Thursday, February 9, 2017

बात पते की : माँ - बाप संयम बरतें : Parents to exercise restrain

मित्रो!
         पति और पत्नी के बीच एक दूसरे के प्रति किसी बात को लेकर शिकायत होने की होने की स्थिति में बच्चों की सहानुभूति पाने के लिए पति को पत्नी के विरुद्ध और पत्नी को पति के विरुद्ध, विशेष रूप से जबकि  दूसरा पक्ष उपस्थित न हो, दोषारोपण से बचना चाहिए। ऐसा न होने पर बच्चों के मन पर दुष्प्रभाव पड़ता है और उनका माँ-बाप के प्रति सम्मान कम हो जाता है।  
           अन्यथा भी किसी व्यक्ति की अनुपस्थिति में उसके विरुद्ध किसी के सामने  शिकायत या दोषारोपण किया जाना नैसर्गिक न्याय के सिद्धांतों (principles of natural justice) के विपरीत होता है क्योंकि ऐसा व्यक्ति जिसके विरुद्ध आरोप लगाए जा रहे हैं अपना पक्ष प्रस्तुत नहीं कर सकता। 
            अगर पति या पत्नी द्वारा एक-दूसरे की उपस्थिति में बच्चो के सामने एक - दूसरे पर दोषारोपण या झगड़ना भी अनुचित है क्योंकि ऐसी स्थिति में बच्चों के मन में माँ और बाप दोनों के प्रति सम्मान में गिरावट आती है। यह भी विचारणीय है कि माँ - बाप के बीच झगड़े का निटपटारा बच्चे नहीं कर सकते क्योकि वे अपरिपक्व और अनुभवहीन होते हैं।
उपर्युक्त पृष्ठभूमि में मेरा मानना है कि यदि पत्नी और पति को अपने बच्चों से प्यार है तब -
बच्चों से सहानुभूति पाने के लिए उनके सामने पति को पत्नी के बारे में और पत्नी को पति के बारे में अनर्गल दोषारोपण या वार्तालाप से बचना चाहिए। ऐसा होने पर बच्चों के अंदर माता -पिता के प्रति आदर में कमी आती है और घृणा का भाव उपजता है, उनके अंदर अनुशासन में कमी आ जाती है और इसका प्रतिकूल प्रभाव उनके भविष्य पर पड़ता है।.


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