मैंने पूर्व में एक आर्टिकल "विनाशकारी क्रोध" शीर्षक से पोस्ट किया था और सुझाव दिया था कि जिस समय किसी व्यक्ति को क्रोध आता है उसी समय अगर उसका ध्यान किसी अन्य वस्तु, विचार, दृश्य आदि की ओर मोड़ा जा सके तब उसका क्रोध शान्त हो सकता है । किन्तु यह तथ्य भी विचारणीय हैं कि व्यक्ति अकेला होने पर क्रोध के आवेश में आ सकता है और कुछ भी गलत करने का निर्णय ले सकता है। अगर किसी व्यक्ति के क्रोधित होने के समय अन्य व्यक्ति पास में हैं भी तब यह समस्या हो सकती है ऐसे व्यक्तियों को यह मालूम ही न हो कि जिस विषय या वस्तु को लेकर व्यक्ति क्रोधित हो रहा है उससे उसका ध्यान हटा दिया जाय अथवा यह भी हो सकता है कि उपस्थित व्यक्तियों में से किसी में भी क्रोधित हो रहे व्यक्ति से कुछ कह सकने का साहस न हो। ऐसा भी हो सकता है कि क्रोधित हो रहा व्यक्ति किसी की वात सुने ही नहीं। ऐसे में एक यही विकल्प बचता है कि क्रोध आने के समय क्रोध से ग्रसित होने वाले व्यक्ति के पास कोई वस्तु ऐसी होनी चाहिए जो उसे याद दिलाये कि उसे क्रोध नहीं करना है। क्रोध विनाशकारी है। साथ ही ऐसी वस्तु क्रोधित होने जा रहे व्यक्ति की सोच किसी अन्य विचार या वस्तु पर केंद्रित कर दे।
मित्रो ! मेरा जन्म एक गाँव में हुआ है और मेरा बचपन गाँव में ही गुजरा है। मैंने बचपन में देखा है कि घरेलू कामकाजी अधेड़ उम्र और उम्रदराज अनेक महिलाएं किसी विशेष बात या कार्य को याद रखने के लिए अपनी साड़ी / धोती के एक छोर पर एक गाँठ बाँध लेतीं थी। यह गाँठ सदैव उनके साथ होती थी तथा जब तक खोली न जाय यह याद दिलाती रहती थी कि उन्हें अमुक काम करना है। अगर कार्य याद नहीं रहता था तब वह गाँठ देखकर अपनी याददास्त से पता करतीं थीं कि उन्होंने यह गाँठ किस लिए लगाई थी। मेरा विचार है कि प्रथा का उपयोग हम क्रोध नियंत्रण के लिए भी कर सकते हैं। पर आज पहले तो हम शरीर पर ऐसा वस्त्र धारण नहीं करते जिसमें गाँठ लगाई जा सके दूसरे अगर हम में से कोई ऐसा वस्त्र पहनते भी हैं तब ऐसे लोग गाँठ लगाना उपयुक्त नहीं पायेंगे। अगर गाँठ बाँध भी लें तब हम अनेक लोगों को इसका उद्देश्य बताने और समझाने में कठिनाई महसूस करेंगे। हमें ऐसा एक प्रतीक चाहिए जो हमारे संकल्प को याद दिलाता रहे, सदैव हमारे साथ रहे, इसके धारण करने से हमें अरुचि न हो और प्रतीक सामान्य लगे। यद्यपि हम क्रोध न करने का संकल्प ले सकते हैं किन्तु संभव है कि क्रोध आने के समय हमें संकल्प याद ही न रहे। ऐसी स्थिति में कोई वाह्य वस्तु या प्रतीक ही उपयुक्त हो सकता है।
आजकल अनेक व्यक्ति अपनी उँगलियों में मुद्रिकाएं (Rings) पहनते है। किसी व्यक्ति को मुद्रिका पहने देखने पर कुछ भी असामान्य नहीं लगता है। कुछ लोग इन्हें आभूषण के रूप में धारण करते हैं, वहीं कुछ लोग ग्रहों के बुरे प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से धारण करते हैं। कुछ लोग मुद्रिका को ring ceremony के अवसर पर धारण करते हैं। ऐसी मुद्रिका पर नज़र पड़ने पर ऐसे व्यक्ति के मन मष्तिष्क में रिंग सेरेमनी की याद ताज़ा हो जाती है। मुद्रिका का धारण करना सभ्य समाज में भी अशोभनीय नहीं माना जाता है। मेरा विचार है कि मुद्रिका का उपयोग प्रतीक के रूप में क्रोध पर नियंत्रण पाने में भी कर सकते हैं। हम जानते हैं कि कलाकार द्वारा निर्मित भगवान या किसी देवी-देवता की मूर्ति में श्रद्धा तब तक उत्पन्न नहीं होती जब तक उसमें विश्वास व्यक्त कर उसकी प्राण प्रतिष्ठा न की जाय। इसी प्रकार जब तक हम मुद्रा में संकल्प रुपी प्राण प्रतिष्ठा नहीं करेंगे तब तक वह एक सामान्य मुद्रा ही रहेगी। मुद्रिका धारण करने से पूर्व इसका सशक्तिकरण आवश्यक है ताकि क्रोध भावना के प्रकट होने से पूर्व ही हम इसके आगे आत्मसमर्पण कर सकें।
इसके लिए बायें हाथ की तर्जनी उंगली में पहनने के लिए (अगर आप तर्जनी उंगली में पूर्व से ही कोई मुद्रिका धारण कर रहे हैं तब किसी अन्य उंगली के नाप की) अपनी पसंद की मुद्रिका ले सकते हैं। मुद्रिका देखने में रुचिकर लगे किन्तु ऐसी न हो जिसके सामने आपके विचारों का कोई महत्व ही न रह जाय। इसको धारण करने से पूर्व यदि आप ईश्वर में विश्वास रखते हैं तब पवित्र मन से ईश्वर का स्मरण करें, यदि ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं तब ऐसे व्यक्ति या देवी-देवता जिसमें आपकी अटूट श्रद्धा और विश्वास है अथवा जिससे आप अटूट प्रेम करते हैं, का स्मरण करें और संकल्प लें कि आप कभी भी क्रोध नहीं करेंगे। अगर क्रोध का भाव कभी उत्पन्न होगा तब यह मुद्रिका आपको आपके संकल्प का स्मरण कराएगी और आप इसके दर्शन को अपने इष्ट का आदेश मान कर क्रोध का त्याग कर देंगे। इसके उपरांत आप मुद्रिका को धारण कर सकते हैं।
अपने विश्वास को दृढ़ करने के लिए आप जिस समय भी मुद्रिका उंगली से निकालें या धारण करें अपने द्वारा किये गये संकल्प को याद करें। आप अपने परिवारीय सदस्यों, मित्रों और संपर्क में आने वाले व्यक्तियों के मध्य गर्व से बतायें कि आपने क्रोध करना छोड़ दिया है। इससे क्रोध पर नियंत्रण पाने के लिए आपको आत्मबल मिलेगा। जब कभी भी आप महसूस करें कि आपको क्रोध आ रहा है आप दायें हाथ की उँगलियों से मुद्रिका पकड़ कर उंगली में घुमाने लगें और अपने इष्ट और संकल्प को याद करें। आपका ध्यान क्रोध से हट जायेगा, क्रोध के क्षण निकल जायेंगे। अगर किसी अवसर पर आप सफल नहीं होते तब क्रोधित होने के लिए पश्चात्ताप करें। जिस व्यक्ति पर क्रोधित होकर उसका दिल दुखाया है उसके सामने अपने कृत्य के लिए खेद (sorry) व्यक्त करें । मेरा विश्वास है कि इससे आपको क्रोध पर नियंत्रण पाने में अवश्य ही सफलता मिलेगी।
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