दो व्यक्तियों या पक्षों के बीच संवादहीनता के परिणाम कभी-कभी बहुत ही दुखदायी और हानिप्रद प्रमाणित होते हैं। परिवार के अंदर बड़ों और छोटों के बीच संवादहीनता होने पर छोटों का विकास प्रभावित होता है। स्नेह की कमी आती है। बराबर के रिश्तों में हल्कापन आ जाता है। रिश्तों में बिखराव आने लगता है।
दो पक्षों के बीच संवादहीनता दूरियाँ बढ़ाती है। संवाद के अभाव में संयुक्त हित के किसी मामले में एक पक्ष अपने प्रति किसी भी प्रतिकूल परिणाम के लिए बिना कारण जाने दूसरे पक्ष को दोषी मान कर अपने द्वारा कल्पना किये गए असत्य कारण को भी सत्य मान लेता है और दूसरे पक्ष से दूरियाँ और भी बढ़ा लेता है।
संवादहीनता से छुटकारा पाने के लिए सबसे अधिक महत्व का होता है अहम भाव का त्याग करना। परिवार में बड़ों को चाहिए कि वे अपने से आयु में छोटे सदस्यों से लगातार संपर्क में रहे, उनके कार्यों की प्रगति और प्रगति में आने वाली कठिनाइयों के सम्बन्ध में बात-चीत करने के साथ-साथ उनके प्रति सहानुभूति प्रदर्शित करने वाले संवाद करते रहे। परिवार के बाहर किसी अन्य व्यक्ति या पक्ष के साथ संवादहीनता तोड़ने के लिए दोनों पक्षों को परोक्ष रूप में इस प्रकार व्यवहार करना चाहिए कि वे दूसरे पक्ष के हितैषी हैं। जहाँ सीधा संवाद प्रारम्भ करने में कठिनाई हो वहाँ पर, किसी ऐसे तीसरे व्यक्ति जिसके दोनों पक्षों से अच्छे सम्बन्ध हों, सहारा लिया जाना चाहिए। लगभग सभी संस्कृतियों में कुछ ऐसे त्यौहार होते हैं जिन पर समाज में लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं, एक-दूसरे को बधाई देते हैं। ऐसे अवसरों का लाभ उठाकर मिलना चाहिए। ऐसे अवसरों पर अधिक से अधिक ऐसी वार्ता करनी चाहिए जो अपनत्व बढ़ाने वाली हो। वार्ता से ऐसा लगना चाहिए कि वे एक-दूसरे के हितैषी हैं। ऐसे अवसरों पर मतभेद के मुद्दे का जिक्र नहीं करना चाहिए।
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