मित्रो !
सकाम कर्म ऐसे कर्म हैं जिनके फल अवश्य प्राप्त होते हैं। सकाम कर्म अच्छे भी
हो सकते हैं और बुरे भी। इनमें से कुछ कर्म तुरन्त फल देने वाले होते हैं, कुछ कर्म बाद में फल देते
हैं। बाद में
फल देने वाले कर्म, संचित कर्म
कहलाते हैं। फल प्राप्ति की आशा से किये गए कर्म ही सकाम कर्म हैं।
पहला उदहारण आपको प्यास लगाने
पर आपके द्वारा पानी पिए जाने का लेते हैं। जैसे ही आपने पानी पिया, आपकी प्यास बुझ गयी। इसमें पानी
पीने का कर्म आपने किया और इस कर्म का फल
(प्यास बुझाने के रूप में) आपको तुरंत मिल गया। दूसरा उदाहरण आपके द्वारा किसी दूसरे
व्यक्ति को पानी पिलाने का लेते हैं। आप जानते हैं कि किसी प्यासे व्यक्ति को पानी
पिलाने से अच्छा फल मिलता है। आपने एक प्यासे व्यक्ति को पानी पिलाया। इससे आपको तुरंत
कुछ लाभ नहीं मिला। आपका यह कर्म संचित कर्म बन गया और इसका फल आपको भविष्य में मिलेगा। तीसरा उदाहरण एक ऐसे किसी व्यक्ति का लेते हैं जो
छाया का लाभ लेने और आम का फल खाने के उद्देश्य से एक आम का पौधा लगता (वृक्षारोपण
करता) है। पौधारोपण के कई वर्ष बाद यह पौधा बड़ा पेड़ होकर फल देने लायक होगा। वह व्यक्ति इसकी देख-भाल करता रहा किन्तु दुर्भाग्यवश
पेड़ पर आम लगने से पूर्व ही उसकी मृत्यु हो गयी।
उस व्यक्ति को पौधा लगाने और उसकी देख-भाल करने में किये गए कर्मों का फल जीवित
रहते प्राप्त नहीं हुआ। उस व्यक्ति के ऐसे कर्म संचित कर्म बन जाएंगे और इसका फल उसे
अगले जन्म में बिना कर्म किये मिलेगा। ऐसे फलों का मिलना उसका भाग्य होगा।
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