मित्रो !
अगर
अपने लिए कुछ करने का जज्बा है तब गरीबों के हमदर्द,
असहायों के सहाय और वंचितों के मसीहा बनकर उनके
लिए कुछ करें। उनकी दुआओं से ही तुम्हारी अपनी अक्षय पूँजी का निर्माण होगा।
समाज में बुराई की जड स्वार्थ है किन्तु अच्छाई का कारण परम स्वार्थ है।एक ऐसा स्वार्थ जो सबके लिये हितकारी है जिसमें स्वयं के साथ साथ दूसरों को भी सुख मिले।जब हम असहायों,वंचितों,दीनों के हित की सोचते हैं तो जिस प्रसन्नता का अनुभव होता है उसकी कल्पना नही की जा सकती।यह सुख स्थायी होता है जो हमारी अक्षय पूंजी बन कर जन्म जन्मांतरों तक हमारे साथ होता है।
समाज में बुराई की जड स्वार्थ है किन्तु अच्छाई का कारण परम स्वार्थ है।एक ऐसा स्वार्थ जो सबके लिये हितकारी है जिसमें स्वयं के साथ साथ दूसरों को भी सुख मिले।जब हम असहायों,वंचितों,दीनों के हित की सोचते हैं तो जिस प्रसन्नता का अनुभव होता है उसकी कल्पना नही की जा सकती।यह सुख स्थायी होता है जो हमारी अक्षय पूंजी बन कर जन्म जन्मांतरों तक हमारे साथ होता है।
जज्बा = Spirit, भावना।
अक्षय = Inexhaustible, कभी नष्ट न होने वाली।
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