण हैं।
      जीएसटी लगने से पूर्व कुछ वस्तुओं के भारत के बाहर निर्यात करने पर एक्सपोर्ट ड्यूटी का भुगतान करना होता था। जीएसटी लगने के बाद भी इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। जीएसटी लगने के पूर्व भारत में निर्मित माल पर, माल को निर्माण स्थल से हटाए जाने (On removal of goods) पर सेन्ट्रल एक्साइज ड्यूटी लगती थी किन्तु निर्यात के मामलों में एक्साइज ड्यूटी के सम्बन्ध यह व्यवस्था लागू थी कि निर्यात के लिए कारोबारी माल तभी निर्माण स्थल से हटा सकेगा जब या तो वह निहित एक्साइज ड्यूटी की धनराशि का बांड या लेटर आफ अंडरटेकिंग दे दे या फिर निहित एक्साइज ड्यूटी का भुगतान कर दे और निर्माण स्थल से माल हटाए जाने की तिथि से छह माह के अंदर माल निर्यात किये जाने का साक्ष्य दे, अन्यथा बांड दिए जाने की अवस्था में उससे एक्साइज ड्यूटी की धनराशि वसूल कर ली जाती थी। माल निर्यात किये जाने के सम्बन्ध में न तो वैट के अंदर और न ही केंद्रीय बिक्री कर अधिनियम में कोई प्रतिबन्ध था। माल निर्यात के साक्ष्य कारोबारी या तो रिटर्न के साथ दे देता था अथवा कर निर्धारण के समय दे देता था। माल का निर्यात प्रमाणित होने पर निर्यात बिक्री पर करमुक्ति मिल जाती थी और कारोबारी निर्यात हुए माल में निहित इनपुट टैक्स क्रेडिट की धनराशि को बापस पाने का अधिकारी हो जाता था। जीएसटी लगने के साथ ही अब केवल छह वस्तुओं पर सेन्ट्रल एक्साइज लागू रह गया है।  इन छह वस्तुओं में से केवल एक वस्तु तम्बाकू और तम्बाकू उत्पाद ही जीएसटी के अंतर्गत आते हैं। जीएसटी के अन्तर्गत आने वाले माल में से केवल तम्बाकू उत्पादों को छोड़कर शेष सभी वस्तुओं पर एक्साइज के अंतर्गत बनाये गए प्राविधान लागू नहीं रह गए हैं।
      जीएसटी लगने पर कारोबारी पर जीएसटी के अंतर्गत आने वाले माल का निर्यात करने पर निर्यात से पूर्व कोई कर देय (Due) नहीं होता और निर्यात के लिए माल चिन्हित होने के साथ ही निर्यात प्रक्रिया में आ जाता है, Customs Clearance होने के साथ ही उसे निर्यात के साक्ष्य प्राप्त हो जाते हैं। इन साक्ष्यों के आधार पर वह निर्यात पर छूट पाने का हकदार हो जाता है। न तो जीएसटी लगने से पूर्व ही एक्साइज ड्यूटी का भुगतान करने या एक्साइज ड्यूटी की धनराशि का बांड या लेटर आफ अंडरटेकिंग देने के आधार पर निर्यात पर करमुक्ति मिलती थी और न ही जीएसटी के अंतर्गत इस आधार पर माल का निर्यात हुआ मान लिया जायेगा। निर्यात के साक्ष्य जो जीएसटी लगने से पूर्व मान्य थे वही जीएसटी लगने के बाद भी मान्य होंगे।  जीएसटी में निर्यात प्रारम्भ होने से पूर्व कोई ऐसा कर नहीं है जिससे निर्यातक को छूट लेनी हो । ऐसी स्थिति में उस event जो कर से मुक्त है और इवेंट के प्रारम्भ होते ही इवेंट के करमुक्त होने के साक्ष्य हों तब इवेंट पर कोई कर की धनराशि देय कैसे हो सकती है। मेरी समझ से परे है कि जीएसटी से पूर्व जब निर्यात  सप्लाई को जीरो रेटेड सप्लाई बिना कोई अंडरटेकिंग या बांड लिए या बिना कोई कर की धनराशि जमा कराये किया जाता रहा है तब जीएसटी में निर्यात सप्लाई को जीरो रेटेड किये जाने के लिए अंडरटेकिंग या बांड लिए जाने अथवा कर की धनराशि जमा कराने की क्या आवश्यकता पड़ गयी है। क्या ऐसा कदम निर्यातकों के लिए निराशा और हताशा का कारण नहीं बनेगा? क्या निर्यात पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा? क्या जीएसटी की कम्प्लाइंस कोस्ट (Compliance cost)  नहीं बढ़ेगी?
      निर्यात के पूर्व कर जमा करने के लिए Integrated Goods and Services Tax Act, 2017 की धारा 7 की उपधारा (5) में निर्यात को निम्नप्रकार "supply in the course of inter-State trade or commerce" में काल्पनिक परिभाषा देकर शामिल किया गया है :-
(5) Supply of goods or services or both,—
(a) when the supplier is located in India and the place of supply is outside India;
(b) to or by a Special Economic Zone developer or a Special Economic Zone unit; or
(c) in the taxable territory, not being an intra-State supply and not covered elsewhere in this section,
shall be treated to be a supply of goods or services or both in the course of inter-State trade or commerce.
      यहां पर उल्लेखनीय है कि अधिनियम में यह  Deeming clause  क्लॉज किस उद्देश्य से बनाया गया है का उल्लेख नहीं किया गया है। इसी धारा में वास्तविक inter-State supply of goods or services or both" को भी "supply of goods or services or both in the course of inter-State trade or commerce" माने जाने का प्राविधान किया गया है। अतः यह माना जा सकता है निर्यात पर भी कर लगाया गया है। Section 16 में zero rated supply परिभाषित किया गया है। Zero rated supply में export of goods or services or both; को भी शामिल किया गया है और इनके सम्बन्ध में निर्यात को करमुक्त मानते हुए निहित इनपुट टैक्स क्रेडिट की धनराशि और जमा किन गयी धनराशि (जमा की गयी धनराशि को कर कहा गया है जो कि अनुचित है) की बापसी का प्राविधान किया गया है। यह धारा निम्नप्रकार है।
Zero rated supply.
16. (1) “Zero rated supply” means any of the following supplies of goods or services or both, namely:—
(a) export of goods or services or both; or
(b) supply of goods or services or both to a Special Economic Zone developer or a Special Economic Zone unit.
(2) Subject to the provisions of sub-section (5) of section 17 of the Central Goods and Services Tax Act, credit of input tax may be availed for making zero-rated supplies, notwithstanding that such supply may be an exempt supply.
(3) A registered person making zero rated supply shall be eligible to claim refund under either of the following options, namely:—
(a) he may supply goods or services or both under bond or Letter of Undertaking, subject to such conditions, safeguards and procedure as may be prescribed, without payment of integrated tax and claim refund of unutilised input tax credit; or
(b) he may supply goods or services or both, subject to such conditions, safeguards and procedure as may be prescribed, on payment of integrated tax and claim refund of such tax paid on goods or services or both supplied, in accordance with the provisions of section 54 of the Central Goods and Services Tax Act or the rules made thereunder.
      धारा 5 की उपधारा (1) जिसके द्वारा inter-State supply पर कर लगाया गया है. धारा 7 की उपधारा (5) जिसमे export supply को भी supply in the course of inter-State trade or commerce माने जाने का प्राविधान किया गया है तथा धारा 16 जिसमें export supply के  Zero rated supply  होने का उल्लेख किया गया है के एक साथ पढ़ने पर निम्नलिखित निष्कर्ष निकलते हैं :-
(1) export supply एक zero rated supply  है। धारा 5(1) सपठित धारा 7(5) जो कर लगाया गया है वह एक्सपोर्टर को बापसी योग्य है।
(२) एक्सपोर्ट सप्लाई करमुक्त है और एक्सपोर्ट किये गए माल में निहित इनपुट टैक्स क्रेडिट की धनराशि कारोबारी को बापसी योग्य है।
(३) एक्सपोर्ट के पूर्व जमा किया जाने वाले कर का भुगतान ऐच्छिक (Optional) है।  कारोबारी चाहे तब कर राशि के स्थान पर लेटर आफ अंडरटेकिंग या बांड भी दे सकता है।
      यहां पर मैं माननीय उच्चतम न्यायलय (Supreme Court) द्वारा दिए गए कुछ निर्णयों का उल्लेख करना चाहूंगा :-
(1) M/s Bhawani Cotton Mills Ltd. v. State of Punjab & Anr, Date of Judgment April 10, 1967: (Supreme Court)
"If a person is not liable for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from him with a possible contingency of refund at a later stage will not make the original levy valid."
(2) Steel Authority of India Limited vs. State of Orissa, Date of Judgment February 25, 2000 (Supreme Court)
"In Bhawani Cotton Mills Ltd. vs. State of Punjab & Anr., (1967) 3 SCR 577, this Court said, - If a person is not liable for payment of tax at all, at any time, the collection of a tax from him, with possible contingency of refund at a later stage, will not make the original levy valid; because, if particular sales or purchase are exempt from taxation altogether, they can never be taken into account, at any stage, for the purpose of calculating or arriving at the taxable turnover and for levying tax."
(3) THE COMMISSIONER, HINDU RELIGIOUS ENDOWMENTS, MADRAS Vs. SRI LAKSHMINDRA THIRTHA SWAMIAR OF SRI SHIRUR MUTT. Date of judgment April 16, 1954 (Constitution Bench)
"A neat definition of what "tax" means has been given by Latham C. J. of the High Court of Australia,in Matthews v. Chicory Marketing Board(1). A tax", according to the learned Chief Justice, "is a compulsory exaction of money by public authority for public purposes enforceable by law and is not payment for services rendered". This definition brings out, in our opinion, the essential characteristics of a tax as distinguished from other forms of imposition which, in a general sense, are included within it.
            It is said that the essence of taxation is compulsion, that is to say, it is imposed under statutory power without the taxpayer's consent and the payment is enforced by law. The second characteristic of tax is that it is an imposition made for public purpose without reference to any special benefit to be conferred on the payer of the tax. This is expressed by saying that the levy of tax is for the purposes of general revenue, which when collected revenues of the object of a tax is not to confer any special benefit upon any particular individual, there is, as it is said, no element of quid pro quo between the taxpayer and the public authority(1). Another feature of taxation it; that as it is a part of the common burden, the quantum of imposition upon the taxpayer depends generally upon his capacity to pay."
(4) A. V. Fernandez vs. The State Of Kerala Judgment dated April 02, 1957 (Supreme Court)
"There is a broad distinction between the provisions contained in the statute in regard to the exemptions of tax or refund or rebate of tax on the one hand and in regard to the non-liability to tax or non-imposition of tax on the other. In the former case, but for the provisions as regards the exemptions or refund or rebate of tax, the sales or purchases would have to be included in the gross turnover of the dealer because they are prima facie liable to tax and the only thing which the dealer is entitled to in respect thereof is the deduction from the gross turnover in order to arrive at the net turnover on which the tax can be imposed. In the latter case, the sales or purchases are exempted from taxation altogether. The Legislature cannot enact a law imposing or authorising the imposition of a tax thereupon and they are not liable to any such imposition of tax. If they are thus not liable to tax, no tax can be levied or imposed on them and they do not come within the purview of the Act at all. The very fact of their non- liability to tax is sufficient to exclude them from the calculation of the gross turnover as well as the net turnover on which sales tax can be levied or imposed. If this distinction is borne in mind, it is clear that s. 26 of the Act enacts a provision with regard to nonliability of these transactions to tax and these transactions were therefore taken out of the purview of the Act. We are therefore of opinion that the non-obstante provision contained in s. 26 of the Act has the effect of taking these transactions out of the purview of the Act with the result that the dealer is not required nor is he entitled to include them in the calculations of his turnover liable to tax thereunder."
                यह विचारणीय है कि कर विधि (tax law) में तीन मुख्य स्टेप्स होते हैं।
1. Declaration of Levy;
2. Quantification or assessment of tax; and
3. Recovery of tax.
        कर की वसूल की गयी धनराशि राज्य के राजस्व का हिस्सा बनता है और इसका प्रयोग किसी को व्यक्तिगत लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से नहीं किया जा सकता है। कर के भुगतान का विकल्प करदाता को उपलब्ध नहीं होता है। यहां पर निर्यात के मामले में (1) कर जमा करने या जमा न करने का विकल्प दिया गया है  और जहां कर जमा किया जाता है (2) वसूल की गयी धनराशि उसी व्यक्ति को बापस करने के लिए होता है होती है जिससे वसूल की जाती है, यह धनराशि राजस्व का भाग नहीं बनता है।  उपर्युक्त निर्णयों के प्रकाश में यह प्रकाश में आता है कि निर्यात के सम्बन्ध में कर नहीं लगाया गया है।   
        यह भी विचारणीय है कि Integrated Goods and Services Tax Act, 2017 की long title "An Act to make a provision for levy and collection of tax on inter-State supply of goods or services or both by the Central Government and for matters connected therewith or incidental thereto." से भी यह प्रकाश में नहीं आता है कि  IGST Act, 2017 निर्यात सप्लाई पर कर लगाने से सम्बंधित है अथवा inter-state supply के साथ-साथ निर्यात सप्लाई पर भी कर लगाने से सम्बंधित है। संविधान का अनुच्छेद 265 निम्नप्रकार है :-
265. No tax shall be levied or collected except by authority of law.
        अतः जो कर leviable नहीं है तब कर के नाम पर किसी धनराशि की वसूली अवैध है। अतः निर्यात सप्लाई के सम्बन्ध में निर्यातक से किसी धनराशि के जमा किये जाने की व्यस्था का न तो कोई औचित्य है और न ही ऐसी व्यवस्था कानूनी तौर पर वैध है।


Monday, July 3, 2017

जीएसटी के प्रति छोटे और मझोले कारोबारियों में असंतोष का कारण

मित्रो !
हमारे देश भारत में भी माल और सेवाओं पर कर लगाने की व्यवस्था जीएसटी (Goods and services tax) लागू हो गयी। माल और सेवा कर लगाए जाने से एक ओर जहां बड़े कारोबारियों में ख़ुशी है वहीं पर छोटे और मझले स्तर के व्यापारी इसके आने से खुश नहीं हैं। हमें यह समझना होगा कि छोटे और मझले स्तर के कारोबारियों के खुश न होने के पीछे क्या कारण हैं, उनकी क्या कठिनाइयां हैं। सरकार द्वारा अप्रत्यक्ष कर कारोबारियों के माध्यम से जनता से बसूला जाता है। अतः कारोबारियों को कोई दिक्कत तब तक नहीं होनी चाहिए जब तक उनके द्वारा जनता से कर बसूलने और इसका सरकार को भुगतान करने में कोई कठिनाई न हो, उनके व्यापारिक हित प्रतिकूल रूप में प्रभावित न हों और कर व्यवस्था का अनुपालन करने से उनका कोई अहित न हो। इसी के परिपेक्ष्य में यहां पर हम चर्चा करेंगे। 

भारतीय संविधान में जीएसटी लगाने से सम्बंधित संशोधन करते समय यह प्राविधान किया गया था कि जीएसटी काउन्सिल द्वारा टर्नओवर की ऐसी सीमा की संस्तुति आवश्यक रूप में की जाएगी जिसके नीचे टर्नओवर होने की स्थिति में माल और सेवाएं जीएसटी से मुक्त रहेंगी। किन्तु जीएसटी से सम्बंधित बनाये गए कानूनों से स्पष्ट है कि टर्नओवर की ऐसी कोई सीमा निर्धारित नहीं की गयी है। संशोधित संविधान के अनुच्छेद 279A के खंड (4) का उपखण्ड (घ) निम्नप्रकार है -
(४) माल और सेवा कर परिषद् निम्नलिखित के सम्बन्ध में संघ और राज्यों को सिफारिश करेगी --
(घ) आवर्त की वह अवसीमा जिसके नीचे माल और सेवाओं को माल और सेवा कर से छूट प्रदान की जा सकेगी;
(4) The Goods and Services Tax Council shall make recommendations to the Union and the States on—
(d) the threshold limit of turnover below which goods and services may be exempted from goods and services tax;
यहां यह ध्यान देने योग्य है कि "threshold limit of turnover" और "limit of turnover" का एक ही अर्थ नहीं है।  "threshold" शब्द विशेष महत्व का है, इसका हिंदी में अर्थ "दहलीज या देहरी" से होता है। अंग्रेजी में अर्थ "doorway, doorsill or entry point" से होता है।
जीएसटी से सम्बंधित बनाये गए कानूनों केन्दीय जीएसटी और राज्य जीएसटी में Special category States और अन्य राज्यों के मामलों में टर्नओवर लिमिट का उल्लेख निम्नप्रकार से किया गया है -
22. रजिस्ट्री करण के लिए दायी व्ययक्तिल 
(1) इस अधिनियम के अधीन प्रत्ये क प्रदायकर्ता, विशेष प्रवर्ग के राज्यों से भिन्नट ऐसे राज्यन या संघ राज्य्क्षेत्र में रजिस्ट्री कृत कराने के लिए दायी होगा, जहां वह माल या सेवाओं या दोनों का कराधेय प्रदाय करता है, यदि किसी वित्तीसय वर्ष में उसका संकलित आवर्त बीस लाख रूपए से अधिक है : 

परंतु जहां कोई व्यरक्तिम, विशेष प्रवर्ग के राज्यों में से किसी राज्यध से माल या सेवाओं या दोनों का कराधेय प्रदाय करता है, वहां वह रजिस्ट्री कृत किए जाने का दायी होगा, यदि किसी वित्तीलय वर्ष में उसका संकलित आवर्त दस लाख रूपए से अधिक है ।
(2) प्रत्येसक व्येक्तिज‍ जो, नि‍यत दि‍न से ठीक पूर्ववर्ती दि‍न, वि‍द्यमान वि‍धि‍ के अधीन अनुज्ञप्तिर‍ धारण करता है, नि‍यत दि‍न से अधि‍नि‍यम के अधीन रजि‍स्ट्रीजकृत होने के लि‍ए दायी होगा ।
22. (1) Every supplier shall be liable to be registered under this Act in the State or Union territory, other than special category States, from where he makes a taxable supply of goods or services or both, if his aggregate turnover in a financial year exceeds twenty lakh rupees:
Provided that where such person makes taxable supplies of goods or services or both from any of the special category States, he shall be liable to be registered if his aggregate turnover in a financial year exceeds ten lakh rupees.
(2) Every person who, on the day immediately preceding the appointed day, is registered or holds a licence under an existing law, shall be liable to be registered under this Act with effect from the appointed day.
24. कति‍पय मामलों में रजि‍स्ट्रीdकरण । धारा 22 की उपधारा (1) में अंतर्वि‍ष्ट कि‍सी बात के होते हुए भी, व्यक्ति‍यों के नि‍म्नलि‍खि‍त प्रवर्गों को इस अधि‍नि‍यम के अधीन रजि‍स्ट्रीपकृत कि‍या जाना अपेक्षि‍त होगा,--
(i) व्येक्तिो‍ जो अंतरराज्यिा‍क कराधेय पूर्ति‍ करते हैं ; 
(ii) कराधेय पूर्ति‍ करने वाले आकस्मि ‍क कराधेय व्य‍क्तिप‍ ;
(iii) व्यgक्तिव‍‍ जि‍ससे आरक्षि‍त प्रभार के अधीन कर अदा करना अपेक्षि‍त है ;
(iv) व्यतक्ति ‍ जि‍ससे धारा 9 की उपधारा (5) के अधीन कर अदा करना अपेक्षि‍त है ;
(v) कराधेय पूर्ति‍ करने वाले अनि‍वासी कराधेय व्यतक्ति ‍ ;
(vi) व्य क्ति्‍ जि‍ससे धारा 51 के अधीन कर की कटौती करना अपेक्षि‍त है चाहे इस अधि‍नि‍यम के अधीन पृथक रूप से रजि‍स्ट्रीाकृत हो या नहीं ; 
(vii) व्य)क्ति ‍ जो, चाहे अभि‍कर्ता के रूप में या अन्यकथा, अन्यक कराधेय व्ययक्‍ति‍यों की ओर से कराधेय मालों या सेवाओं अथवा दोनों की पूर्ति‍ करते हैं ; 
(viii) इनपुट सेवा वि‍तरक, चाहे इस अधि‍नि‍यम के अधीन पृथक रूप से रजि‍स्ट्रीाकृत है या नहीं ;
(ix) व्य)क्ति ‍ जो धारा 9 की उपधारा (5) के अधीन वि‍नि‍र्दि‍ष्‍ट पूर्ति‍ से भि‍न्नओ मालों या सेवाओं अथवा दोनों की ऐसे इलैक्ट्रा नि‍क वाणि‍ज्यत ऑपरेटर जि‍ससे धारा 52 के अधीन स्रोत पर कर एकत्र करना अपेक्षि‍त है, के माध्य म से पूर्ति‍ करता है ; 
(x) प्रत्येुक इलैक्ट्रा नि‍क वाणि‍ज्यउ ऑपरेटर ;
(xi) रजि‍स्ट्रीऑकृत व्यधक्ति2‍ से भि‍न्न , प्रत्येीक व्यमक्तिम‍ जो भारत से बाहर के स्थारन से ऑन लाइन सूचना और डाटा आधारि‍त पहुंच या सुधार सेवाओं भारत में कि‍सी व्यऑक्तिृ‍ की पूर्ति‍ करता है ;
(xii) ऐसे अन्य व्यीक्तिक‍ या व्य क्ति ‍यों का वर्ग जि‍न्हें केंद्रीय सरकार द्वारा परि‍षद् की सि‍फारि‍शों पर अधि‍सूचि‍त कि‍या जाए ।
24. Compulsary Registration in certain cases.- Notwithstanding anything contained in sub-section (1) of section 22, the following categories of persons shall be required to be registered under this Act,––
(i) persons making any inter-State taxable supply;
(ii) casual taxable persons making taxable supply;
(iii) persons who are required to pay tax under reverse charge;
(iv) person who are required to pay tax under sub-section (5) of section 9;
(v) non-resident taxable persons making taxable supply;
(vi) persons who are required to deduct tax under section 51, whether or not separately registered under this Act;

(vii) persons who make taxable supply of goods or services or both on behalf of other taxable persons whether as an agent or otherwise;
(viii) Input Service Distributor, whether or not separately registered under this Act;
(ix) persons who supply goods or services or both, other than supplies specified under sub-section (5) of section 9, through such electronic commerce operator who is required to collect tax at source under section 52;
(x) every electronic commerce operator;
(xi) every person supplying online information and database access or retrieval services from a place outside India to a person in India, other than a registered person; and
(xii) such other person or class of persons as may be notified by the Government on the recommendations of the Council.
टिपण्णी: इंग्लिश वर्जन के हिंदी ट्रांसलेशन में कुछ अंतर हैं किन्तु हिंदी वर्जन मेरे द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत बिल से लिया गया है। पुष्ट और अधिकृत वर्जन अंग्रेजी में है।
उपर्युक्त प्राविधानों का अध्ययन करने पर हम देखते हैं कि --
(a) धारा 22 की उपधारा (1) किन कारोबारियों से कर लिया जाना है को ध्यान में रख कर बनाई गयी है। निर्धारित टर्नओवर की लिमिट संविधान के अनुच्छेद 279A में उल्लिखित "Threshold limit of turnover" नहीं है। 
(b) धारा 22 की उपधारा (2) उस विशिष्ट वर्ग के कारोबारियों के लिए है जिनके पास जीएसटी लगाने के पूर्व के दिन में किसी कानून में लाइसेंस या रजिस्ट्रेशन रहा था। इनमें से वे कारोबारी जिनका टर्नओवर 20 या दस लाख रूपया से कम रहा था को अलग नहीं किया गया है। प्राविधान को धारा 22 के अधीन भी नहीं किया गया है। उपधारा (1) और उपधारा (2) के स्वतंत्र प्राविधान हैं। अतः उपधारा (1) पर उपधारा (2) prevail करेगी।
(c) धारा 24 में उल्लिखित कारोबारियों को उनका टर्नओवर कितना भी कम क्यों न हो उनके लिए रजिस्ट्रेशन लेना अनिवार्य बनाया गया है। 
अधिनियम में धारा 23 उन कारोबारियों के सम्बन्ध में है जिन्हें रजिस्ट्रेशन नहीं लेना है।
23. (1) The following persons shall not be liable to registration, namely:––
(a) any person engaged exclusively in the business of supplying goods or services or both that are not liable to tax or wholly exempt from tax under this Act or under the Integrated Goods and Services Tax Act;
(b) an agriculturist, to the extent of supply of produce out of cultivation of land.
(2) The Government may, on the recommendations of the Council, by notification, specify the category of persons who may be exempted from obtaining registration under this Act. 

इस धारा में टर्नओवर की सीमा के आधार पर कोई छूट नहीं दी गयी है जबकि संविधान की अपेक्षानुसार threshold limit of turnover इसी धारा के अंतर्गत निर्धारित कर सभी कारोबारियों पर लागू की जानी थी।
मुझे इस बात की जानकारी नहीं है कि टर्नओवर की सीमा निर्धारित करने से पूर्व विविधिताओं से भरे इस विशाल देश में कारोबारियों के आर्थिक और सामाजिक स्तर का अध्ययन करवाया गया था या नहीं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि अप्रत्यक्ष करों के मामलों में (जिनमें कारोबारियों को कर जनता से बसूल कर सरकार को देना होता है) भी कारोबारियों पर आर्थिक बोझ पड़ता है। उन्हें अपना समय देने के अलाबा बही-खातों का रख-रखाव करने, विवरण तैयार करने के लिए अकाउंटेंट तथा कर का रिटर्न भरने तथा मामले में विधिक सहायता के लिए एक अधिवक्ता की भी जरूरत होती है। इनका वेतन / फीस का खर्चा उसे अपनी आय से वहन करना होता है। 
हमारे देश में वे लोग भी रहते है जो अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए माल और सेवाओं की सप्लाई करते हैं। वे लाभ कमाने के लिए कारोबार नहीं कर रहे हैं अपितु दो जून की रोटी कमाने के लिए माल और सेवाओं की बिक्री करते हैं। दिन-रात इसी उधेड़-बुन में लगे रहते हैं कि कैसे गुजरा होगा। उनमें से ऐसे भी हैं जो समय-समय पर भिन्न-भिन्न स्थानों पर लगने वाले मेलों आदि में अपनी स्टाल लगा लेते हैं, दीवाली आयी तो खील-खिलौनों या कुछ रूपया उधर लेकर बड़े कारोबारियों से 200-250 मिठाई के पैकेट्स लेकर सड़क किनारे तखत पर रख कर बेच लेते हैं, अगर उन्हें इसमें 1000-2000 रुपये भी मिल जांय तब खुश हो लेते हैं। होली आयी तो रंग-पिचकारी बेचने से भी नहीं चूकते। इनको जीएसटी की भाषा में "Casual Taxable Persons" ही कहेंगे। मुझसे पूछो तो मैं इन्हें जिंदगी से झूझते मजबूर लोग ही कहूँगा या फिर दो जून की रोटी के लिए भटकते लोग।
अच्छी नौकरी की चाह में हमारे देश में भारी संख्या में लोग पढ़ाई कर बड़ी-बड़ी डिग्रियां हासिल कर लेते हैं, कम्प्यूटर का जमाना है वह भी सीख लेते हैं, आगे बढ़ते देश में इनकी जानकारी मजबूरी भी है। कैशलेस होने के लिए भी कम्प्युटर, मोबाइल की जानकारी आवश्यक है। ऐसे डिग्री धारकों को जब नौकरी नहीं मिलती तब उनमें से अनेक लोग हस्तशिल्प की वस्तुएं, खिलौने, रेडीमेड गारमेंट्स या अन्य छोटी वस्तुओं के फोटो स्कैन कर इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स पोर्टल पर डाल देते हैं। वहां इनकी खरीद प्रदेश, देश और विदेश तक के लोग कर लेते हैं। भुगतान ऑनलाइन पेमेंट गेटवे सर्विस प्रोवाइडर्स के माध्यम से बैंक अकाउंट में प्राप्त हो जाता है। इनमें से अनेक लोग ऐसे भी होंगे जिनकी बिक्री का टर्नओवर दो-चार लाख रूपया या उससे भी कम होगा किन्तु फिर भी कुछ न होने से कुछ तो अच्छा। इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स पोर्टल के माध्यम से कारोबार करने वाले बड़े कारोबारियों के मामले पकड़ने के विकल्प और भी हो सकते हैं। ऐसे लोगों को कर देने वाले कारोबारियों की श्रेणी में रखे जाने का क्या औचित्य हो सकता है। बिडम्बना यह भी है कि नौकरी करने वालों का टर्नओवर कितना भी हो उन पर जीएसटी की कोई बंदिश नहीं है।
अंतर्राज्यीय सप्लाई (inter-State supply) पर कर देयता के सम्बन्ध में न्यूनतम टर्नओवर की लिमिट लागू नहीं की गयी है। इसका परिणाम यह हुआ है कि 20 लाख तक टर्नओवर रखने वाले कारोबारी बिना टैक्स दिए अपने राज्य में माल की सप्लाई कर सकते हैं किन्तु वे अपने राज्य के बाहर बिना कर दिए बिक्री नहीं कर सकते हैं। अदा की जाने वाली धनराशि में अंतर भले ही कम हो किन्तु विचारणीय यह है राज्य के अंदर बिक्री करने पर जिस कारोबारी को जीएसटी की कम्प्लाइंस (अनुपालन) करने के लिए सक्षम नहीं माना गया उसे अन्तर्राज्यीय सप्लाई करने की स्थिति में जीएसटी की कम्प्लाइंस करने के लिए सक्षम मान लिया गया है। अगर अंतर्राज्यीय सप्लाई के मामलों में भी टर्नओवर की न्यूनतम सीमा लागू कर दी जाय तब क्या अंतर पड़ेगा पर विचार करने पर हम पाएंगे कि -- 
(1) जहां दूसरे राज्य के रजिस्टर्ड कारोबारी को सप्लाई होगी, केंद्र सरकार और उपभोक्ता राज्य दोनों को पूरा-पूरा कर मिल जायेगा। 
(2) जहां माल की सप्लाई दूसरे राज्य के उपभोक्ता को की जाएगी, उपभोक्ता राज्य को कर नहीं मिलेगा और इनपुट्स पर मिलने वाला कर उसे राज्य जहां से सप्लाई की जाएगी और केंद्र को उसी तरह और उतना ही, जितना माल की उस राज्य में सप्लाई पर प्राप्त होता, मिलेगा।
संविधान के अनुच्छेद 279A का खंड (7) निम्नप्रकार है --
(६) इस अनुच्छेद द्वारा प्रदत्त कृत्यों का निर्वहन करते समय, माल और सेवा कर परिषद् माल और सेवा कर की सामंजस्यपूर्ण संरचना और माल और सेवाओं के लिए सुव्यवस्थित राष्ट्रीय बाजार के विकास की आवश्यकता से मार्गदर्शित होगी।

(6) While discharging the functions conferred by this article, the Goods and Services Tax Council shall be guided by the need for a harmonised structure of goods and services tax and for the development of a harmonised national market for goods and services.
बाजार का सम्बन्ध माल और सेवाओं की आपूर्ति करने वालों और उसका उपभोग करने वालों से होता है। संविधान की मंशा रही है कि माल और सेवाओं के सम्बन्ध में माल और सेवाओं का एक राष्ट्रीय बाजार विकसित हो। यह तभी संभव है जब अंतर्राज्यीय बैरियर्स समाप्त हो जांय। किन्तु जो व्यवस्था की गयी है उसमें 20 लाख रूपया तक टर्नओवर रखने वालों के लिए यह बैरियर बने हुए हैं। यह भी विचारणीय है कि बनाई गयी व्यवस्था में भी राज्यों की सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले उपभोक्ता दूसरे राज्य में कर का भुगतान करके वस्तुएं अपने राज्य में लाकर उनका उपभोग करते हैं। ऐसी स्थिति में भी उपभोक्ता राज्य को कर प्राप्त नहीं होता है। अन्यथा भी जीएसटी के लगने से उत्पादक राज्यों को होने वाली संभावित राजस्व के नुकसान की भरपाई के लिए लगाए गए सेस (Cess) का भुगतान भी अंततः उपभोक्ता राज्यों को ही करना है। मेरा विचार है कि राष्ट्रीय बाजार की स्थापना एक बड़ा उद्देश्य है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही संविधान में "threshold limit of turnover below which goods and services may be exempted from goods and services tax" निर्धारित किये जाने की व्यवस्था की गयी है। ऐसी स्थिति में देश के अंदर जीएसटी के लिए छोटे कारोबारियों और उनसे खरीद करने वाले उपभोक्ताओं को भी एक राष्ट्रीय बाजार उपलब्ध कराया जा सकता है।
डिजिटलाइजेशन की ओर अग्रसर हो रहे देश में इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स आपरेटर के माध्यम से माल की सप्लाई करने वाले छोटे कारोबारियों को प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है न कि उनको कर के भुगतान से मिली छूट को समाप्त किये जाने की आवश्यकता है। 
बड़े देशों की तुलना में टर्नओवर की कर देयता के लिए न्यूनतम सीमा 20 लाख रूपया काफी कम रखी गयी है। जहां तक मुझे याद है, हमारे माननीय वित्त मंत्री भारत सरकार ने संसद में बताया था कि उनका विचार यह सीमा बीस लाख से अधिक पच्चीस लाख रूपया रखने का था किन्तु राज्य इसके लिए सहमत नहीं थे। मेरे विचार से इस पर कारण और तथ्यों के साथ जीएसटी काउन्सिल द्वारा पुनः विचार किया जाना चाहिए। 
छोटे और मझले स्तर के कारोबारियों में जीएसटी को लेकर असंतोष के कारण मुख्यतः यही हैं। मेरा विचार है उनकी जेनुइन समस्याओं का समाधान किया जाना चाहिए। मेरा विचार है कि रजिस्ट्रेशन के लिए टर्नओवर निर्धारित करने के लिए यदि कोई अध्ययन कराया गया था तब उसे सार्वजनिक किया जाना चाहिए।