Sunday, March 19, 2017

ससुराल में बहिन-बेटियों की मौत एक चिंता का विषय

मित्रो !
         हमारी व्यस्तताएं इतनी बढ़ गयीं हैं कि हम अधिकाँश मामलों में अपनी बहिन-बेटियों की शादी कर देने के साथ ही अपना दायित्व पूर्ण मानकर अपने में व्यस्त हो जाते हैं। हम भूल जाते हैं कि एक पौधे को नर्सरी से निकालकर दूसरी जगह पर उसका  रोपण किये जाने पर कुछ समय तक, जब तक वह नयी जगह पर अपनी जड़ें नहीं जमा लेता, उसकी अधिक देख-भाल की आवश्यकता होती है।
         अनेक मामलों में ससुराल पक्ष का अनुचित व्यवहार, उत्पीडन, उपेक्षा या दबाव को सहन कर पाने की स्थिति में बहिन-बेटियां टूट जातीं हैं और स्वयं मौत को गले लगा लेतीं हैं या ससुराल पक्ष की अपेक्षाओं को पूरा करने की स्थिति में वे हिंसा की शिकार होतीं हैं और अनेक मामलों में उन्हें मौत के घाट उतार दिया जाता है। अधिकाँश मामलों में बेटी पक्ष वालों को बेटी की  मृत्यु के बाद ही खबर मिलती है।
            गाँव  में प्रथा है कि लड़की शादी होने पर कुछ दिनों के लिए ही ससुराल जाती है, उसके भाई या पिता लड़की की ससुराल जाकर उसकी विदा कराकर बापस ले आते हैं। बापस आने के लगभग एक वर्ष बाद लड़की पुनः ससुराल जाती है। इस प्रक्रिया में लड़की द्वारा ससुराल में अल्प अवधि में किये गए अनुभवों, व्यवहार आदि की जानकारी भी मिल जाती है।  भाई या पिता जो विदा कराने जाते हैं को भी लड़की के ससुराल पक्ष वालों के व्यवहार के विषय में जानकारी मिल जाती है। इसके बाद भी कुछ ख़ास-ख़ास त्योहारों पर लड़की पक्ष के लोग लड़की की ससुराल में जाते रहते हैं, लड़की अपने मायके भी विशिष्ट अवसरों पर आती रहती है। इन परिस्थितियों में लड़की के साथ उसकी ससुराल पक्ष द्वारा किये जा रहे व्यवहार की जानकारी मिलती रहती है।
           शहरों में शादी के उपरांत की व्यवस्थाएं / परम्पराएं लगभग समाप्त हो गयीं हैं। हालात यहां तक गए हैं कि व्यवस्ताओं के चलते अनेक मामलों में लड़की पक्ष वाले लडके वालों के शहर में जाकर शादी करते हैं और वर-वधू के विवाह सूत्र में बंधने के बाद लड़की को ससुराल वालों को सौंप कर बापस लौट आते हैं।
           शहरों में आजकल हम फ़ोन से कुशलक्षेम की जानकारी मिलने की बात कह सकते हैं किन्तु हमें यह जानना चाहिए कि लड़की की स्थिति कैदी जैसी बना दी गयी हो, वहां पर कोई सही जानकारी मिलने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। मैं तो यह सुझाव देना चाहूँगा कि शादी के बाद भी लड़की के मायके पक्ष वालों को लड़की की ससुराल जाकर ससुराल पक्ष और लड़की से उस समय तक मिलते रहना चाहिए जब तक वे आश्वस्त नहीं हो जाते कि लड़की का जीवन पूरी तरह से ससुराल में सुरक्षित है। मेरा तो यह भी मानना है कि लड़की के पिता या भाई को लड़की की ससुराल में उनके परिचितों / पड़ोसियों से भी संपर्क में  रखना चाहिए क्योंकि कभी-कभी इन लोंगों से महत्वपूर्ण जानकारियां मिल सकतीं हैं।

         ससुराल वालों या लड़की के पति द्वारा लड़की की उपेक्षा किये जाने के अन्य कारण भी हो सकते हैं। ऐसा होना भी उचित नहीं है।  अवसर मिलाने पर मैं इन पर अलग से चर्चा करूंगा।


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