Tuesday, January 17, 2017

ईश्वर के अवतरित होने का प्रयोजन

मित्रो !
       सनातन धर्म के सुविख्यात पवित्र ग्रन्थ श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 4 के श्लोक 7 व श्लोक 8 में भगवान श्री कृष्ण द्वारा युग -युग में अवतरित होने का वर्णन निम्न प्रकार किया गया है:
यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानम सृज्याहम।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम।
धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ॥
     हे भारत ! जब-जब धर्मकी हानि और अधर्मकी वृद्धि होती है, तब -तब मैं अपने रूपको रचता हूँ (अर्थात् साकाररूपसे प्रकट होता हूँ)।
    साधु पुरुषों का उद्धार करने, दुष्टों का विनाश करने तथा धर्म की फिर से स्थापना करने के लिए मैं हर युग में प्रकट होता हूँ |

Yada yada hi dharmasya glanirbhavati bharata
Abhythanamadharmasya tadatmanam srijamyaham
Paritranaya sadhunang vinashay cha dushkritam.
Dharmasangsthapanarthay sambhabami yuge yuge.

यदा/Yada = when; हि/Hi = indeed; धर्मस्य/Dharmasya = of religion/duty; ग्लानि  / Glani = decay; भवति/Bhavati = is; भारत/Bharata = O Bharata; (name of Arjuna); अभ्युत्थानम्/Abhuthanam = rising up; अधर्मस्य / Adharmasya = of sin / chaos (something against religion.); तदा /Tada = Then; आत्मानं/Atmanam =  Myself; सृजामि/Srijami = Create ("Srijami" means "I create"); अहम्/Aham = I;

परित्राणाय/Paritranay= to protect/save; साधूनां/Sadhunang =of the good or good people; विनाशाय/Vinashay = to destroy/for the destruction; च/Cha = And; दुष्कृताम्/Dushkritam = of the evil or evil-doers; धर्म/Dharma = religion; संस्थापन/Sangsthapan = to establish; अर्थाय/Arthay = to/for the sake of; सम्भवामि/Sambhabami = I am born; युगे/Yuge = In age; युगे/Yuge = In age.



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