मित्रो !
कुछ सत्यनिष्ठ और कर्तव्यनिष्ठ संस्कारी व्यक्ति जब किसी बेईमान और कर्तव्य - विमुख व्यक्ति को सुख और ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीते हुए देखते हैं तब ऐसे संस्कारी व्यक्तियों के मन में ईश्वर के न्याय के प्रति प्रति शंका उत्पन्न हो जाती है। शंका का कारण अज्ञान होता है। जाने कैसे?
विज्ञान भी मानता है कि किसी क्रिया के बिना कोई प्रतिक्रिया नहीं होती। इस आधार पर बिना कर्म किये किसी फल का सृजन संभव नहीं है। दूसरा पहलू यह है कि फल पेड़ पर लगता है। ऐसे में यदि पेड़ ही काट दिया जाय तब फल खाने को कैसे मिल सकता है। यदि यह माना जाय कि पेड़ काटने वाले को फल खाने को ईश्वर को देता है तब इससे यह निष्कर्ष निकलेगा कि ईश्वर बुरा कर्म करने वाले को अच्छा फल देता है। किन्तु ऐसा सत्य नहीं है क्योंकि ऐसा कोई पक्षपाती ही कर सकता है जबकि हमारी यह धारणा है कि ईश्वर परम निष्पक्ष न्यायाधीश है। अतः ईश्वर से यह आशा नहीं की जा सकती कि वह किसी के साथ पक्षपात करके उसके द्वारा किये गए बुरे कर्म का भी उसे अच्छा फल देगा।
उपर्युक्त चर्चा से हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि बुरा काम करने वाला यदि जश्न मना रहा है तब उसका जश्न मनाना उसके बुरे कर्म का फल नहीं है अपितु यह उसके द्वारा कभी पूर्व में किये गए शुभ कर्मों का फल है।
कर्म और कर्म - फल के सिद्धांत के आधार पर हम यह भी कह सकते हैं कि यदि कोई व्यक्ति अपने वर्तमान जन्म में बिना कोई शुभ कर्म किये शुभ कर्मों के फल का उपभोग कर रहा दिखता है तब ऐसा उसके द्वारा किसी पूर्व जन्मों में किये गए शुभ कर्मों के कारण है। विपरीत इसके जो वर्तमान जन्म में अच्छे कर्म करने के बाद भी दुःख का भोग करता दिख रहा है, इसका कारण उसके द्वारा अपने किसी पूर्व जन्म में किये गए अशुभ कर्मों के फल का भोग करना है। मेरे विचार से यही भाग्य का खेल है।
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